रात्रिमृत्तित्याग: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p id="1"> (1) श्रावक की छठीं प्रतिमा । इसमें रात्रि में चतुर्विध आहार का और दिन में मैथुनसेवन का त्याग किया जाता है । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.62 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) श्रावक की छठीं प्रतिमा । इसमें रात्रि में चतुर्विध आहार का और दिन में मैथुनसेवन का त्याग किया जाता है । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.62 </span></p> | ||
<p id="2">(2) आचार्य जिनसेन द्वारा माने गये छ: महानतों में छठा महाव्रत । इसका पालन करनेवाला सब प्रकार के आरंभ में प्रवृत्त रहने पर भी सुखदायी गति पाता है । <span class="GRef"> महापुराण 34.169, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 32. 157 </span></p> | <p id="2">(2) आचार्य जिनसेन द्वारा माने गये छ: महानतों में छठा महाव्रत । इसका पालन करनेवाला सब प्रकार के आरंभ में प्रवृत्त रहने पर भी सुखदायी गति पाता है । <span class="GRef"> महापुराण 34.169, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 32. 157 </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> |
Revision as of 16:57, 14 November 2020
(1) श्रावक की छठीं प्रतिमा । इसमें रात्रि में चतुर्विध आहार का और दिन में मैथुनसेवन का त्याग किया जाता है । वीरवर्द्धमान चरित्र 18.62
(2) आचार्य जिनसेन द्वारा माने गये छ: महानतों में छठा महाव्रत । इसका पालन करनेवाला सब प्रकार के आरंभ में प्रवृत्त रहने पर भी सुखदायी गति पाता है । महापुराण 34.169, पद्मपुराण 32. 157