षट् काल
From जैनकोष
सर्वार्थसिद्धि/3/27/223/4तत्रावसर्पिणी षड्विधा—सुषमासुषमा सुषमा सुषमदुष्षमा दुष्षमसुषमा दुष्षमा अतिदुष्ष्मा चेति। उत्सर्पिण्यपि अतिदुष्षमाद्या सुषमसुषमांता षड्विधैव भवति।=अवसर्पिणी के छह भेद हैं—सुषमासुषमा, सुषमा, सुषमदुष्षमा, दुष्षमसुषमा, दुष्षमा और अतिदुष्षमा। इसी प्रकार उत्सर्पिणी भी अतिदुष्षमा से लेकर सुषमसुषमा तक छह प्रकार का है। (अर्थात् दुष्षमदुष्षम, दुष्षमा, दुष्षमसुषमा, सुषमदुष्षमा, सुषमा और अतिसुषमा)
अधिक जानकारी के लिये देखें काल - 4.3।