वृषभपर्वत: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> जंबूद्वीप के भरत और ऐरावत क्षेत्र संबंधी एक-एक तथा विदेहक्षेत्र के बत्तीस कुल चौंतीस पर्वत । भरतेश ने इसी पर्वत पर काकणी-रत्न से अपनी प्रशस्ति लिखी थी । यह पर्वत सौ योजन ऊँचा है । मूल में भी यह सौ योजन और शिखर पर पचास योजन विस्तृत है । यह आकल्पांत अविनश्वर, आकाश के समान निर्मल, नाना चक्रवर्तियों के नामों से उत्कीर्ण तथा देव और विद्याधरों द्वारा सेवित है । <span class="GRef"> महापुराण 32.130-160, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.280, 11.47-48 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> जंबूद्वीप के भरत और ऐरावत क्षेत्र संबंधी एक-एक तथा विदेहक्षेत्र के बत्तीस कुल चौंतीस पर्वत । भरतेश ने इसी पर्वत पर काकणी-रत्न से अपनी प्रशस्ति लिखी थी । यह पर्वत सौ योजन ऊँचा है । मूल में भी यह सौ योजन और शिखर पर पचास योजन विस्तृत है । यह आकल्पांत अविनश्वर, आकाश के समान निर्मल, नाना चक्रवर्तियों के नामों से उत्कीर्ण तथा देव और विद्याधरों द्वारा सेवित है । <span class="GRef"> महापुराण 32.130-160, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.280, 11.47-48 </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> |
Revision as of 16:57, 14 November 2020
जंबूद्वीप के भरत और ऐरावत क्षेत्र संबंधी एक-एक तथा विदेहक्षेत्र के बत्तीस कुल चौंतीस पर्वत । भरतेश ने इसी पर्वत पर काकणी-रत्न से अपनी प्रशस्ति लिखी थी । यह पर्वत सौ योजन ऊँचा है । मूल में भी यह सौ योजन और शिखर पर पचास योजन विस्तृत है । यह आकल्पांत अविनश्वर, आकाश के समान निर्मल, नाना चक्रवर्तियों के नामों से उत्कीर्ण तथा देव और विद्याधरों द्वारा सेवित है । महापुराण 32.130-160, हरिवंशपुराण 5.280, 11.47-48