हरिश्मश्रु: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) अलका नगरी के राजा विद्याधर अश्वग्रीव प्रतिनारायण का मंत्री । यह प्रत्यक्ष को प्रमाण मानने वाला, एकांतवादी और नास्तिक षा । यह पृथिव्यादि भूतचतुष्टय के सयोग से चैतन्य की उत्पत्ति मानता था । अदृश्य होने से वह आत्मा को पाप-पुण्य का कर्त्ता, सुख-दु:ख का भोक्ता और मुक्त होने वाला नहीं मानता था । स्वयं नास्तिक होने से इसने राजा अश्वग्रीव को भी नास्तिक बना दिया तथा मरकर सातवें नरक में उत्पन्न हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 62.60-61 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 28.31-44 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) अलका नगरी के राजा विद्याधर अश्वग्रीव प्रतिनारायण का मंत्री । यह प्रत्यक्ष को प्रमाण मानने वाला, एकांतवादी और नास्तिक षा । यह पृथिव्यादि भूतचतुष्टय के सयोग से चैतन्य की उत्पत्ति मानता था । अदृश्य होने से वह आत्मा को पाप-पुण्य का कर्त्ता, सुख-दु:ख का भोक्ता और मुक्त होने वाला नहीं मानता था । स्वयं नास्तिक होने से इसने राजा अश्वग्रीव को भी नास्तिक बना दिया तथा मरकर सातवें नरक में उत्पन्न हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 62.60-61 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 28.31-44 </span></p> | ||
<p id="2">(2) राजा विनमि विद्याघर का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 22.104 </span></p> | <p id="2">(2) राजा विनमि विद्याघर का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 22.104 </span></p> | ||
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Revision as of 16:59, 14 November 2020
(1) अलका नगरी के राजा विद्याधर अश्वग्रीव प्रतिनारायण का मंत्री । यह प्रत्यक्ष को प्रमाण मानने वाला, एकांतवादी और नास्तिक षा । यह पृथिव्यादि भूतचतुष्टय के सयोग से चैतन्य की उत्पत्ति मानता था । अदृश्य होने से वह आत्मा को पाप-पुण्य का कर्त्ता, सुख-दु:ख का भोक्ता और मुक्त होने वाला नहीं मानता था । स्वयं नास्तिक होने से इसने राजा अश्वग्रीव को भी नास्तिक बना दिया तथा मरकर सातवें नरक में उत्पन्न हुआ । महापुराण 62.60-61 हरिवंशपुराण 28.31-44
(2) राजा विनमि विद्याघर का पुत्र । हरिवंशपुराण 22.104