निगोद: Difference between revisions
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<p id="1">(1) नारकियों के उत्पत्ति स्थान । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.347-353 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1">(1) नारकियों के उत्पत्ति स्थान । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.347-353 </span></p> | ||
<p id="2">(2) एकेंद्रिय जीवों का उत्पत्ति स्थान । इसमें पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति कायों के जीव उत्पन्न होते हैं । ये जीव अनेक कुयोनियों तथा कुलकोटियों में श्रमण करते हैं । इसके दो भेद हैं― नित्य-निगोद और इतरनिगोद । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.54-57 </span></p> | <p id="2">(2) एकेंद्रिय जीवों का उत्पत्ति स्थान । इसमें पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति कायों के जीव उत्पन्न होते हैं । ये जीव अनेक कुयोनियों तथा कुलकोटियों में श्रमण करते हैं । इसके दो भेद हैं― नित्य-निगोद और इतरनिगोद । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.54-57 </span></p> | ||
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Revision as of 16:54, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
देखें वनस्पति - 2।
पुराणकोष से
(1) नारकियों के उत्पत्ति स्थान । हरिवंशपुराण 4.347-353
(2) एकेंद्रिय जीवों का उत्पत्ति स्थान । इसमें पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति कायों के जीव उत्पन्न होते हैं । ये जीव अनेक कुयोनियों तथा कुलकोटियों में श्रमण करते हैं । इसके दो भेद हैं― नित्य-निगोद और इतरनिगोद । हरिवंशपुराण 18.54-57