रतिषेण: Difference between revisions
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<span class="GRef"> महापुराण/51/ </span>श्लोक नं. ‘‘पुष्कलावती देश की पुंडरीकिणी नगरी का राजा था । (2 - 3) । पुत्र को राज्य देकर जिनदीक्षा ग्रहण की । (12 - 13)। सोलहकारण भावनाओं का चिंतवन कर तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया । अंत में संन्यास मरण कर वैजयंत विमान में अहमिंद्र हुआ । (13-15)। | |||
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Revision as of 13:01, 14 October 2020
== सिद्धांतकोष से == महापुराण/51/ श्लोक नं. ‘‘पुष्कलावती देश की पुंडरीकिणी नगरी का राजा था । (2 - 3) । पुत्र को राज्य देकर जिनदीक्षा ग्रहण की । (12 - 13)। सोलहकारण भावनाओं का चिंतवन कर तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया । अंत में संन्यास मरण कर वैजयंत विमान में अहमिंद्र हुआ । (13-15)।
पुराणकोष से
(1) एक राजा । चंद्रमती इसकी रानी थी । वानर का जीव मनोहर देव दूसरे स्वर्ग के नंद्यावर्तविमान से चयकर इसी राजा-रानी का चित्रांगद नामक पुत्र हुआ था । महापुराण 9.187, 191, 10. 151
(2) एक मुनि । हिरण्यवर्मा के तीसरे पूर्वभव का पिता इनसे दीक्षित हुआ था । महापुराण 46.173
(3) विजयार्ध पर्वत के गांधार नगर का एक विद्याघर । गांधारी इसकी स्त्री थी । इसने सर्प-दंश के बहाने औषधि लाने इसे भेजकर स्वयं कुबेरकांत के साथ काम की कुचेष्टाएँ करनी चाही थी किंतु सेठ ने ‘मैं तो नपुंसक हूँ’ कहकर गांधारी के मन में विरक्ति उत्पन्न की । गांधारी ने सेठ की पत्नी से यथार्थता ज्ञात करके इसके साथ-साथ संयम धारण कर लिया था । विदेहक्षेत्र की पुंडरीकिणी नगरी के राजा लोकपाल इससे दीक्षित हुए थे । महापुराण 46.19-20, 48, 228-238
(4) जंबूद्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र मे वत्सकावती देश के पृथिवीनगर के राजा जयसेन और रानी जयसेना का ज्येष्ठ पुत्र । यह घृतिषेण का बड़ा भाई था । इसका अल्पायु में ही मरण हो गया था । महापुराण 48.58-61
(5) घातकीखंड द्वीप के विदेहक्षेत्र में स्थित पुष्कलावती देश की पुंडरीकिणी नगरी का राजा । यह नीतिज्ञ, धर्मज्ञ और धनाढ्य था । मुनि धर्म की ही पाप रहित जानकर इसने राज्य-भार पुत्र अतिरथ को सौंप करके अर्हंतंदन मुनि से दीक्षा ले ली थी तथा अंत में यह संन्यासमरण कर वैजयंत विमान में अहमिंद्र हुआ था । महापुराण 51. 2-15