अशुद्ध: Difference between revisions
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<p class="SanskritText">आलापपद्धति अधिकार 6. शुद्धं केवलभावमशुद्धं तस्यापि विपरीतम्।</p> | <p class="SanskritText">आलापपद्धति अधिकार 6. शुद्धं केवलभावमशुद्धं तस्यापि विपरीतम्।</p> | ||
<p class="HindiText">= केवल अर्थात् असंयोगी | <p class="HindiText">= केवल अर्थात् असंयोगी भाव को शुद्ध कहते हैं और अशुद्ध उससे विपरीत है।</p> | ||
<p class="SanskritText">समयसार / तात्पर्यवृत्ति गाथा 102 औपाधिकमुपादानमशुद्धं, तप्तायःपिंडवत्।</p> | <p class="SanskritText">समयसार / तात्पर्यवृत्ति गाथा 102 औपाधिकमुपादानमशुद्धं, तप्तायःपिंडवत्।</p> | ||
<p class="HindiText">= औपाधिक पदार्थ को अशुद्ध कहते हैं जैसे | <p class="HindiText">= औपाधिक पदार्थ को अशुद्ध कहते हैं जैसे अग्नि से तपाया हुआ लोहे का गोला।</p> | ||
<p class="SanskritText">पंचास्तिकाय संग्रह / तात्पर्यवृत्ति / गाथा 16/36/3 परद्रव्यसंबंधेनाशुद्धपर्यार्यः।</p> | <p class="SanskritText">पंचास्तिकाय संग्रह / तात्पर्यवृत्ति / गाथा 16/36/3 परद्रव्यसंबंधेनाशुद्धपर्यार्यः।</p> | ||
<p class="HindiText">= पर | <p class="HindiText">= पर द्रव्य के संबंध से अशुद्ध पर्याय होती है।</p> | ||
<p class="SanskritText"><span class="GRef"> पंचाध्यायी / उत्तरार्ध 221 </span>शुद्धं सामान्यमात्रत्वादशुद्धं तद्विशेषतः। वस्तु सामान्यरूपणे स्वदते स्वादु सद्विदास् ॥221॥</p> | <p class="SanskritText"><span class="GRef"> पंचाध्यायी / उत्तरार्ध 221 </span>शुद्धं सामान्यमात्रत्वादशुद्धं तद्विशेषतः। वस्तु सामान्यरूपणे स्वदते स्वादु सद्विदास् ॥221॥</p> | ||
<p class="HindiText">= वस्तु | <p class="HindiText">= वस्तु सम्यग्ज्ञानियों को सामान्यरूप से अनुभव में आती है इसलिए वह वस्तु केवल सामान्य रूप से शुद्ध कहलाती है और विशेष भेदों की अपेक्षा अशुद्ध कहलाती है। </p> | ||
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Revision as of 18:52, 16 August 2022
आलापपद्धति अधिकार 6. शुद्धं केवलभावमशुद्धं तस्यापि विपरीतम्।
= केवल अर्थात् असंयोगी भाव को शुद्ध कहते हैं और अशुद्ध उससे विपरीत है।
समयसार / तात्पर्यवृत्ति गाथा 102 औपाधिकमुपादानमशुद्धं, तप्तायःपिंडवत्।
= औपाधिक पदार्थ को अशुद्ध कहते हैं जैसे अग्नि से तपाया हुआ लोहे का गोला।
पंचास्तिकाय संग्रह / तात्पर्यवृत्ति / गाथा 16/36/3 परद्रव्यसंबंधेनाशुद्धपर्यार्यः।
= पर द्रव्य के संबंध से अशुद्ध पर्याय होती है।
पंचाध्यायी / उत्तरार्ध 221 शुद्धं सामान्यमात्रत्वादशुद्धं तद्विशेषतः। वस्तु सामान्यरूपणे स्वदते स्वादु सद्विदास् ॥221॥
= वस्तु सम्यग्ज्ञानियों को सामान्यरूप से अनुभव में आती है इसलिए वह वस्तु केवल सामान्य रूप से शुद्ध कहलाती है और विशेष भेदों की अपेक्षा अशुद्ध कहलाती है।
(विशेष-देखें नय - IV.2.4)