निस्संगत्वात्मभावना: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> गृहस्थ की त्रेपन क्रियाओं में तीसवीं क्रिया । इसमें अपना संपूर्ण भार किसी सुयोग्य शिष्य को सौंपकर साधु अकेले विहार करते हुए अपनी आत्मा को सब प्रकार के परिग्रह से रहित मानता है । ऐसा साधु प्रवचन आदि में भी राग छोड़कर निर्ममत्व की भावना से एकाग्रबुद्धि होता है और चारित्रिक शुद्धि प्राप्त करता है । <span class="GRef"> महापुराण 38.59, 175-177 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> गृहस्थ की त्रेपन क्रियाओं में तीसवीं क्रिया । इसमें अपना संपूर्ण भार किसी सुयोग्य शिष्य को सौंपकर साधु अकेले विहार करते हुए अपनी आत्मा को सब प्रकार के परिग्रह से रहित मानता है । ऐसा साधु प्रवचन आदि में भी राग छोड़कर निर्ममत्व की भावना से एकाग्रबुद्धि होता है और चारित्रिक शुद्धि प्राप्त करता है । <span class="GRef"> महापुराण 38.59, 175-177 </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> |
Revision as of 16:54, 14 November 2020
गृहस्थ की त्रेपन क्रियाओं में तीसवीं क्रिया । इसमें अपना संपूर्ण भार किसी सुयोग्य शिष्य को सौंपकर साधु अकेले विहार करते हुए अपनी आत्मा को सब प्रकार के परिग्रह से रहित मानता है । ऐसा साधु प्रवचन आदि में भी राग छोड़कर निर्ममत्व की भावना से एकाग्रबुद्धि होता है और चारित्रिक शुद्धि प्राप्त करता है । महापुराण 38.59, 175-177