षट् खंडागम: Difference between revisions
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Revision as of 16:38, 19 August 2020
यह कर्म सिद्धांत विषयक ग्रंथ है। इसकी उत्पत्ति मूल द्वादशांग श्रुतस्कंध से हुई है (देखें श्रुतज्ञान )। इसके छह खंड हैं - 1. जीवट्ठाण, 2. खुद्दाबंध, 3. बंधस्वामित्व विचय, 4. वेदना, 5. वर्गणा, 6. महाबंध। मूल ग्रंथ के पाँच खंड प्राकृत भाषा में सूत्र निबद्ध हैं। इनमें पहले खंड के सूत्र पुष्पदंत (ई.106-136) आचार्य के बनाये हुए हैं। पीछे उनका शरीरांत हो जाने के कारण शेष चार खंडों के पूरे सूत्र आ.भूतबलि (ई.136-156) ने बनाये थे। छठा खंड सविस्तर रूप से आ.भूतबलि द्वारा बनाया गया है। अत: इसके प्रथम पाँच खंडों पर तो अनेकों टीकाएँ उपलब्ध हैं, परंतु छठे खंड पर वीरसेन स्वामी ने संक्षिप्त व्याख्या के अतिरिक्त और कोई टीका नहीं की है। 1. सर्व प्रथम टीका आ.कुंदकुंद (ई.127-179) द्वारा इसके प्रथम तीन खंडों पर रची गयी थी। उस टीका का नाम 'परिकर्म' था। 2. दूसरी टीका आ.समंतभद्र (ई.श.2) द्वारा इसके प्रथम पाँच खंडों पर रची गयी। 3. तीसरी टीका आ.शामकुंड (ई.श.3) द्वारा इसके पूर्व पाँच खंडों पर रची गयी है। 4. चौथी टीका आ.वीरसेन स्वामी (ई.770-827) कृत है। (विशेष देखें परिशिष्ट )।