सत्त्व विषयक प्ररूपणाएँ: Difference between revisions
From जैनकोष
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<p><span class="HindiText">प्रमाण - ( | <p><span class="HindiText">प्रमाण - (<span class="GRef"> पंचसंग्रह / प्राकृत/3/49-63 </span>); (<span class="GRef"> पंचसंग्रह / प्राकृत/5/489-500 </span>); (पं.सं./सं./3/61-77); (पं.सं./सं./5/462-477); (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/336-343/488-496 </span>)।</span></p> | ||
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<td>(1)</td> | <td>(1)</td> | ||
<td colspan="2">नरक गति - ( | <td colspan="2">नरक गति - (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/ </span>भाषा./346/498)</td> | ||
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<td>(2)</td> | <td>(2)</td> | ||
<td colspan="2">तिर्यंच गति - ( | <td colspan="2">तिर्यंच गति - (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/ </span>भाषा./346/499-500)</td> | ||
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<td>(3)</td> | <td>(3)</td> | ||
<td colspan="2">मनुष्यगति - ( | <td colspan="2">मनुष्यगति - (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/ </span>भाषा./346/503)</td> | ||
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<td></td> | <td></td> | ||
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<td>(4)</td> | <td>(4)</td> | ||
<td colspan="2">देवगति - ( | <td colspan="2">देवगति - (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/ </span>भाषा/346/503)</td> | ||
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<td><strong>3</strong></td> | <td><strong>3</strong></td> | ||
<td colspan="13"><strong>काय मार्गणा - (</strong> | <td colspan="13"><strong>काय मार्गणा - (</strong><span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/ </span>भाषा/349-351/503-506)</td> | ||
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<td><strong>4</strong></td> | <td><strong>4</strong></td> | ||
<td colspan="13"><strong>योगमार्गणा</strong> - ( | <td colspan="13"><strong>योगमार्गणा</strong> - (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/ </span>भाषा/352-353/506-508)</td> | ||
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<td>1</td> | <td>1</td> | ||
<td colspan="17">मिथ्यादृष्टि - ( | <td colspan="17">मिथ्यादृष्टि - (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/366-371/522-535 </span>)। कुल स्थान 18 (बद्धा.10, अबद्धा.8); कुल भंग=50 (बद्धा.26,अबद्धा.24)</td> | ||
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<td>2</td> | <td>2</td> | ||
<td colspan="17">सासादन - ( | <td colspan="17">सासादन - (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/372-375/536-539 </span>)। कुल स्थान=6 (बद्धा.2, अबद्धा.4); कुल भंग=18 (बद्धा.6,अबद्धा.12)</td> | ||
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<td>3</td> | <td>3</td> | ||
<td colspan="17">मिश्र - ( | <td colspan="17">मिश्र - (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/372-375/536-539 </span>)। कुल स्थान 8 (बद्धा.14, अबद्धा.4); कुल भंग=36 (बद्धा.20;अबद्धा.16)</td> | ||
</tr> | </tr> | ||
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<td>4</td> | <td>4</td> | ||
<td colspan="17">अविरत सम्यग्दृष्टि - ( | <td colspan="17">अविरत सम्यग्दृष्टि - (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/376-381/540-549 </span>) कुल स्थान=40 (बद्धा.=20, अबद्धा.=20); कुल भंग=120 (बद्धा.=60,अबद्धा.=60)</td> | ||
</tr> | </tr> | ||
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<td>5</td> | <td>5</td> | ||
<td colspan="17">देश संयत - ( | <td colspan="17">देश संयत - ( <span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/382/550 </span>) कुल स्थान=40 (बद्धा.=20, अबद्धा.=20); कुल भंग=48 (बद्धा.=24,अबद्धा.=24)</td> | ||
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<td>6-7</td> | <td>6-7</td> | ||
<td colspan="17">प्रमत्त अप्रमत्त - ( | <td colspan="17">प्रमत्त अप्रमत्त - (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/382/550 </span>) कुल स्थान=40 (बद्धा.=20, अबद्धा.=20); कुल भंग=120 (बद्धा.=60,अबद्धा.=60)</td> | ||
</tr> | </tr> | ||
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<p class="HindiText">8. उपशम श्रेणी/उप.क्षा.सम्यक्त्व (अपूर्वकरण)</p> | <p class="HindiText">8. उपशम श्रेणी/उप.क्षा.सम्यक्त्व (अपूर्वकरण)</p> | ||
<p class="HindiText">( | <p class="HindiText">(<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/383-384/551-553 </span>) - स्थान=24; भंग=24।</p> | ||
<p class="HindiText">द्रष्टव्य - कनकनंदि सिद्धांत चक्रवर्ती के अनुसार यहाँ स्थान नं.1,2,7,8,13,14,11 इन आठ स्थानों को छोड़कर 16 स्थान व 16 भंग होते हैं। ( | <p class="HindiText">द्रष्टव्य - कनकनंदि सिद्धांत चक्रवर्ती के अनुसार यहाँ स्थान नं.1,2,7,8,13,14,11 इन आठ स्थानों को छोड़कर 16 स्थान व 16 भंग होते हैं। (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड 391/558 </span>)।</p> | ||
<p class="HindiText">संकेत - देखें [[ सारणी सं#1 | सारणी सं - 1 ]]का प्रारंभ।</p> | <p class="HindiText">संकेत - देखें [[ सारणी सं#1 | सारणी सं - 1 ]]का प्रारंभ।</p> | ||
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<td colspan="7" class="HindiText"><p>9-11 उपशम श्रेणी/उपशम व क्षा.सम्यक्त्व (अनिवृत्तिकरणादि उपशांत कषाय पर्यंत)। ( | <td colspan="7" class="HindiText"><p>9-11 उपशम श्रेणी/उपशम व क्षा.सम्यक्त्व (अनिवृत्तिकरणादि उपशांत कषाय पर्यंत)। (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/385/553 </span>) स्थान 24; भंग 24।</p> | ||
<p>द्रष्टव्य - आ.कनकनंदि के अनुसार स्थान 16, भंग=16।</p> | <p>द्रष्टव्य - आ.कनकनंदि के अनुसार स्थान 16, भंग=16।</p> | ||
<p>[[File:clip_image002.gif ]] उपरोक्त 8वें गुणस्थानवत् [[File:clip_image004.gif ]]</p></td> | <p>[[File:clip_image002.gif ]] उपरोक्त 8वें गुणस्थानवत् [[File:clip_image004.gif ]]</p></td> | ||
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<p class="HindiText">8. क्षपक श्रेणी (अपूर्वकरण)</p> | <p class="HindiText">8. क्षपक श्रेणी (अपूर्वकरण)</p> | ||
<p class="HindiText">( | <p class="HindiText">(<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/385/553 </span>) - स्थान=4; भंग=4।</p> | ||
<p class="HindiText">द्रष्टव्य - बद्धायुष्क को क्षपक श्रेणी संभव नहीं अत: केवल अबद्धायुष्क मनुष्य के ही स्थान हैं।</p> | <p class="HindiText">द्रष्टव्य - बद्धायुष्क को क्षपक श्रेणी संभव नहीं अत: केवल अबद्धायुष्क मनुष्य के ही स्थान हैं।</p> | ||
<table class="HindiText" cellpadding="2" cellspacing="1" border="1"> | <table class="HindiText" cellpadding="2" cellspacing="1" border="1"> | ||
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<td colspan="17"> | <td colspan="17"> | ||
<p> 9. क्षपक श्रेणी (अनिवृत्तिकरण)</p> | <p> 9. क्षपक श्रेणी (अनिवृत्तिकरण)</p> | ||
<p> ( | <p> (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/386-388/554-555 </span>) - स्थान=36; भंग=</p> | ||
<p class="HindiText"> द्रष्टव्य - गो.सा.में पुरुष वेदी व स्त्रीवेदी दोनों के समान आलाप मानकर कुल स्थान 36 बताये हैं, पर सारणी 1 के अनुसार पुरुष व स्त्रीवेदी के आलापों में कुछ अंतर होने से यहाँ स्थान 44 बनते हैं।</p> | <p class="HindiText"> द्रष्टव्य - गो.सा.में पुरुष वेदी व स्त्रीवेदी दोनों के समान आलाप मानकर कुल स्थान 36 बताये हैं, पर सारणी 1 के अनुसार पुरुष व स्त्रीवेदी के आलापों में कुछ अंतर होने से यहाँ स्थान 44 बनते हैं।</p> | ||
<p class="HindiText"> संकेत - पुं.वेदी=पुरुषवेदोदय सहित श्रेणी चढ़ने वाला।</p> | <p class="HindiText"> संकेत - पुं.वेदी=पुरुषवेदोदय सहित श्रेणी चढ़ने वाला।</p> | ||
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<td></td> | <td></td> | ||
<td colspan="2">10.</td> | <td colspan="2">10.</td> | ||
<td colspan="14">क्षपक श्रेणी (सूक्ष्म सांपराय) ( | <td colspan="14">क्षपक श्रेणी (सूक्ष्म सांपराय) (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड 389/556 </span>) - स्थान=4; भंग=4</td> | ||
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Line 4,486: | Line 4,486: | ||
<td></td> | <td></td> | ||
<td colspan="2">12.</td> | <td colspan="2">12.</td> | ||
<td colspan="14">क्षीणकषाय - ( | <td colspan="14">क्षीणकषाय - (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड 389/556 </span>) - स्थान=8; भंग=8</td> | ||
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<td></td> | <td></td> | ||
<td colspan="2">13.</td> | <td colspan="2">13.</td> | ||
<td colspan="14">सयोगकेवली - ( | <td colspan="14">सयोगकेवली - (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड 390/557 </span>) - स्थान=4; भंग=4</td> | ||
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<td></td> | <td></td> | ||
<td colspan="2">14.</td> | <td colspan="2">14.</td> | ||
<td colspan="14">अयोगकेवली - ( | <td colspan="14">अयोगकेवली - (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड 390/557 </span>) - स्थान=8; भंग=8</td> | ||
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<td>1</td> | <td>1</td> | ||
<td colspan="5"><strong>ज्ञानावरणीय</strong> - ( | <td colspan="5"><strong>ज्ञानावरणीय</strong> - (<span class="GRef"> पंचसंग्रह / प्राकृत/5/4,24 </span>); (पं.सं./सं./5/5-30); (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/630/830 </span>)</td> | ||
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<td>2</td> | <td>2</td> | ||
<td colspan="5"><strong>दर्शनावरणीय</strong> - ( | <td colspan="5"><strong>दर्शनावरणीय</strong> - (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/631-32/831 </span>)</td> | ||
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<td>3</td> | <td>3</td> | ||
<td colspan="5"><strong>वेदनीय</strong> - ( | <td colspan="5"><strong>वेदनीय</strong> - (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/633-634/832 </span>)</td> | ||
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<td>5</td> | <td>5</td> | ||
<td colspan="5"><strong>आयु</strong> - ( | <td colspan="5"><strong>आयु</strong> - (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/366-371/522-535 </span>)</td> | ||
</tr> | </tr> | ||
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<tr class="center"> | <tr class="center"> | ||
<td>7</td> | <td>7</td> | ||
<td colspan="5"><strong>गोत्र</strong> - ( | <td colspan="5"><strong>गोत्र</strong> - (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/635/833-835 </span>)</td> | ||
</tr> | </tr> | ||
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<td>8</td> | <td>8</td> | ||
<td colspan="5"><strong>अंतराय</strong> - ( | <td colspan="5"><strong>अंतराय</strong> - (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/630/830/ </span>)</td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr class="center"> | <tr class="center"> | ||
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</tr> </table><br/> | </tr> </table><br/> | ||
<p class="HindiText" id="7"><strong>7. मोह प्रकृति सत्त्व स्थान सामान्य प्ररूपणा।</strong></p> | <p class="HindiText" id="7"><strong>7. मोह प्रकृति सत्त्व स्थान सामान्य प्ररूपणा।</strong></p> | ||
<p class="HindiText">(<span class="GRef"> कषायपाहुड़ 2/ </span>पृष्ठ), ( | <p class="HindiText">(<span class="GRef"> कषायपाहुड़ 2/ </span>पृष्ठ), (<span class="GRef"> पंचसंग्रह / प्राकृत/5/33-36 </span>), (पं.सं./सं./5/42-47) कुल सत्त्व योग्य=28; कुल सत्त्व स्थान=15</p> | ||
<p class="HindiText">द्रष्टव्य - अनिवृत्तिकरण में मोहनीय के क्षय का क्रम :</p> | <p class="HindiText">द्रष्टव्य - अनिवृत्तिकरण में मोहनीय के क्षय का क्रम :</p> | ||
<p class="HindiText">1. नवें गुणस्थान के काल के संख्यातवें भाग को व्यतीत करके (अप्रमत्त व प्रमत्त) 8 प्रकृतियों का क्षय करता है।</p> | <p class="HindiText">1. नवें गुणस्थान के काल के संख्यातवें भाग को व्यतीत करके (अप्रमत्त व प्रमत्त) 8 प्रकृतियों का क्षय करता है।</p> | ||
Line 4,994: | Line 4,994: | ||
<td>सर्व</td> | <td>सर्व</td> | ||
</tr> </table><br/> | </tr> </table><br/> | ||
<p class="HindiText" id="8"><strong>8. मोह सत्त्व स्थान ओघ प्ररूपणा - (<span class="GRef"> कषायपाहुड़ 2/ </span>पृष्ठ), ( | <p class="HindiText" id="8"><strong>8. मोह सत्त्व स्थान ओघ प्ररूपणा - (<span class="GRef"> कषायपाहुड़ 2/ </span>पृष्ठ), (<span class="GRef"> पंचसंग्रह / प्राकृत/5/393-398 </span>), (<span class="GRef"> पंचसंग्रह / प्राकृत/5/405-410 </span>), (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/655-659/846-848 </span>)</strong></p> | ||
<p class="HindiText">द्रष्टव्य - (सत्त्व स्थान में प्रकृतियों का विवरण देखो सारणी सं.4)</p> | <p class="HindiText">द्रष्टव्य - (सत्त्व स्थान में प्रकृतियों का विवरण देखो सारणी सं.4)</p> | ||
<table class="HindiText" cellpadding="2" cellspacing="1" border="1"> | <table class="HindiText" cellpadding="2" cellspacing="1" border="1"> | ||
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</tr> | </tr> | ||
</table><br/> | </table><br/> | ||
<p class="HindiText" id="11"><strong>11. <span class="HindiText">नाम प्रकृति सत्त्वस्थान सामान्य प्ररूपणा</span></strong><span class="HindiText"> - ( | <p class="HindiText" id="11"><strong>11. <span class="HindiText">नाम प्रकृति सत्त्वस्थान सामान्य प्ररूपणा</span></strong><span class="HindiText"> - (<span class="GRef"> पंचसंग्रह / प्राकृत/5/208-216 </span>); (पं.सं./सं./5/222-229); (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/ </span>भाषा./610/817); (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/ </span>भाषा./620-824); (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/ </span>भाषा./759/931) कुल सत्त्व स्थान=13; कुल सत्त्व योग=93।</span></p> | ||
<table class="HindiText" cellpadding="2" cellspacing="1" border="1"> | <table class="HindiText" cellpadding="2" cellspacing="1" border="1"> | ||
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<td><strong>सं.</strong></td> | <td><strong>सं.</strong></td> | ||
<td><strong>स्वामी जीव </strong> | <td><strong>स्वामी जीव </strong><span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/ </span>भाषा./620-824</td> | ||
<td><strong>प्रतिस्थान प्रकृति</strong></td> | <td><strong>प्रतिस्थान प्रकृति</strong></td> | ||
<td><strong>प्रकृतियों का विवरण</strong> ( | <td><strong>प्रकृतियों का विवरण</strong> (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/ </span>भाषा./610/817)</td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr class="center"> | <tr class="center"> | ||
Line 6,109: | Line 6,109: | ||
<td>उपर्युक्त 10-तीर्थंकर</td> | <td>उपर्युक्त 10-तीर्थंकर</td> | ||
</tr> </table><br/> | </tr> </table><br/> | ||
<p class="HindiText" id="12"><strong>12. जीव पदों की अपेक्षा नामकर्म सत्त्व स्थान प्ररूपणा - ( | <p class="HindiText" id="12"><strong>12. जीव पदों की अपेक्षा नामकर्म सत्त्व स्थान प्ररूपणा - (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/ </span>भाषा./623-828)</strong></p> | ||
<table class="HindiText" cellpadding="2" cellspacing="1" border="1"> | <table class="HindiText" cellpadding="2" cellspacing="1" border="1"> | ||
<tr class="center"> | <tr class="center"> | ||
Line 6,183: | Line 6,183: | ||
<td>90</td> | <td>90</td> | ||
</tr> </table><br/> | </tr> </table><br/> | ||
<p class="HindiText" id="13"><strong>13. नाम कर्म सत्त्व स्थान ओघ प्ररूपणा</strong> - ( | <p class="HindiText" id="13"><strong>13. नाम कर्म सत्त्व स्थान ओघ प्ररूपणा</strong> - (<span class="GRef"> पंचसंग्रह / प्राकृत/5/217 </span>); (<span class="GRef"> पंचसंग्रह / प्राकृत/402-417 </span>); (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/692-702/872 </span>); (पं.सं./सं./5/416-428)।</p> | ||
<p><strong>संकेत</strong> - सत्त्व स्थान - प्रकृतियों का विवरण=देखो सारणी सं.11।</p> | <p><strong>संकेत</strong> - सत्त्व स्थान - प्रकृतियों का विवरण=देखो सारणी सं.11।</p> | ||
<table class="HindiText" cellpadding="2" cellspacing="1" border="1"> | <table class="HindiText" cellpadding="2" cellspacing="1" border="1"> | ||
Line 6,251: | Line 6,251: | ||
<td>9, 10, 77, 78, 80</td> | <td>9, 10, 77, 78, 80</td> | ||
</tr> </table><br/> | </tr> </table><br/> | ||
<p class="HindiText" id="14"><strong>14. नाम कर्म सत्त्व स्थान आदेश प्ररूपणा</strong> - - ( | <p class="HindiText" id="14"><strong>14. नाम कर्म सत्त्व स्थान आदेश प्ररूपणा</strong> - - (<span class="GRef"> पंचसंग्रह / प्राकृत/5/218-219,419-472 </span>); (पं.सं./सं./5/230-231); (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/712-738/881-887 </span>)</p> | ||
<table class="HindiText" cellpadding="2" cellspacing="1" border="1"> | <table class="HindiText" cellpadding="2" cellspacing="1" border="1"> | ||
<tr class="center"> | <tr class="center"> | ||
Line 6,649: | Line 6,649: | ||
<td>9, 10</td> | <td>9, 10</td> | ||
</tr> </table><br/> | </tr> </table><br/> | ||
<p class="HindiText" id="15"><strong>15</strong><strong>. नाम प्रकृति सत्त्व स्थान पर्याप्तापर्याप्त प्ररूपणा</strong> - ( | <p class="HindiText" id="15"><strong>15</strong><strong>. नाम प्रकृति सत्त्व स्थान पर्याप्तापर्याप्त प्ररूपणा</strong> - (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/704-712/878 </span>)</p> | ||
<table class="HindiText" cellpadding="2" cellspacing="1" border="1"> | <table class="HindiText" cellpadding="2" cellspacing="1" border="1"> | ||
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Revision as of 16:58, 14 November 2020
सत्त्व विषयक प्ररूपणाएँ -
सारणी में प्रयुक्त संकेत सूची | |
मिथ्या. | मिथ्यात्व |
सम्य. | सम्यक्त्व मोहनीय |
मिश्र. | मिश्र मोहनीय |
अनंतानु. | अनंतानुबंधी चतुष्क |
अप्र. | अप्रत्याख्यान चतुष्क |
प्र. | प्रत्याख्यान चतुष्क |
सं. | संज्वलन चतुष्क |
नपुं. | नपुंसक वेद |
पु. | पुरुष वेद |
स्त्री | स्त्री वेद |
हा.चतु. | हास्त, रति, अरति, शोक |
तिर्य. | तिर्यंच |
मनु. | मनुष्य |
नरकादि द्विक | वह वह गति व आनुपूर्वीय |
नरकादि त्रिक् | वह वह गति, आनुपूर्वीव तथा आयु |
नरकादि चतु. | वह वह गति, आनुपूर्वीय, तथा तद्योग्य शरीर और अंगोपांग |
आनु. | आनुपूर्वीय |
औ. | औदारिक शरीर |
वै. | वैक्रियक |
आ. | आहारक शरीर |
औ.वै.आ.द्विक् | वह वह शरीर व अंगोपांग |
औ.वै.आ.चतु. | वह वह शरीर, अंगोपांग, बंधन तथा संघात |
तीर्थ. | तीर्थंकर |
भु. | भुज्यमान आयु |
ब. | बद्धयमान आयु |
वैक्रि.षटक् | नरक गति आनुपूर्वीय, देवगति, आनुपूर्वीय, वैक्रियक शरीर तथा वैक्रियक अंगोपांग |
1. प्रकृति सत्त्व व्युच्छित्ति की ओघप्ररूपणा
सत्त्व योग्य प्रकृतियाँ - नाना जीवों की अपेक्षा=148। एक जीव की अपेक्षा सर्वत्र 6 विकल्प हैं - 1. बद्धायुष्क तीर्थंकर रहित =145; 2. बद्धायुष्क आहारक द्विक रहित =144; 3. बद्धायुष्क आहारक द्विक व तीर्थंकर रहित =143; 4. अबद्धायुष्क तीर्थंकर रहित =144; 5. अबद्धायुष्क आहाकरद्विक रहित =143; 6. अबद्धायुष्क आहारक द्विक व तीर्थंकर रहित =142; |
नोट - इस प्रकार सत्त्व योग्य प्रकृतियों के आधार पर प्रत्येक गुणस्थान में अपनी ओर से एक जीव की अपेक्षा छह-छह विकल्प बना लेने चाहिए। |
प्रमाण - ( पंचसंग्रह / प्राकृत/3/49-63 ); ( पंचसंग्रह / प्राकृत/5/489-500 ); (पं.सं./सं./3/61-77); (पं.सं./सं./5/462-477); ( गोम्मटसार कर्मकांड/336-343/488-496 )।
गुणस्थान | व्युच्छित्ति की प्रकृतियाँ | असत्त्व | कुल सत्त्व योग्य | असत्त्व | सत्त्व | व्युच्छि. | शेष सत्त्व योग्य | ||||||||
1 | x | x | 148 | x | 148 | x | 148 | ||||||||
2 | x | तीर्थंकर व आ.द्वि | 148 | 3 | 145 | x | 145 | ||||||||
3 | तीर्थंकर | 148 | 1 | 147 | x | 147 | |||||||||
1. | उपशम व क्षयोपशम सम्यक्त्व | ||||||||||||||
4 | x | x | 148 | x | 148 | x | 148 | ||||||||
5 | x | नरकायु | 148 | 1 | 147 | x | 147 | ||||||||
6 | x | नरक व तिर्यंचायु | 148 | 2 | 146 | x | 146 | ||||||||
7 | x | नरक व तिर्यंचायु | 148 | 2 | 146 | x | 146 | ||||||||
8-11 | x | नरक व तिर्यंचायु | 148 | 2 | 146 | x | 146 | ||||||||
2. | क्षायिक सम्यक्त्व - ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/355/512/4 ) | ||||||||||||||
4 | नरकायु, तिर्यंचायु, दर्शनमोह की 3, अनंतानुबंधी 4 =8 | दर्शनमोह, अनंता-7 | 148 | 7 | 141 | 8 | 140 | ||||||||
5 | तिर्यंचायु=1 | x | 140 | x | 140 | 1 | 139 | ||||||||
6 | x | x | 139 | x | 139 | x | 139 | ||||||||
7 | उपशम श्रेणी में=x; क्षपक श्रेणी में=देवायु=1 | x | 139 | x | 139 | x | 138 | ||||||||
3. | क्षायिक सम्यक्त्व उपशम श्रेणी - ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/355/512/4 ) | ||||||||||||||
8-11 | x | x | 138 | x | 138 | x | 138 | ||||||||
4. | क्षायिक सम्यक्त्व क्षपक श्रेणी - ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/336-343/488-496 )
नोट - अबद्धायुष्क ही क्षपक श्रेणी पर चढ़े। |
||||||||||||||
8 | x | x | 138 | x | 138 | x | 138 | ||||||||
9/i | नरकद्विक, तिर्यंच द्वि; 1-4 इंद्रिय, स्त्यानगृद्धित्रिक, आतप, उद्योत, सूक्ष्म, साधारण, स्थानवर=16 | x | 138 | x | 138 | 16 | 122 | ||||||||
9/ii | प्रत्याख्यान 4, अप्रत्याख्यान 4=8 | x | 122 | x | 122 | 8 | 114 | ||||||||
गुणस्थान | पुरुष वेदोदय सहित | ||||||||||||||
मोह सत्त्व स्थान | व्युच्छित्ति की प्रकृतियाँ | सत्त्व योग्य | व्युच्छि. | शेष सत्त्व | |||||||||||
9/iii | 13 | नपुंसक वेद | 114 | 1 | 113 | ||||||||||
9/iv | 12 | स्त्री वेद | 113 | 1 | 112 | ||||||||||
9/v | 11 | हास्यादि छह नोकषाय | 112 | 6 | 106 | ||||||||||
9/vi | 5 | पुरुष वेद | 106 | 1 | 105 | ||||||||||
9/vii | 4 | सं.क्रोध | 105 | 1 | 104 | ||||||||||
9/viii | 3 | सं.मान | 104 | 1 | 103 | ||||||||||
9/ix | 2 | सं.माया | 103 | 1 | 102 | ||||||||||
स्त्री वेदोदय सहित | |||||||||||||||
9/iii | 13 | x | 114 | x | 114 | ||||||||||
9/iv | 13 | स्त्री वेद | 114 | 1 | 113 | ||||||||||
9/v | 12 | नपुंसक वेद | 113 | 1 | 112 | ||||||||||
9/vi | 11 | पुरुष वेद व हास्यादि 6 | 112 | 1 | 105 | ||||||||||
9/vii | 4 | सं.क्रोध | 105 | 1 | 104 | ||||||||||
9/viii | 3 | सं.मान | 104 | 1 | 103 | ||||||||||
9/ix | 2 | सं.माया | 103 | 1 | 102 | ||||||||||
नंपुसक वेदोदय सहित | |||||||||||||||
9/iii | 13 | x | 114 | x | 114 | ||||||||||
9/iv | 13 | x | 114 | x | 114 | ||||||||||
9/v | 13 | स्त्री व नपुंसक वेद | 114 | 2 | 112 | ||||||||||
9/vi | 11 | पुरुष वेद, हास्यादि 6 | 112 | 7 | 105 | ||||||||||
9/vii | 4 | सं.क्रोध | 105 | 1 | 104 | ||||||||||
9/viii | 3 | सं.मान | 104 | 1 | 103 | ||||||||||
9/ix | 2 | सं.माया | 103 | 1 | 102 | ||||||||||
गुणस्थान | व्युच्छित्ति की प्रकृतियाँ | असत्त्व | कुल सत्त्व योग्य | असत्त्व | सत्त्व | व्युच्छि. | शेष सत्त्व योग्य | ||||||||
10 | संज्वलन लोभ=1 | x | 102 | x | 102 | 1 | 101 | ||||||||
12/i | (द्विचरम समय में) निद्रा, प्रचला=2 | x | 101 | x | 101 | 2 | 99 | ||||||||
12/ii | (अंत समय में) 5 ज्ञानावरणी, 4 दर्शनावरणी, 5 अंतराय=14 | x | 99 | x | 99 | 14 | 85 | ||||||||
13 | x | x | 85 | x | 85 | x | 85 | ||||||||
14/i | (द्विचरम समय) 5 शरीर, 5 बंधन, 5 संघात, 6 संस्थान, 6 संहनन, 3 अंगोपांग, 5 वर्ण, 2 गंध, 5 रस, 8 स्पर्श=50+स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, स्वरद्वय, देवद्विक, विहायोगतिद्वय, दुर्भग, निर्माण, अयश, अनादेय, प्रत्येक, अपर्याप्त, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, अनुदयरूप अन्यतम वेदनीय, नीचगोत्र=72 | x | 85 | x | 85 | 72 | 13 | ||||||||
14/ii | (चरम समय में) शेष उदयवाली वेदनीय, मनुष्यत्रिक, पंचेंद्रिय सुभग, त्रस, बादर, पर्याप्त, आदेय, यश, तीर्थंकर, उच्चगोत्र =13 | x | 13 | x | 13 | 13 | x |
2. सातिशय मिथ्यादृष्टि में सर्व प्रकृतियों का सत्त्व चतुष्क - ( धवला 6/207-213 )
द्रष्टव्य - ( धवला 6/268 ) प्रथमोपशम सहित संयमासंयम के अभिमुख सातिशय मिथ्यादृष्टि का स्थिति सत्त्व इस सारणी में कथित अंत:कोटाकोटि से संख्यात गुणा हीन अंत:कोटाकोटि जानना।
संकेत - अंत: को.को.=अंत: कोड़ा कोड़ी सागर; ब.=बध्यमान आयुष्क; भु.=भुज्यमान आयुष्क
द्वि. स्थान=निंब व कांजीर रूप अनुभाग; चतु:स्थान=गुड़ खंड शर्करा अमृत रूप अनुभाग।
क्र. | प्रकृति का नाम | सत्त्व | ||||
प्रकृति | स्थिति | अनुभाग | प्रदेश | |||
1 | ज्ञानावरणीय - | |||||
पाँचों | हैं | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | ||
2 | दर्शनावरणीय - | |||||
1 | निद्रा-निद्रा | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
2 | प्रचला-प्रचला | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
3 | स्त्यानगृद्धि | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
4 | शेष सर्व | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
3 | वेदनीय - | |||||
1 | साता | है | अंत को.को. | चतु:स्थान | अजघन्य | |
2 | असाता | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
4 | मोहनीय - | |||||
1 | दर्शनमोह प्रकृति स्थान | प्रस्थान
(28) (27) |
||||
i | सम्यग् प्रकृति | है नहीं | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
ii | मिथ्यात्व | है है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
iii | सम्यग्मिथ्यात्व | है नहीं | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
सम्यग्मिथ्यात्व | 26 प्र.स्था.में भी है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | ||
2 | चारित्र मोह - | |||||
i | अनंता.चु. | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
ii | अप्रत्याख्यान | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
iii | प्रत्याख्यान | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
iv | संज्वलन चतु. | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
v | सर्व नोकषाय | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
5 | आयु - | |||||
1 | नरक, तिर्यंचगति | ब.भु.है | ब.भु.है | द्विस्थान | अजघन्य | |
2 | मनुष्य
,देवगति |
ब.भु.है | ब.भु.है | चतु.स्थान | अजघन्य | |
6 | नाम - | |||||
1 | नरक, तिर्यंचगति | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
मनुष्य, देवगति | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | ||
2 | 1-4 इंद्रि.जाति | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
पंचेंद्रिय जाति | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | ||
3 | औदारिक शरीर | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
वैक्रियक शरीर | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | ||
आहारक शरीर | नहीं | नहीं | नहीं | नहीं | ||
तैजस कार्माण | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | ||
4 | अंगोपांग | - | स्व स्व | शरीरवत् | - | |
5 | निर्माण | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
6 | बंधन | - | स्व स्व | शरीरवत् | - | |
7 | संघात | - | स्व स्व | शरीरवत् | - | |
8 | सम चतुरस्रसंस्थान | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | |
शेष पाँच | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | ||
9 | वज्र ऋषभ नाराच | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | |
शेष पाँच संहनन | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | ||
10- | वर्ण, गंध, रस व | अंत को.को. | ||||
13 | स्पर्श: प्रशस्त | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | |
अप्रशस्त | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | ||
14 | आनुपूर्वी | - | स्व स्व | शरीरवत् | - | |
15 | अगुरुलघु | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | |
16 | उपघात | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
17 | परघात | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | |
18 | आतप | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | |
19 | उद्योत | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | |
20 | उच्छ्वास | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | |
21 | विहायोगति - | |||||
प्रशस्त | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | ||
अप्रशस्त | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | ||
22 | प्रत्येक | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | |
23 | साधारण | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
24 | त्रस | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | |
25 | स्थावर | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
26 | सुभग | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | |
27 | दुर्भग | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
28 | सुस्वर | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | |
29 | दु:स्वर | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
30 | शुभ | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | |
31 | अशुभ | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
32 | बादर | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | |
33 | सूक्ष्म | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
34 | पर्याप्त | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | |
35 | अपर्याप्त | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
36 | स्थिर | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | |
37 | अस्थिर | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
38 | आदेय | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | |
39 | अनादेय | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
40 | यश:कीर्ति | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | |
41 | अयश:कीर्ति | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
42 | तीर्थंकर | नहीं | नहीं | नहीं | नहीं | |
7 | गोत्र - | |||||
1 | उच्च | है | अंत को.को. | चतु.स्थान | अजघन्य | |
2 | नीच | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य | |
8 | अंतराय - | |||||
पाँचों | है | अंत को.को. | द्विस्थान | अजघन्य |
3. प्रकृति सत्त्व असत्त्व आदेश प्ररूपणा -
द्रष्टव्य - इस सारिणी में केवल सत्त्व तथा असत्त्व योग्य प्रकृतियों का उल्लेख किया गया है, सत्त्व-व्युच्छित्ति का नहीं। उसका कथन सर्वत्र ओघवत् जानना। जिस स्थान में जिस प्रकार प्रकृति का असत्त्व कहा गया है, उस स्थान में उस उस प्रकृति को छोड़ कर शेष प्रकृतियों की व्युच्छित्ति ओघवत् जान लेना। जहां कुछ विशेषता है, वहाँ उसका निर्देश कर दिया गया है। सत्त्व असत्त्व का कथन भी यहां तीन अपेक्षाओं से किया गया है - उद्वेलना रहित सामान्य जीवों की अपेक्षा, स्वस्थान उद्वेलना युक्त जीवों की अपेक्षा और उत्पन्न स्थान उद्वेलना युक्त जीवों की अपेक्षा।
क्र. | मार्गणा | गुणस्थान | असत्त्व | कुल सत्त्व योग्य | असत्त्व | सत्त्व | कुल गुणस्थान | ||||||
1 | गति मार्गणा - | ||||||||||||
(1) | नरक गति - ( गोम्मटसार कर्मकांड/ भाषा./346/498) | ||||||||||||
1 | सामान्य | देवायु =1 | 148 | 1 | 147 | 4 | |||||||
उद्वेलना सहित | देखो आगे पृथक् शीर्षक | ||||||||||||
2 | 1-3 पृथिवी | - | नरकगति सामान्यवत् | - | |||||||||
3 | 4-6 पृथिवी | देवायु, तीर्थंकर =2 | 148 | 2 | 146 | 4 | |||||||
4 | 7 पृथिवी | देव, मनुष्यायु, तीर्थ =3 | 148 | 3 | 145 | 4 | |||||||
(2) | तिर्यंच गति - ( गोम्मटसार कर्मकांड/ भाषा./346/499-500) | ||||||||||||
1 | सामान्य | तीर्थंकर =1 | 148 | 1 | 147 | 5 | |||||||
उद्वेलना सहित | देखो आगे पृथक् शीर्षक | ||||||||||||
अविरत सम्यग्दृष्टि | नरक व मनुष्य आयु की व्युच्छित्ति =2 | 147 | x | 147 | - | ||||||||
संयतासंयत | x | 147 | 2 | 145 | - | ||||||||
2 | पंचेंद्रिय प. | - | सामान्य तिर्यंचवत् | - | |||||||||
3 | योनिमति प. | - | सामान्य तिर्यंचवत् | - | |||||||||
4 | तिर्यंच ल.अप. | तीर्थ, देवायु, नरकायु =3 | 148 | 3 | 145 | 1 | |||||||
(3) | मनुष्यगति - ( गोम्मटसार कर्मकांड/ भाषा./346/503) | ||||||||||||
1 | सामान्य | x | 148 | x | 148 | 14 | |||||||
उद्वेलना सहित | देखो आगे पृथक् शीर्षक | ||||||||||||
संयतासंयत | तिर्यंच, नरकायु =2 | 148 | 2 | 146 | - | ||||||||
2 | मनुष्य पर्याप्त | - | मनुष्य सामान्यवत् | ||||||||||
3 | मनुष्यणी प. (तीर्थ सहित क्षपक) | 7 | स्त्री वेद की व्युच्छित्ति =1 | 146 | x | 146 | - | ||||||
मनुष्यणी प. (तीर्थ सहित क्षपक) | 8 | x | 146 | 1 | 145 | ||||||||
4 | ल.अप.मनुष्य | तीर्थ, देवायु, नरकायु =3 | 148 | 3 | 145 | 1 | |||||||
(4) | देवगति - ( गोम्मटसार कर्मकांड/ भाषा/346/503) | ||||||||||||
1 | सामान्य | नरकायु =3 | 148 | 1 | 147 | 4 | |||||||
उद्वेलना सहित | देखो आगे पृथक् शीर्षक | ||||||||||||
2 | भवनत्रिक देव | तीर्थंकर, नरकायु =2 | 148 | 2 | 146 | 4 | |||||||
3 | सौधर्म ईशानदेवी | - | भवनत्रिकवत् | - | |||||||||
4 | सौधर्म-सहस्रार | - | सामान्य देववत् | - | |||||||||
5 | आनत-नवग्रैवेयक | नरक, तिर्यंचायु =2 | 148 | 2 | 146 | 4 | |||||||
6 | अनुदिश-सर्वार्थसिद्धि | नरक, तिर्यंचायु =2 | 148 | 2 | 146 | 1 चौथा | |||||||
(5) | चारों गति के उद्वेलना सहित जीव | ||||||||||||
1 | सामान्य(3 प्रकृतियों के असत्त्व वाले) | देवायु, तीर्थंकर,नरकायु=3 | 148 | 3 | 145 | - | |||||||
2 | आहर.द्वि.की उद्वेलना सहित को | आहारक द्विक =2 | 145 | 2 | 143 | ||||||||
3 | सम्यग् की द्वि.उद्वेलना सहित को | सम्यक्त्व मोह =1 | 143 | 1 | 142 | ||||||||
4 | मिश्र की द्वि. उद्वेलना सहित को | मिश्र मोह =1 | 142 | 1 | 141 | ||||||||
2 | इंद्रिय मार्गणा - | ||||||||||||
1-4 इंद्रिय | |||||||||||||
1 | सामान्य उद्वेलना सहित को - | तीर्थंकर, देव, नरकायु =3 | 148 | 3 | 145 | 2 | |||||||
आहा.द्वि. =2 | 145 | 2 | 143 | 2 | |||||||||
सम्यक् प्रकृति =1 | 143 | 1 | 142 | 2 | |||||||||
(i) | उत्पन्न उद्वेलना | मिश्र =1 | 142 | 1 | 141 | 2 | |||||||
(ii) | उत्पन्न उद्वेलना | उच्चगोत्र =1 | 141 | 1 | 140 | 2 | |||||||
(iii) | उत्पन्न उद्वेलना | मनुष्यद्विक =2 | 140 | 2 | 138 | 2 | |||||||
i | स्वस्थान उद्वेलना | देवद्विक =2 | 141 | 2 | 139 | 2 | |||||||
ii | स्वस्थान उद्वेलना | नरक चतु.(नरक द्विक, क्रि.द्विक) =4 | 139 | 4 | 135 | 2 | |||||||
iii | उत्पन्न स्थान उद्वेलना से युक्त होने पर | उच्चगोत्र मनुष्य द्विक =3 | 139 | 3 | 136 | 2 | |||||||
iv | उत्पन्न स्थान उद्वेलना से युक्त होने पर | उच्चगोत्र मनुष्य द्विक =3 | 135 | 3 | 132 | 2 | |||||||
2 | पंचेंद्रिय | x | 148 | x | 148 | 14 | |||||||
3 | काय मार्गणा - ( गोम्मटसार कर्मकांड/ भाषा/349-351/503-506) | ||||||||||||
1 | पृथि.अप.वन.सा | देवायु, नरकायु, तीर्थ. =3 | 148 | 3 | 145 | 2 | |||||||
पृथि.द्विविध उद्वेलना सहित | - | 1-4 इंद्रियवत् | - | ||||||||||
2 | तेज.वातकाय.सा. | देव, नरक, मनुष्यायु, तीर्थ.=4 | 148 | 4 | 144 | 1 | |||||||
तेज.उत्पन्न स्थान उद्वेलना सहित | आहारक द्विक =2 | 144 | 2 | 142 | 1 | ||||||||
सम्यक्त्व मोह =1 | 142 | 1 | 141 | 1 | |||||||||
मिश्र मोह =1 | 141 | 1 | 140 | 1 | |||||||||
देव द्विक =2 | 140 | 2 | 138 | 1 | |||||||||
नरक द्वि.,वैक्रि.द्वि =4 | 138 | 4 | 134 | 1 | |||||||||
स्व स्थान में उद्वेलना सहित | उच्च गोत्र =1 | 134 | 1 | 133 | 1 | ||||||||
मनुष्य द्वय =2 | 133 | 2 | 131 | 1 | |||||||||
3 | पंचेंद्रिय - | x | 148 | x | 148 | 14 | |||||||
4 | योगमार्गणा - ( गोम्मटसार कर्मकांड/ भाषा/352-353/506-508) | ||||||||||||
1 | चार मन, चार वचन व औदारिक काय योग | x | 148 | x | 148 | 12,13 | |||||||
2 | आहारक व आ.मिश्र | नरकायु, तिर्यंचायु =2 | 148 | 2 | 146 | 1(6ठा) | |||||||
3 | वैक्रियक | x | 148 | x | 148 | 4 | |||||||
1 | तीर्थंकर प्रकृतिवाला तीसरे नरक तक वा देवगति में जाता है। | ||||||||||||
4 | वैक्रियक मिश्र | तिर्यंच, मनुष्यायु =2 | 148 | 2 | 146 | 4 | |||||||
1,4 | 146 | x | 146 | - | |||||||||
2 | आ.द्वि.,तीर्थ.,नरकायु =4 | 146 | 4 | 142 | - | ||||||||
5 | औदारिक मिश्र. | देवायु, नरकायु =2 | 148 | 2 | 146 | 1,2,4व 13 वां | |||||||
6 | कार्माण | 148 | x | 148 | 4 | ||||||||
- वैक्रियक मिश्र व सयोगीवत् - | - | - | - | - | |||||||||
5 | वेद मार्गणा - ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/354/508/1 ) | ||||||||||||
1 | पुरुष वेद | x | 148 | x | 148 | 14 | |||||||
2 | स्त्री वेद सा. | x | 148 | x | 148 | 14 | |||||||
स्त्री क्षपक श्रेणी | तीर्थंकर | 148 | 1 | 147 | 6(8-14) | ||||||||
3 | नपुंसक वेद | - स्त्रीवेदवत् - | - | - | - | - | |||||||
6 | कषाय मार्गणा - | ||||||||||||
क्रोधादि में गुणस्थान | 9 | लोभ में गुणस्थान 10 | 148 | x | 148 | 9 या 10 | |||||||
7 | ज्ञान मार्गणा - ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/354/508/6 ) | ||||||||||||
1 | कुमति, कुश्रुत, विभंग | x | 148 | x | 148 | 2 | |||||||
2 | मति, श्रुत, अवधि | x | 148 | x | 4-12 | ||||||||
3 | मन:पर्यय | नरक तिर्यंचायु =2 | 148 | 2 | 146 | 6-12 | |||||||
4 | केवल | ओघवत् व्युच्छित्ति =63 | 148 | 63 | 85 | 13-14 | |||||||
8 | संयम मार्गणा - ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/354/508/9 ) | ||||||||||||
1 | सामान्य | ||||||||||||
2 | सामायिक छेदोपस्था. | नरक तिर्यंचायु =2 | 148 | 2 | 146 | 6-9 | |||||||
3 | परिहार विशुद्धि | नरक तिर्यंचायु =2 | 148 | 2 | 146 | 6-7 | |||||||
4 | सूक्ष्म सांपराय (उप.) | नरक तिर्यंचायु =2 | 148 | 2 | 146 | 1 (10) | |||||||
सूक्ष्म सांपराय (क्षपक) | ओघवत् 46 व्युच्छि. =46 | 148 | 46 | 102 | 10 वां | ||||||||
5 | यथाख्यात उप.xउपशम. | नरक, तिर्यंचायु =2 | 148 | 2 | 146 | 1 (11वां) | |||||||
यथाख्यात क्षा. (xउपशम.) | नरक, तिर्यंच, देवायु,दर्शन मोह की 3, अनंतानुबंधी 4 =10 | 148 | 10 | 138 | 11 वां | ||||||||
यथाख्यात (क्षा.xक्षपक.) | ओघवत् व्युच्छिन्न 47=47 | 148 | 47 | 101 | 12-14 | ||||||||
6 | संयतासंयत | नरकायु =1 | 148 | 1 | 147 | 1 (5 वां) | |||||||
7 | असंयत | x | 148 | x | 148 | 1-4 | |||||||
9 | दर्शन मार्गणा - ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/354/509/5 ) | ||||||||||||
1 | चक्षु, अचक्षु दर्शन | x | 148 | x | 148 | 1-12 | |||||||
2 | अवधि दर्शन | x | 148 | x | 148 | 4-12 | |||||||
3 | केवल दर्शन | ओघवत् व्युचिछन्न =63 | 148 | 63 | 85 | 13-14 | |||||||
10 | लेश्या मार्गणा - ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/354/509/7 ) | ||||||||||||
1 | कृष्ण, नील | तीर्थंकर =1 | 148 | 1 | 147 | 4 | |||||||
2 | कापोत | 1 | x | 148 | x | 148 | 4 | ||||||
3 | पीत, पद्म | x | 148 | x | 148 | 1-7 | |||||||
1 | तीर्थंकर =1
(तीर्थ.सत्त्व वाला नरक जाने के सम्मुख होय तभी सम्यक्त्व को छोड़े। परंतु तब लेश्या भी कापोत हो जाये। क्योंकि शुभ लेश्या में सम्यक्त्व की विराधना नहीं होती।) |
148 | 1 | 147 | - | ||||||||
4 | शुक्ल | 148 | x | 148 | 8-13 | ||||||||
11 | भव्यत्व मार्गणा - ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/354-355/509-510/16 ) | ||||||||||||
1 | भव्यत्व | x | 148 | x | 148 | 14 | |||||||
2 | अभव्यत्व | तीर्थ., सम्य.,मिश्रमोह, आ.द्वि.,आ.बंधन संघात द्वय=7 | 148 | 7 | 141 | 1 | |||||||
12 | सम्यक्त्व मार्गणा - ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/355/512/1 ) | ||||||||||||
1 | क्षायिक सम्यक्त्व | नरक, तिर्यंचायु, दर्शनमोह 3, अनंतानुबंधी =9 | 148 | 9 | 139 | 4-14 | |||||||
2 | वेदक सम्यक्त्व | x | 148 | x | 148 | 4-7 | |||||||
3 | उपशम सम्यक्त्व | x | 148 | x | 148 | 4-11 | |||||||
4 | द्वितीयोपशम ( लब्धिसार 220 ) | अनंतानुबंधी 4,नरक, तिर्यंचायु =6 | 148 | 6 | 142 | 4-11 | |||||||
4 | सम्यग्मिथ्यात्व | तीर्थंकर =1 | 148 | 1 | 147 | 1 (3 रा) | |||||||
5 | सासादन | तीर्थंकर, आ.द्वि. =3 | 148 | 3 | 145 | 1 (2 रा) | |||||||
6 | मिथ्यादृष्टि | x | 148 | x | 148 | 1 | |||||||
13 | संज्ञी मार्गणा - ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/355/513/7 ) | ||||||||||||
1 | संज्ञी | x | 148 | x | 148 | 1-12 | |||||||
2 | असंज्ञी | तीर्थंकर =1 | 148 | 1 | 147 | 2 | |||||||
14 | आहारक मार्गणा - ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/355/512/9 ) | ||||||||||||
1 | आहारक | x | 148 | x | 148 | 13 | |||||||
2 | अनाहारक | x | 148 | x | 148 | 5 (1,2,4,13,14) | |||||||
1,2,4 | - कार्माण काय योगवत् - | - | - | - | - | ||||||||
13 | - ओघवत् - | - | - | - | - |
4. मोह प्रकृति सत्त्व की विभक्ति अविभक्ति
प्रमाण - कषायपाहुड़ 2/101/83-87 ।
संकेत - 28 प्र.=मोह की सर्व 28 प्रकृतियाँ 7 प्र.=दर्शन मोह 3+अनंतानुबंधी 4; 6प्र.=मिथ्यात्व रहित उक्त 7; 2 प्र.=सम्य., व मिश्र मोह वि.=विभक्ति; अवि.=अविभक्ति। शेष के लिए देखो सारणी सं.1 का प्रारंभ।
प्रमाण | मार्गणा | विभक्ति अविभक्ति की प्रकृति या शेष की विभक्ति | ||||
28 प्र. | 7 प्र. | 6 प्र. | 2 प्र. | अन्य विकल्प | ||
1 | गति मार्गणा | |||||
83 | नरक गति सामान्य | x | 7 प्र. | x | x | x |
84 | प्रथम पृथिवी | x | 7 प्र. | x | x | x |
84 | 2-7 पृथिवी | x | x | 6 प्र. | x | x |
84 | तिर्यंच सामान्य | x | 7 प्र. | x | x | x |
84 | पंचेंद्रिय ति.सा.प. | x | 7 प्र. | x | x | x |
84 | तिर्यंच योनिमति | x | x | x | 6 प्र. | x |
84 | पंचे.ति.ल.अप. | x | x | x | 6 प्र. | x |
83 | मनुष्य त्रिक | x | x | x | x | x |
84 | मनुष्य ल.अप. | x | x | x | x | x |
84 | देव सामान्य | x | x | x | x | x |
84 | भवनत्रिक देवी | x | x | x | x | x |
84 | सर्वकल्प वासी | x | x | x | x | x |
2 | इंद्रिय मार्गणा | |||||
84 | सर्व एकेंद्रिय प.अप. | x | x | x | x | x |
84 | सर्व विकलेंद्रिय प.अप. | x | x | x | x | x |
83 | सर्व पंचेंद्रिय सा.प. | x | x | x | x | x |
84 | सर्व पंचे.ल.अप. | x | x | x | x | x |
3 | काय मार्गणा | - | इंद्रिय मार्गणावत् | - | - | |
4 | योग मार्गणा | |||||
83 | पाँचों मनोयोग | x | x | x | x | x |
83 | पाँचों वचनयोग | x | x | x | x | x |
83 | काय योग सामान्य | x | x | x | x | x |
83 | औ.औ.मिश्र | x | x | x | x | x |
84 | वै.,वै.मिश्र | x | x | x | x | x |
85 | आ.,आ.मिश्र | x | x | x | x | x |
83 | कार्माण | x | x | x | x | x |
5 | वेद मार्गणा | |||||
85 | स्त्री वेद | x | x | x | x | अप्रत्य.आदि 12 कषाय.दर्शन मोह 3, नपु.=16 की वि.अवि.शेष 12 की अवि.। |
85 | पुरुष वेद | x | x | x | x | संज्व.4, व पुरुष वेद के बिना 23 की विभक्ति अवि.और इन 5 की वि.। |
85 | नपुंसक वेद | x | x | x | x | 12 कषाय, दर्शनमोह 3, नपुं. इन 16 की वि.अवि.। शेष 12 की वि.। |
अपगत वेद | x | x | x | x | अनंतानु 4 के बिना 24 वि.अवि.अनंतानु.की विभक्ति। | |
6 | कषाय मार्गणा | |||||
86 | क्रोध | x | x | x | x | संज्व.4 बिना 24 की वि.अवि. |
86 | मान | x | x | x | x | संज्व.मान, माया, लोभ बिना 25 की वि.अवि.। |
86 | माया | x | x | x | x | संज्व.माया, लोभ, बिना 27 की वि.अवि.। |
86 | लोभ | x | x | x | x | संज्व.लोभ बिना 27 की वि.अवि.। |
86 | अकषायी | x | x | x | x | अनंतानु.4 बिना 24 की वि.अवि.। |
7 | ज्ञान मार्गणा | x | x | x | x | x |
84 | मति, श्रुत, अज्ञान | x | x | x | x | x |
84 | विभंग ज्ञान | x | x | x | x | x |
83 | मति, श्रुत, अवधि | x | x | x | x | x |
83 | मन:पर्यय | x | x | x | x | x |
8 | संयम मार्गणा | |||||
83 | संयम सा. | x | x | x | x | x |
86 | सामायि.छेदो. | x | x | x | x | संज्व.लोभ बिना 27 की वि.अवि.। |
84 | परिहार विशुद्धि | x | x | x | x | x |
86 | सूक्ष्म सांपराय | x | x | x | x | संज्व.लोभ अनंता.4 बिना 23 की वि.अवि.। |
86 | यथाख्यात | x | x | x | x | अनंता.4 बिना 24 की वि.अवि.। |
84 | संयतासंयत | x | x | x | x | x |
x | असंयत | x | x | x | x | x |
9 | दर्शन मार्गणा | |||||
83 | चक्षु, अचक्षु | x | x | x | x | x |
83 | अवधि | x | x | x | x | x |
10 | लेश्या मार्गणा | |||||
84 | कृष्णादि 5 | x | x | x | x | x |
84 | शुक्ल | x | x | x | x | x |
11 | भव्य मार्गणा | |||||
83 | भव्य | x | x | x | x | |
87 | अभव्य | x | x | x | x | सम्य.,मिश्र मोह बिना 26 की वि.अवि.। |
12 | सम्यक्त्व मार्गणा | |||||
83 | सम्यक्त्व सा. | x | x | x | x | x |
87 | क्षायिक | x | x | x | x | अनंता.4, दर्शनमोह 3 बिना 21 की वि.अवि.। |
87 | वेदक | x | x | x | x | अनंता.4, सम्य., मिश्र मोह बिना 22 की वि.अवि.। |
87 | उपशम | x | x | x | x | अनंता.4 बिना 24 की वि.अवि.। |
87 | सम्यग्मिथ्यादृष्टि | x | x | x | x | अनंता.4 बिना 24 की वि.अवि.। |
87 | सासादन | x | x | x | x | सर्व 28 की वि.।xकी वि.अवि.। |
मिथ्यादृष्टि | x | x | x | x | x | |
13 | संज्ञी मार्गणा | |||||
83 | संज्ञी | x | x | x | x | x |
85 | असंज्ञी | x | x | x | x | x |
14 | आहारक मार्गणा | |||||
83 | आहारक | x | x | x | x | x |
83 | अनाहारक | x | x | x | x | x |
5. मूलोत्तर प्रकृति सत्त्व स्थानों की ओघ प्ररूपणा।
संकेत - ब.=बद्धयमान आयुष्क; भु.=भुज्यमान आयुष्क। | |||||||||||||||||
स्थान सं. | अबद्धायुष्क के भंग | कुल सत्त्व योग | असत्त्व | सत्त्व प्रकृति | प्रति स्थान भंग | बद्धायुष्क के भंग | प्रति स्थान भंग | अबद्धायुष्क के भंग | |||||||||
स्थान का स्वामी | असत्त्व की प्रकृतियाँ | विवरण | विवरण | ||||||||||||||
1 | मिथ्यादृष्टि - ( गोम्मटसार कर्मकांड/366-371/522-535 )। कुल स्थान 18 (बद्धा.10, अबद्धा.8); कुल भंग=50 (बद्धा.26,अबद्धा.24) | ||||||||||||||||
1 | तीर्थंकर नरकायु बद्ध मनुष्य नरक जाने के सम्मुख | तिर्यंच, देवायु | 148 | 2 | 146 | 1 | भुज्यमान मनुष्य, बद्धायमान नरक | 1 | भुज्यमान मनुष्य | ||||||||
2 | तीर्थंकर रहित कोई भी जीव | भु.ब.बिना 2 आयु तीर्थ.=3 | 148 | 3 | 145 | 5 | (देखो आयु कर्म के सत्त्व स्थान) | 4 | अन्यतम भुज्यमानायु | ||||||||
3 | तिर्यं,देवायु,आ.चतु. =6 | 148 | 6 | 142 | 1 | मनुष्य नरकायु सहित | 1 | केवल 1 भुज्यमानायु | |||||||||
4 | कोई2आयु,आ.चतु.तीर्थ.=7 | 148 | 7 | 141 | 5 | (देखो आयु कर्म के सत्त्व स्थान) | 4 | अन्यतम भुज्यमानायु | |||||||||
5 | उपरोक्त7+सम्यक्त्व =1 | 141 | 1 | 140 | 5 | (देखो आयु कर्म के सत्त्व स्थान) | 4 | अन्यतम भुज्यमानायु | |||||||||
6 | उपरोक्त+सम्यक्त्व+मिश्र=2 | 141 | 2 | 139 | 5 | (देखो आयु कर्म के सत्त्व स्थान) | 4 | अन्यतम भुज्यमानायु | |||||||||
7 | देवद्विक की उद्वेलना वाला चतुरिंद्रिय | उपरोक्त 9 व देवद्विक =2 | 139 | 2 | 137 | 1 | भुज्यमान तिर्यंच, बद्धयमान मनुष्य अथवा भु.ति., ब.ति., भु.मनुष्य, ब.ति. | 4 | अन्यतम भुज्यमानायु | ||||||||
8 | नरक द्विक, वै.द्वि, देव द्वि.की, की उद्वेलना वाला चतुरिंद्रिय | उपरोक्त 11+(नरक द्विक, देवद्विक वैक्रियक द्विक)=6 | 137 | 6 | 131 | 1 | भुज्यमान तिर्यंच, बध्यमान मनुष्य | 2 | मनुष्य या तिर्यंचायु | ||||||||
9 | उच्चगोत्र के उद्वेलना वाला तेज.,वात कायिक | उपरोक्त 17+मनुष्यायु उच्चगोत्र =2 | 131 | 2 | 129 | 1 | भुज्यमान तिर्यंच, बध्यमान तिर्यंच | x | पुनरुक्त | ||||||||
10 | मनुष्यद्विक की उद्वेलना वाला उपरोक्त तेज वात कायिक | उपरोक्त 19 व मनुष्य द्विक | 129 | 2 | 127 | 1 | भुज्यमान तिर्यंच, बध्यमान तिर्यंच | x | पुनरुक्त | ||||||||
26 | 24 | ||||||||||||||||
2 | सासादन - ( गोम्मटसार कर्मकांड/372-375/536-539 )। कुल स्थान=6 (बद्धा.2, अबद्धा.4); कुल भंग=18 (बद्धा.6,अबद्धा.12) | ||||||||||||||||
1 | भु.ब.बिना 2 आयु, तीर्थ.,आ.चतु. | 148 | 141 | 5 | (देखो आयु कर्म के सत्त्व स्थान) | 4 | |||||||||||
2 | आ.चतु के बंधवाले किसी को सासादन की प्राप्तिहोय | भु.ब.बिना 2 आयु,तीर्थ.=3 | 148 | 145 | 1 | 2 | |||||||||||
3 | नं.1 की 7 - ब.आयु =1 | 145 | 144 | x | x | 4 | |||||||||||
4 | नं.2 की 3 - ब.आयु =1 | 145 | 144 | x | x | 2 | |||||||||||
6 | 12 | ||||||||||||||||
3 | मिश्र - ( गोम्मटसार कर्मकांड/372-375/536-539 )। कुल स्थान 8 (बद्धा.14, अबद्धा.4); कुल भंग=36 (बद्धा.20;अबद्धा.16) | ||||||||||||||||
1 | भु.ब.बिना 2 आयु, तीर्थंकर | 148 | 3 | 145 | 5 | (देखो आयु कर्म के सत्त्व स्थान) | 4 | अन्यतम भुज्यमान | |||||||||
2 | उपरोक्त 3 ÷ अनंता.4 | 145 | 4 | 145 | 5 | (देखो आयु कर्म के सत्त्व स्थान) | 4 | अन्यतम भुज्यमान | |||||||||
3 | उपरोक्त 3 + आ.चतु. | 145 | 4 | 141 | 5 | (देखो आयु कर्म के सत्त्व स्थान) | 4 | अन्यतम भुज्यमान | |||||||||
4 | उपरोक्त 7 + अनंता.4 | 141 | 4 | 137 | 5 | (देखो आयु कर्म के सत्त्व स्थान) | 4 | अन्यतम भुज्यमान | |||||||||
20 | 16 | ||||||||||||||||
4 | अविरत सम्यग्दृष्टि - ( गोम्मटसार कर्मकांड/376-381/540-549 ) कुल स्थान=40 (बद्धा.=20, अबद्धा.=20); कुल भंग=120 (बद्धा.=60,अबद्धा.=60) | ||||||||||||||||
1 | तीर्थंकर सत्त्व तिर्य.को न हो। | तिर्यं. व अन्य कोईआयु =2 | 148 | 2 | 146 | 2 | भु.मनु.,ब.नरक,भु.मनु.,ब.देव Vice versa | 3 | |||||||||
2 | उपरोक्त 2+अनंता.4 =4 | 146 | 4 | 142 | 2 | भु.मनु.,ब.नरक,भु.मनु.,ब.देव Vice versa | 3 | ||||||||||
3 | उपरोक्त 6+मिथ्यात्व =1 | 142 | 1 | 141 | 2 | भु.मनु.,ब.नरक,भु.मनु.,ब.देव Vice versa | 1 | ||||||||||
4 | उपरोक्त 6 + मिश्र व मिथ्यात्व = 2 | 142 | 2 | 140 | 2 | भु.मनु.,ब.नरक,भु.मनु.,ब.देव Vice versa | 3 | ||||||||||
5 | उपरोक्त 6+दर्शनमोह 3=3 | 142 | 3 | 139 | 2 | भु.मनु.,ब.नरक,भु.मनु.,ब.देव Vice versa | 3 | ||||||||||
6 | तीर्थ.,भु.ब.बिना 2 आयु=3 | 148 | 3 | 145 | 5 | (देखो आयु कर्म के सत्त्व स्थान) | 4 | ||||||||||
7 | भु.ब. बिना 2 आयु, अन.4, तीर्थ.= 7 | 148 | 7 | 141 | 5 | (देखो आयु कर्म के सत्त्व स्थान) | 4 | ||||||||||
8 | मनुष्य | उपरोक्त 7+मिथ्यात्व =8 | 148 | 8 | 140 | 3 | भु.मनु.,ब.ति.,नारक, देव। ब.मनु.,पुनरुक्त | 1 | |||||||||
9 | उपरोक्त7+मिथ्यात्व,मिश्र=9 | 148 | 9 | 139 | 3 | भु.मनु.,ब.ति.,नारक, देव। ब.मनु.,पुनरुक्त | 4 | ||||||||||
10 | उपरोक्त7+दर्शनमोह 3=10 | 148 | 10 | 138 | 4 | भु.नरक,ब.मनु.,भु.ति.ब.देव, भु.मनु.,ब.देव,भु.मनु.ब.ति.। | 3 | ||||||||||
11 | ति.व अन्य कोई आयु, आ.चतु.= 6 | 148 | 6 | 142 | 2 | भु.मनु.,ब.नरक,भु.मनु.,ब.देव Vice versa | 3 | ||||||||||
12 | +4 अनंतानु.= 4 | 142 | 4 | 138 | 2 | भु.मनु.,ब.नरक,भु.मनु.,ब.देव Vice versa | 3 | ||||||||||
13 | +मिथ्यात्व = 1 | 138 | 1 | 137 | 2 | भु.मनु.,ब.नरक,भु.मनु.,ब.देव Vice versa | 1 | ||||||||||
14 | + मिश्र = 1 | 137 | 1 | 116 | 2 | भु.मनु.,ब.नरक,भु.मनु.,ब.देव Vice versa | 3 | ||||||||||
15 | + सम्यक्त्व = 1 | 136 | 1 | 135 | 2 | भु.मनु.,ब.नरक,भु.मनु.,ब.देव Vice versa | 3 | ||||||||||
16 | अन्यतम 2 आयु, तीर्थ., आ.चतु.= 7 | 148 | 7 | 141 | 5 | (देखो आयु कर्म के सत्त्व स्थान) | 4 | ||||||||||
17 | + 4अनंतानु.= 4 | 141 | 4 | 137 | 5 | (देखो आयु कर्म के सत्त्व स्थान) | 4 | ||||||||||
18 | + मिथ्यात्व = 1 | 137 | 1 | 136 | 3 | भु.मनु.ब.ति.,नारक, देव/ब.मनुष्य, पुनरुक्त | 1 | ||||||||||
19 | +मिश्र =1 | 136 | 1 | 135 | 3 | भु.मनु.ब.ति.,नारक, देव/ब.मनुष्य, पुनरुक्त | 4 | ||||||||||
20 | +सम्यक्त्व =1 | 135 | 1 | 134 | 4 | देखो नं. (10) | 4 | ||||||||||
60 | 60 | ||||||||||||||||
5 | देश संयत - ( गोम्मटसार कर्मकांड/382/550 ) कुल स्थान=40 (बद्धा.=20, अबद्धा.=20); कुल भंग=48 (बद्धा.=24,अबद्धा.=24) | ||||||||||||||||
1-5 | अविरतवत् | अविरतवत् | 1x5 | बीसों स्थानों में भु.मनु.,ब.देव का एक भंग | 1x5 | भु.मनुष्य | |||||||||||
6,7 | अविरतवत् | अविरतवत् | 2x2 | भु.मनु.,ब.देव/भु.ति.,ब.देव। | 2x2 | भु.मनु.या तिर्यंच | |||||||||||
8-15 | अविरतवत् | अविरतवत् | 1x8 | भु.मनु.,ब.देव का एक भंग सर्वत्र | 1x8 | भु.मनुष्य सर्वत्र | |||||||||||
16-17 | अविरतवत् | अविरतवत् | 2x2 | सं.6,7 वत् | 2x2 | सं.6,7 वत् | |||||||||||
18-20 | अविरतवत् | अविरतवत् | 1x3 | सं. 1-5 वत् | 1x3 | सं. 1-5 वत् | |||||||||||
24 | 24 | ||||||||||||||||
6-7 | प्रमत्त अप्रमत्त - ( गोम्मटसार कर्मकांड/382/550 ) कुल स्थान=40 (बद्धा.=20, अबद्धा.=20); कुल भंग=120 (बद्धा.=60,अबद्धा.=60) | ||||||||||||||||
1-20 | अविरतवत् | अविरतवत् | 1x20 | भु.मनु.,बद्धा.देव का एक भंग सर्वत्र | 1x20 | भु.मनुष्य सर्वत्र | |||||||||||
20 | 20 |
8. उपशम श्रेणी/उप.क्षा.सम्यक्त्व (अपूर्वकरण)
( गोम्मटसार कर्मकांड/383-384/551-553 ) - स्थान=24; भंग=24।
द्रष्टव्य - कनकनंदि सिद्धांत चक्रवर्ती के अनुसार यहाँ स्थान नं.1,2,7,8,13,14,11 इन आठ स्थानों को छोड़कर 16 स्थान व 16 भंग होते हैं। ( गोम्मटसार कर्मकांड 391/558 )।
संकेत - देखें सारणी सं - 1 का प्रारंभ।
स्थान सं. | असत्त्ववाली प्रकृतियाँ | पहले सत्त्व योग्य | असत्त्व | अब सत्त्व योग्य | भंग | विवरण |
1 | नरक, तिर्यंच आयु | 148 | 2 | 146 | 1 | बद्धायु मनुष्य |
2 | 145 | 1 | अबद्धायु मनुष्य | |||
3 | अनंतानुबंधी चतु. | 146 | 4 | 142 | 1 | बद्धायु मनुष्य |
4 | 141 | 1 | अबद्धायु मनुष्य | |||
5 | दर्शनमोह त्रिक. | 142 | 3 | 139 | 1 | बद्धायु मनुष्य |
6 | 138 | 1 | अबद्धायु मनुष्य | |||
7 | नरक-तिर्यंच आयु+तीर्थंकर | 148 | 3 | 145 | 1 | बद्धायुष्क मनुष्य |
8 | 144 | 1 | अबद्धायु मनुष्य | |||
9 | अनंतानुबंधी चतु. | 145 | 4 | 141 | 1 | बद्धायु मनुष्य |
10 | 140 | 1 | अबद्धायु मनुष्य | |||
11 | दर्शनमोह त्रिक | 141 | 3 | 138 | 1 | बद्धायु मनुष्य |
12 | 137 | 1 | अबद्धायु मनुष्य | |||
13 | नरक-तिर्यंच आयु+आहा.चतु. | 148 | 6 | 142 | 1 | बद्धायु मनुष्य |
14 | 141 | 1 | अबद्धायु मनुष्य | |||
15 | अनंतानुबंधी चतुष्क | 142 | 4 | 138 | 1 | बद्धायु मनुष्य |
16 | 137 | 1 | अबद्धायु मनुष्य | |||
17 | दर्शनमोह त्रिक. | 138 | 3 | 135 | 1 | बद्धायु मनुष्य |
18 | 134 | 1 | अबद्धायु मनुष्य | |||
19 | नरक-तिर्य.आयु+आहा.चतु.+ तीर्थं. | 148 | 7 | 141 | 1 | बद्धायु मनुष्य |
20 | 140 | 1 | अबद्धायु मनुष्य | |||
21 | अनंतानुबंधी चतुष्क | 141 | 4 | 137 | 1 | बद्धायु मनुष्य |
22 | 136 | 1 | अबद्धायु मनुष्य | |||
23 | दर्शनमोह त्रिक | 137 | 3 | 134 | 1 | बद्धायु मनुष्य |
24 | 133 | 1 | अबद्धायु मनुष्य | |||
9-11 उपशम श्रेणी/उपशम व क्षा.सम्यक्त्व (अनिवृत्तिकरणादि उपशांत कषाय पर्यंत)। ( गोम्मटसार कर्मकांड/385/553 ) स्थान 24; भंग 24। द्रष्टव्य - आ.कनकनंदि के अनुसार स्थान 16, भंग=16। |
8. क्षपक श्रेणी (अपूर्वकरण)
( गोम्मटसार कर्मकांड/385/553 ) - स्थान=4; भंग=4।
द्रष्टव्य - बद्धायुष्क को क्षपक श्रेणी संभव नहीं अत: केवल अबद्धायुष्क मनुष्य के ही स्थान हैं।
स्थान सं. | असत्त्व वाली प्रकृतियाँ | पहले सत्त्व योग्य | असत्त्व | अब सत्त्व योग्य | भंग | विवरण | ||||||||||
1 | तीन आयु+अनंत चतु.+दर्शनमोह त्रिक. | 148 | 10 | 138 | 1 | x | ||||||||||
2 | तीर्थंकर | 138 | 1 | 137 | 1 | x | ||||||||||
3 | आहारक चतु. | 138 | 4 | 134 | 1 | x | ||||||||||
4 | आहारक चतु.+तीर्थंकर | 138 | 5 | 133 | 1 | x | ||||||||||
9. क्षपक श्रेणी (अनिवृत्तिकरण) ( गोम्मटसार कर्मकांड/386-388/554-555 ) - स्थान=36; भंग= द्रष्टव्य - गो.सा.में पुरुष वेदी व स्त्रीवेदी दोनों के समान आलाप मानकर कुल स्थान 36 बताये हैं, पर सारणी 1 के अनुसार पुरुष व स्त्रीवेदी के आलापों में कुछ अंतर होने से यहाँ स्थान 44 बनते हैं। संकेत - पुं.वेदी=पुरुषवेदोदय सहित श्रेणी चढ़ने वाला। स्त्रीवेदी - स्त्रीवेदोदय सहित श्रेणी चढ़ने वाला। नपुं.वेदी=नपुंसकवेदोदय सहित श्रेणी चढ़ने वाला। द्रष्टव्य - केवल अबद्धायुष्क मनुष्य के आलाप ही संभव है क्योंकि बद्धायुष्क क्षपक श्रेणी पर नहीं चढ़ सकता। |
||||||||||||||||
गुणस्थान | सत्त्व स्थान | असत्त्ववाली प्रकृतियाँ | पहले सत्त्व योग्य | असत्त्व | अब सत्त्व योग्य | भंग | विवरण | |||||||||
9/i | 1 | 3 आयु+अनंत चतु.+दर्शन मोह त्रि.=व्युच्छिन्न | 148 | 10 | 138 | 1 | x | |||||||||
2 | तीर्थंकर | 138 | 1 | 137 | 1 | x | ||||||||||
3 | आहारक चतुष्क | 138 | 4 | 1 | x | |||||||||||
4 | आहा.चतु.+तीर्थंकर | 138 | 5 | 1 | x | |||||||||||
9/ii | 1 | नरक द्वि, तिर्यंच द्वि 1-4 इंद्रिय, स्त्यान.त्रिक, आतप, उद्योत, सूक्ष्म, साधारण,स्थावर = 16 व्युच्छिन्न | 138 | 16 | 1 | x | ||||||||||
2 | तीर्थंकर | 122 | 1 | 121 | 1 | x | ||||||||||
3 | आहारक चतुष्क | 121 | 4 | 118 | 1 | x | ||||||||||
4 | आहारक चतुष्क+तीर्थंकर | 122 | 5 | 117 | 1 | x | ||||||||||
9/iii | 1 | अप्रत्या.4+प्रत्या.4 =8व्युच्छिन्न | 122 | 8 | 114 | 1 | x | |||||||||
2 | तीर्थंकर | 114 | 1 | 113 | 1 | x | ||||||||||
3 | आहारक चतुष्क | 114 | 4 | 110 | 1 | x | ||||||||||
4 | आहारक चतुष्क+तीर्थंकर | 114 | 5 | 109 | 1 | x | ||||||||||
9/iv | 1 | x | 114 | x | 114 | 1 | स्त्रीवेदी व नपुं.वेदी | |||||||||
2 | तीर्थंकर | 114 | 1 | 113 | 1 | स्त्रीवेदी व नपुं.वेदी | ||||||||||
नपुंसक | 114 | 1 | ... | 1 | पुरुष वेदी | |||||||||||
3 | तीर्थंकर+नपुंसक | 114 | 2 | 112 | 1 | पुरुष वेदी | ||||||||||
4 | आहारक चतुष्क | 114 | 4 | 110 | 1 | स्त्रीवेदी व नपुं.वेदी | ||||||||||
5 | आहारक चतुष्क + नपुंसक | 114 | 5 | 109 | 1 | पुरुष वेदी | ||||||||||
आहारक चतुष्क + तीर्थंकर | 114 | 5 | 109 | 1 | स्त्रीवेदी व नपुं.वेदी | |||||||||||
6 | आहा.चतु.+तीर्थंकर+नपुंसक | 114 | 6 | 108 | 1 | पुरुष वेदी | ||||||||||
9/v | 1 | x | 114 | x | 114 | 1 | नपुंसक वेदी | |||||||||
2 | तीर्थंकर | 114 | 1 | 113 | 1 | नपुंसक वेदी | ||||||||||
स्त्री वेद | 114 | 1 | 113 | 1 | पुरुषवेदी व स्त्रीवेदी | |||||||||||
3 | तीर्थंकर + स्त्रीवेद | 114 | 2 | 112 | 1 | पुरुषवेदी व स्त्रीवेदी | ||||||||||
4 | आहारक चतुष्क | 114 | 4 | 110 | 1 | नपुंसक वेदी | ||||||||||
5 | आहारक चतुष्क + स्त्रीवेदी | 114 | 5 | 109 | 1 | पुरुषवेदी+स्त्रीवेदी | ||||||||||
आहारक चतुष्क+तीर्थंकर | 114 | 5 | 109 | 1 | नपुंसक वेदी | |||||||||||
6 | आहारक चतु.+तीर्थंकर+स्त्री. | 114 | 6 | 108 | 1 | पुरुषवेदी व स्त्रीवेदी | ||||||||||
9/vi | 1 | स्त्री.व नपुं. =2 व्युच्छिन्न | 114 | 2 | 112 | 1 | स्त्रीवेदी व नपुं.वेदी | |||||||||
2 | तीर्थंकर | 112 | 1 | 111 | 1 | स्त्रीवेदी व नपुं.वेदी | ||||||||||
3 | आहारक चतुष्क | 112 | 4 | 108 | 1 | स्त्रीवेदी व नपुं.वेदी | ||||||||||
4 | आहारक चतुष्क+तीर्थंकर | 112 | 5 | 107 | 1 | स्त्रीवेदी व नपुं.वेदी | ||||||||||
5 | हास्यादि = 6 व्युच्छिन्न | 112 | 6 | 106 | 1 | पुरुष वेदी | ||||||||||
6 | तीर्थंकर | 106 | 1 | 105 | 1 | पुरुष वेदी | ||||||||||
7 | आहारक चतुष्क | 106 | 4 | 102 | 1 | पुरुष वेदी | ||||||||||
8 | आहारक चतुष्क + तीर्थंकर | 106 | 5 | 101 | 1 | पुरुष वेदी | ||||||||||
9/vii | 1 | पुरुष वेद = 1 व्युच्छिन्न | 106 | 1 | 105 | 1 | तीनों वेदी | |||||||||
2 | तीर्थंकर | 105 | 1 | 104 | 1 | तीनों वेदी | ||||||||||
3 | आहारक चतुष्क | 105 | 4 | 101 | 1 | तीनों वेदी | ||||||||||
4 | आहारक चतुष्क + तीर्थंकर | 105 | 5 | 100 | 1 | तीनों वेदी | ||||||||||
9/viii | 1 | संज्वलन क्रोध =1 व्युच्छिन्न | 105 | 1 | 104 | 1 | x | |||||||||
2 | तीर्थंकर | 104 | 1 | 103 | 1 | x | ||||||||||
3 | आहारक चतुष्क | 104 | 4 | 100 | 1 | x | ||||||||||
4 | आहारक चतुष्क + तीर्थंकर | 104 | 5 | 99 | 1 | x | ||||||||||
9/ix | 1 | संज्वलन मान =1 व्युच्छिन्न | 104 | 1 | 103 | 1 | x | |||||||||
2 | तीर्थंकर | 103 | 1 | 1 | x | |||||||||||
3 | आहारक चतुष्क | 103 | 4 | 1 | x | |||||||||||
4 | आहारक चतुष्क + तीर्थंकर | 103 | 5 | 1 | x | |||||||||||
10. | क्षपक श्रेणी (सूक्ष्म सांपराय) ( गोम्मटसार कर्मकांड 389/556 ) - स्थान=4; भंग=4 | |||||||||||||||
1 | संज्वलन माया =1 व्युच्छिन्न | 103 | 1 | 1 | x | |||||||||||
2 | तीर्थंकर | 102 | 1 | 1 | x | |||||||||||
3 | आहारक चतुष्क | 102 | 4 | 1 | x | |||||||||||
4 | आहारक चतुष्क + तीर्थंकर | 102 | 5 | 1 | x | |||||||||||
12. | क्षीणकषाय - ( गोम्मटसार कर्मकांड 389/556 ) - स्थान=8; भंग=8 | |||||||||||||||
1 | संज्वलन लोभ =1 व्युच्छिन्न | 102 | 1 | 101 | 1 | x | ||||||||||
2 | तीर्थंकर | 101 | 1 | 100 | 1 | x | ||||||||||
3 | आहारक चतुष्क | 101 | 4 | 97 | 1 | x | ||||||||||
4 | आहारक चतुष्क + तीर्थंकर | 101 | 5 | 96 | 1 | द्विचरम समय | ||||||||||
5 | निद्रा, प्रचला = 2 व्युच्छिन्न | 101 | 2 | 99 | 1 | चरम समय | ||||||||||
6 | तीर्थंकर | 99 | 1 | 98 | 1 | चरम समय | ||||||||||
7 | आहारक चतुष्क | 99 | 4 | 95 | 1 | चरम समय | ||||||||||
8 | आहारक चतुष्क + तीर्थंकर | 99 | 5 | 94 | 1 | चरम समय | ||||||||||
13. | सयोगकेवली - ( गोम्मटसार कर्मकांड 390/557 ) - स्थान=4; भंग=4 | |||||||||||||||
1 | 5 ज्ञानावरण+5 दर्शनावरण+4 अंतराय =14 व्युच्छिन्न | 99 | 1 | x | ||||||||||||
2 | तीर्थंकर | 85 | 1 | x | ||||||||||||
3 | आहारक चतुष्क | 85 | 1 | x | ||||||||||||
4 | आहारक चतुष्क + तीर्थंकर | 85 | 1 | x | ||||||||||||
14. | अयोगकेवली - ( गोम्मटसार कर्मकांड 390/557 ) - स्थान=8; भंग=8 | |||||||||||||||
1-4 | सयोगीवत् चारों स्थान | द्वि चरम समय तक | ||||||||||||||
5 | व्युच्छित्ति=72 (देखें सारणी नं - 1) | 85 | 72 | 13 | 1 | चरम समय | ||||||||||
6 | तीर्थंकर | 13 | 1 | 1 | 1 | चरम समय | ||||||||||
7 | व्युच्छित्ति = 13 | 13 | 13 | 13 | 1 | चरम समय के अंत में | ||||||||||
8 | व्युच्छित्ति = 12 | 12 | 12 | 12 | 1 |
6. मूल प्रकृत्ति सत्त्व स्थान सामान्य प्ररूपणा
संकेत - देखो सारणी 1 का प्रारंभ
सं. | मार्गणा | कुल स्थान | प्रतिस्थान प्रकृति | प्रति स्थान भंग | प्रकृतियों का विवरण |
1 | ज्ञानावरणीय - ( पंचसंग्रह / प्राकृत/5/4,24 ); (पं.सं./सं./5/5-30); ( गोम्मटसार कर्मकांड/630/830 ) | ||||
1-12 गुणस्थान | 1 | 5 | x | पाँचों ज्ञानावरणीय | |
1 | |||||
2 | दर्शनावरणीय - ( गोम्मटसार कर्मकांड/631-32/831 ) | ||||
1 | 1-9/i | 1 | 9 | 1 | सर्व दर्शनावरणी |
2 | 9/ii-12/i | 1 | 6 | 1 | स्त्यागृद्धि त्रिक् रहित 6 |
3 | 12/ii | 1 | 4 | 1 | चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल |
3 | |||||
3 | वेदनीय - ( गोम्मटसार कर्मकांड/633-634/832 ) | ||||
1 | 1-14/i | 1 | 2 | 1 | दोनों वेदनीय |
2 | 14/ii | 1 | 1 | 1 | सात या असाता |
2 | |||||
4 | मोहनीय (देखो पृथक् सारणी) | ||||
5 | आयु - ( गोम्मटसार कर्मकांड/366-371/522-535 ) | ||||
1 | बद्धायुष्क | 2 | 1 | 2 | (i) भु.मनु., बध्य.मनु.
(ii) भु.तिर्यंच, बध्य.तिर्यंच |
2 | 5 | (i) भु.मनु.,ब.ति. ii व vice versa
(ii) भु.मनु.,ब.नारक व vice versa (iii) भु.ति.,ब.नारक व vice versa (iv) भु.ति.,ब.नारक व vice versa (v) भु.ति., ब.देव व vice versa |
|||
2 | अबद्धायुष्क | 1 | 1 | 4 | अन्यतम भुज्यमान आयु से 4 भंग |
3 | |||||
6 | नाम - (देखो पृथक् सारणी) | ||||
7 | गोत्र - ( गोम्मटसार कर्मकांड/635/833-835 ) | ||||
1 | 1-14/i | 1 | 2 | 1 | दोनों गोत्र |
2 | 14/ii | 1 | 1 | 1 | उच्च गोत्र |
2 | |||||
8 | अंतराय - ( गोम्मटसार कर्मकांड/630/830/ ) | ||||
1 | 1-12/ii | 1 | 5 | 1 | पाँचों अंतराय |
7. मोह प्रकृति सत्त्व स्थान सामान्य प्ररूपणा।
( कषायपाहुड़ 2/ पृष्ठ), ( पंचसंग्रह / प्राकृत/5/33-36 ), (पं.सं./सं./5/42-47) कुल सत्त्व योग्य=28; कुल सत्त्व स्थान=15
द्रष्टव्य - अनिवृत्तिकरण में मोहनीय के क्षय का क्रम :
1. नवें गुणस्थान के काल के संख्यातवें भाग को व्यतीत करके (अप्रमत्त व प्रमत्त) 8 प्रकृतियों का क्षय करता है।
2. अनंतर अंतर्मुहूर्त बिता कर क्रम से (9/i) में दर्शायी 16 का क्षय करता है।
3. ओघ में प्ररूपणा पुरुषवेद सहित चढ़ने वालों की हैं। यदि स्त्रीवेद, नपुंसक वेद के साथ श्रेणी चढ़े तो 9/iii व 9/iv में तीनों वेदों की क्षपणा 6 नो कषायों के साथ युगपत् प्रारंभ करता है। तहाँ पुरुष वेद की अंतिम खंड को क्षपणा के निकट उससे पहले ही स्त्री व नपुंसक वेदों के अंतिम खंडों का अभाव हो जाता है। तब वहाँ 9/iv स्थान बजाय 5 के सत्त्व के 11 के सत्त्ववाला बनता है। फिर पुरुष वेद व 6 नोकषाय को युगपत् क्षय करके 9/vii में पुरुषवेदीवत् ही 4 का सत्त्व कर लेता है।
संकेत - देखो सारणी सं.1 का प्रारंभ।
सं. | मार्गणा | गुणस्थान | प्रतिस्थान प्रकृति | प्रमाण | प्रकृतियों का विवरण | |
प्रमाण | स्वामी जीव | विवरण | ||||
कषायपाहुड़ 2/ पृ. | कषायपाहुड़ 2/ पृ. | |||||
1 | 211 | क्षपक मनुष्य, मनुष्यणी | 9/x | 1 | 202 | संज्वलन लोभ |
2 | 212 | क्षपक मनुष्य, मनुष्यणी | 9/ix | 2 | 202 | संज्वलन लोभ, माया |
3 | 212 | क्षपक मनुष्य, मनुष्यणी | 9/viii | 3 | 202 | संज्वलन लोभ, माया व मान |
4 | 212 | क्षपक मनुष्य, मनुष्यणी | 9/vii | 4 | 202 | चारो संज्वलन |
5 | 212 | क्षपक मनुष्य, मनुष्यणी | 9/vi | 5 | 203 | 4 संज्वलन व पुरुष वेद |
6 | 212 | क्षपक मनुष्य, मनुष्यणी | 9/v | 11 | 203 | 4 संज्वलन, पुरुष वेद, 6 नो कषाय |
7 | 212 | क्षपक मनुष्य, मनुष्यणी | 9/iv | 12 | 203 | 4 संज्वलन, 6 नो कषाय, पु.स्त्री वेद, |
8 | 212 | क्षपक मनुष्य, मनुष्यणी | 9/iii | 13 | 203 | 4 संज्वलन, 6 नो कषाय, 3 वेद, |
9 | 212 | दर्शन मोह के क्षय सहित चारों गति के जीव | 9/ii | 21 | 203 | 4 अनंतानुबंधी रहित चारित्र मोह की 25 |
10 | 212 | दर्शन मोह क्षपक मनुष्य, मनुष्यणी | 4-7 कृत-कृत्य वे | 22 | 203 | उपरोक्त 21 व सम्यक् प्रकृति |
11 | 217 | दर्शन मोह क्षपक मनुष्य, मनुष्यणी (मिथ्यात्व का क्षय कर चुका हो शेष दो का क्षय करना बाकी हो) | 4-7 | 23 | 203 | मिथ्यात्व, अनंतानुबंधी रहित सर्व |
12 | 218 | चर्तुगति उपशम या वेदक सम्यग्दृष्टि या सम्यग्मिथ्यादृष्टि अनंता. की विसंयोजना सहित | ||||
13 | 221 | चर्तुगति के अनादि या सादि मिथ्यादृष्टि | 1 | 26 | 203 | सम्य. व मिश्र मोह |
14 | 221 | चर्तुगति के सादि मिथ्यादृष्टि (मिश्र मोह की उद्वेलना सहित) | 1 | 27 | 203 | सम्यक् प्रकृति रहित सर्व |
15 | 221 | उपशम व वेदक सम्यग्दृष्टि, यो.1-3 गु.स. | 1-4 | 28 | 203 | सर्व |
8. मोह सत्त्व स्थान ओघ प्ररूपणा - ( कषायपाहुड़ 2/ पृष्ठ), ( पंचसंग्रह / प्राकृत/5/393-398 ), ( पंचसंग्रह / प्राकृत/5/405-410 ), ( गोम्मटसार कर्मकांड/655-659/846-848 )
द्रष्टव्य - (सत्त्व स्थान में प्रकृतियों का विवरण देखो सारणी सं.4)
सं. | प्रमाण | गुणस्थान | विकल्प नं.1 | विकल्प नं.2 | विकल्प नं.3 | विकल्प नं.4 | |
कषायपाहुड़ 2/ पृ. | सादि मिथ्यादृष्टि | अनादि मि. | सातिशय मि. | ||||
1 | मिथ्यादृष्टि | 26,27,28 | 26 | 26 | |||
2 | सासादन | 28 | x | x | |||
3 | सम्यग्मिथ्यात्व | 28 | x | x | |||
सम्यक्त्व | क्षायिक | कृतकृत्य वेदक | वेदक | उपशम | |||
4 | 212/221 | अविरत सम्यक्त्व | 21 | 22,23,24 | 28 | 28 | |
5 | 212/221 | संयतासंयत | 21 | 22,23,24 | 28 | 28 | |
6 | 212/221 | प्रमत्तसंयत | 21 | 22,23,24 | 28 | 28 | |
7 | 212/221 | अप्रमत्तसंयत | 21 | 22,23,24 | 28 | 28 | |
212/221 | अप्रमत्त सा. | x | 22,23,24 | x | x | ||
क्षपक श्रेणी - | पुरुषवेदी आरोहक | स्त्रीवेदी आरोहक | नपुंसक वेदी आरोहक | ||||
8 | 212/221 | अपूर्वकरण | 21 | 21 | 21 | ||
8 | 212 | अनिवृत्तिकरण (i) | 21 | 21 | 21 | ||
द्रष्टव्य - [देखो सत्त्व/3/4 - सारणी सं.1] | |||||||
अनिवृत्तिकरण (ii) | 21 | 21 | 21 | ||||
अनिवृत्तिकरण (iii) | 13 | 13 | 13 | ||||
अनिवृत्तिकरण (iv) | 13-नपुं.=12 | 13 | 13 | ||||
अनिवृत्तिकरण (v) | 12-स्त्री=11 | 12 (13-स्त्रीवेद) | 13 | ||||
अनिवृत्तिकरण (vi) | 11-6 नो कषाय=5 | 11(12-नपुं.) | 11 (13 स्त्रीवेद) | ||||
अनिवृत्तिकरण (vii) | 5-पु.वेद=4 | 4(11-पु.वेद 6 कषाय) | 4 (11-पु.वेद 6 नोकषाय) | ||||
अनिवृत्तिकरण (viii) | 5 | 3 | 3 | ||||
अनिवृत्तिकरण (ix/i) | 2 | 2 | 2 | ||||
अनिवृत्तिकरण (ix/ii) | 1 (बादर) | 1 (बादर) | 1 बादर | ||||
10 | 211 | सूक्ष्मसांपराय | 1 सूक्ष्म | 1 सूक्ष्म | 1 सूक्ष्म | ||
12 | क्षीणकषाय | x | x | x | |||
उपशम श्रेणी उपशम सम्यक्त्व - | |||||||
8-11 | 28-24 के दो स्थान | ||||||
उपशम श्रेणी क्षायिक सम्यकत्व - | |||||||
8-11 | 21 का स्थान |
9. मोह सत्त्व स्थान आदेश प्ररूपणा विशेष
सं. | मार्गणा स्थान | सं. | मार्गणा स्थान |
1 | गति अपेक्षा - | सम्यक्त्व अपेक्षा - | |
पर्याप्त - | पर्याप्त - | ||
1 | चारों में अन्यतम गति के जीव पर्याप्त | 10 | अन्यतम सम्यक्त्व |
2 | केवल मनुष्य गति के जीव पर्याप्त | 11 | केवल क्षायिक सम्यक्त्व |
3 | मनुष्य व देव गति के जीव पर्याप्त | 12 | केवल कृतकृत्य वेदक सम्यक्त्व |
4 | मनुष्य व तिर्यंच गति के जीव पर्याप्त | 13 | केवल वेदक सम्यक्त्व |
5 | देव व नरक गति के जीव पर्याप्त | 14 | केवल उपशम सम्यक्त्व |
6 | नरक व मनुष्य गति के जीव पर्याप्त | 15 | उपशम व वेदक सम्यक्त्व |
7 | देव मनुष्य व तिर्यंच गति के जीव पर्याप्त | 16 | उपशम वेदक सम्यग्दृष्टि व सम्यग्मिथ्यादृष्टि |
8 | देव मनुष्य व नरक गति के जीव पर्याप्त | 17 | उपर्युक्त सं.16+सासादन व सादि मिथ्यादृष्टि |
9 | मनुष्य, तिर्यंच व नरक गति के जीव पर्याप्त | 18 | सादि मिथ्यादृष्टि व सासादन |
द्रष्टव्य - (i) यह 9 स्थान 'पर्याप्तक' के जानने (ii)इन्हीं 9 स्थानों को 'अपर्याप्तक' बनाने के लिए पर्याप्त के स्थान पर अपर्याप्त लिख लेना। (iii) इन्हीं 9 स्थानों को पर्याप्तापर्याप्त बनाने के लिए पर्याप्त के स्थान पर उभय लिख लेना। |
19 | वेदक सम्यक्त्व, मिश्र., सासादन, मिथ्या. | |
20 | सादि मिथ्यादृष्टि | ||
21 | अनादि मिथ्यादृष्टि | ||
22 | सादि अनादि मिथ्यादृष्टि | ||
वेद की अपेक्षा - | |||
23 | केवल पुरुष वेद |
10. मोह सत्त्व स्थान आदेश प्ररूपणा
प्रमाण - ( कषायपाहुड़ 2/ पृष्ठ), संकेत - प्रकृतियों का विवरण देखो सारणी सं.4
प्रमाण | मार्गणा | कुल सत्त्व स्थान | प्रति स्थान प्रकृतियाँ | प्रत्येक स्थान का क्रमश: स्वामित्व विशेष (देखें सारणी सं - 9) |
1 | गति मार्गणा - | |||
221 | नरक गति - | |||
221 | सामान्य | 6 | 28,27,26,24,22,21 | 17,20,22,15,12/अ.,10 |
221 | प्रथम पृथिवी | 6 | 28,27,26,24,22,21 | 17,20,22,15,12/अ.,10 |
221 | 2-7 पृथिवी | 4 | 28,27,26,24 | 17,20,22,15 |
तिर्यंचगति - | ||||
221 | सामान्य | 6 | 28,27,26,24,22,21 | 17,20,22,15,12/अ.भोग भूमि, 10 |
221 | पंचेंद्रिय सा.व प. | 6 | 28,27,26,24,22,21 | 17,20,22,15,12/अ.भोग भूमि, 10 |
221 | पंचेंद्रिय योनिमति | 4 | 28,27,26,24 | 17,20,22,15 |
223 | लब्ध्यपर्याप्त तिर्यंच | 3 | 28,27,26 | 20,20,22 |
मनुष्य गति - | ||||
223 | सामान्य | - ओघवत् | -- | |
223 | मनु. पर्या. व मनुष्यणी | - ओघवत् | -- | |
224 | मनुष्य ल.अप. | 3 | 28,27,26 | |
देवगति - | ||||
222 | सामान्य | 6 | 28,27,26,24,22,21 | 17,20,22,15/अ.12/23/अ.11-23 |
222 | भवनत्रिक देव | 4 | 28,27,26,24 | 17,20,22,15 |
222 | सौधर्मादि देवियाँ | 4 | 28,27,26,24 | 17,20,22,15 |
222 | सौधर्म-नवग्रैवेयक | 6 | 28,27,26,24,22,21 | 17,20,22,15/अ.12/23/अ.11/23 |
222 | अनुदिश-सर्वार्थसिद्धि | 4 | 28,24,22,21 | 15,15,12/अ.,11 |
2 | इंद्रिय मार्गणा - | |||
224 | एकेंद्रिय सर्व भेद | 3 | 28,27,26 | 18,20,22 |
224 | विकलेंद्रिय सर्व भेद | 3 | 28,27,26 | 20,20+22 |
224 | पंचेंद्रिय सामान्य व पर्याप्त | 15 | - ओघवत् | -- |
224 | पंचेंद्रिय लब्ध्यपर्याप्त | 3 | 28,27,26 | 20,20,22 |
3 | काय मार्गणा - | |||
224 | सर्व स्थावर | 3 | 28,27,26 | 20,20,22 |
224 | त्रस सा. व पर्याप्त | 15 | - ओघवत् | -- |
224 | त्रस लब्ध्यपर्याप्त | 3 | 28,27,26 | 20,20,22 |
4 | योग मार्गणा - | |||
224 | 5 मन, 5 वचन, व काय सामान्य योगी | 15 | - ओघवत् | -- |
224 | औदारिक काय | - ओघवत् | -- | |
225 | औदारिक मिश्र | 6 | 28 | 2/अ./13,2/अ.भोग भू.12 |
28 | ति.अ.भोग भूमि/12 | |||
28,27,26 | 4/अ./18, 4/अ./20, 4/अ.20 | |||
24,22 व 21 | 2/अ./13, 4/अ.योग/13 | |||
225 | वैक्रियक | 28,27,26,24,21 | 5/17,5/20,5/22 | |
226 | वैक्रियक मिश्र | 9 | उपरोक्त सर्व + 22 | 5/अ.के उपरोक्त सर्व+5 अ./12 |
226 | आहारक व आहारक मिश्र | 3 | 28,24,21 | 13,13,11 |
226 | कार्माण | 6 | 28,28,28,27,26,24,24 | 1/18,3/13,देव/14,1/20,1/22,3/13, देव14,1/12,1/11 (यहाँ तिर्यंच को भोगभूमिज ही जानना।) |
5 | वेद मार्गणा - | |||
227 | स्त्रीवेदी | 9 | 28,27,26,24
23,22,13,12,21 |
7/17,7/20,7/22,7/15
2/12,2 क्षपक, 2/11 |
227 | पुरुषवेदी | 11 | 28,27,26,24
21,23,22 13,12,11,5 |
7/17,7/20,7/22,7/15
7/11,2/12,7/12 व ओघवत् |
258 | नपुंसकवेदी | 9 | 28,27,26,24
22,21,13,13,12 |
9/17,9/20,9/22,9/15
6/12,6/11,2/12 ओघवत् |
229 | अपगतवेदी | 8 | 24,21
11,5,4,3,2,1 |
उपशांत कषाय |
6 | कषाय मार्गणा - | |||
229 | क्रोध | 12 | 28 से 4 तक | - ओघवत् |
229 | मान | 13 | 28 से 3 तक | - ओघवत् |
229 | माया | 14 | 28 से 2 तक | - ओघवत् |
229 | लोभ | 15 | 28 से 1 तक | - ओघवत् |
229 | अकषायी | 2 | 24,21 | उपशांत कषाय |
7 | ज्ञान मार्गणा - | |||
224 | मति, श्रुत अज्ञान | 3 | 28,27,26 | 18,20,22 |
224 | विभंग | 3 | 28,27,26 | 18,20,22 |
229 | मति, श्रुतज्ञान | 13 | 28,24 से 1 | 1/15, ओघवत् |
229 | अवधिज्ञान | 13 | 28,24 से 1 | 1/15, ओघवत् |
229 | मन:पर्ययज्ञान | 13 | 28,24 से 1 | 1/15, ओघवत् |
8 | संयम मार्गणा - | |||
संयम सामान्य | ||||
229 | सामायिक, छेदोपस्थापन | 13 | 28,24 से 2 | 2/5, ओघवत् |
230 | परिहार विशुद्धि | 5 | 28,24,23,22,21 | 2/15,15,12,11 |
230 | सूक्ष्म सांपराय | 3 | 24,21 1 | उपशामक, क्षपक |
229 | यथाख्यात | 2 | 24,21 | उपशांत कषाय |
230 | संयमासंयम | 5 | 28,24,23,22,21 | 4/15,4/15,2/12,2/11 |
230 | असंयम | 0 | 28 से 21 तक | ओघवत् |
9 | दर्शन मार्गणा - | |||
222 | चक्षु | - | - ओघवत् | -- |
अचक्षु | - | - ओघवत् | -- | |
229 | अवधि | 13 | 28,24 से 1 | 1/15, ओघवत् |
10 | लेश्या मार्गणा - | |||
230 | कृष्ण | 5 | 28,28,27,26,24,21 | 1/19,9/15,1/20,1/22,9/15,2/11 |
230 | नील | 5 | 28,28,27,26,24,21 | |
230 | कापोत | 2 | 22
21 |
ति.अपर्याप्त भोग भूमिज
6/उभय/12,11 |
231 | पीत, पद्म | 7 | 28,27,26,24
21,23,22 |
7/17, 7/20, 7/22, 7/15
7/11, 2/12, 3/12 देव अपर्याप्त |
231 | शुक्ल | 15 | 22, सर्व 15 स्थान | ओघवत् |
11 | भव्यत्व मार्गणा - | |||
222 | भव्य | ओघवत् | --- | |
232 | अभव्य | 1 | 26 | 21 |
12 | सम्यक्त्व मार्गणा - | |||
229 | सम्यक्त्व सामान्य | 13 | 28,24 से 1 तक | 1/15 ओघवत् |
232 | क्षायिक | 9 | 21 से 1 तक | 1/11 ओघवत् |
232 | वेदक | 4 | 28,24,23,22 | 1/13, 1/13, 2/13, 1/12 |
232 | उपशम | 2 | 28,24 | 1, 1 |
232 | सम्यग्मिथ्यात्व | 2 | 28,24 | 1, 1 |
232 | सासादन | 1 | 28 | 1 |
234 | मिथ्यादृष्टि | 3 | 28,27,26 | 20,20,22 |
13 | संज्ञी मार्गणा - | |||
223 | संज्ञी | ओघवत् | --- | |
224 | असंज्ञी | 3 | 28,27,26 | 18,20,22 |
14 | आहारक मार्गणा - | |||
222 | आहारक | ओघवत् | --- | |
232 | अनाहारक | कार्माणकाय योगवत् | --- |
11. नाम प्रकृति सत्त्वस्थान सामान्य प्ररूपणा - ( पंचसंग्रह / प्राकृत/5/208-216 ); (पं.सं./सं./5/222-229); ( गोम्मटसार कर्मकांड/ भाषा./610/817); ( गोम्मटसार कर्मकांड/ भाषा./620-824); ( गोम्मटसार कर्मकांड/ भाषा./759/931) कुल सत्त्व स्थान=13; कुल सत्त्व योग=93।
सं. | स्वामी जीव गोम्मटसार कर्मकांड/ भाषा./620-824 | प्रतिस्थान प्रकृति | प्रकृतियों का विवरण ( गोम्मटसार कर्मकांड/ भाषा./610/817) |
1 | कर्म भूमिज मनु.प.व नि.अप.असंयमादि वैमानिक देव असंयत | 93 | 2 |
2 | सासादन रहित चतुर्गति के जीव | 92 | 93-तीर्थंकर |
3 | देव सम्यग्दृष्टि, मनुष्य, नारकी सम्यक् व मिथ्यादृष्टि | 91 | 93-आहारक द्विक् |
4 | अनिवृत्तिकरण में प्रकृतियों का क्षय भये पीछे चतुर्गति। | 90 | 93-आहारक द्विक् व तीर्थंकर |
5 | देव द्विक् की उद्वेलना, एकेंद्रिय या विकलेंद्रिय के हो तो वह मरकर जहाँ उपजे वहाँ तिर्यंच, मनुष्य मिथ्यादृष्टि भी उस उद्वेलना सहित रहे हैं। | 88 | उपर्युक्त 90-देवद्विक् |
6 | उपर्युक्त सं.5 जीव नारकद्विक् की उद्वेलना कर ले तो। | 84 | उपर्युक्त 88-नारक द्विक् व वैक्रियक द्विक् |
7 | मनुष्यद्विक् की उद्वेलना भये तेज, वात कायिक या अन्य 88 वाले स्थानवत् होय ऐसा तिर्यंच सा मिथ्यादृष्टि | 82 | 93-(तीर्थंकर, आहारक द्वि.,देवद्विक्, नारकद्विक्, वैक्रियक द्वि., मनुष्य द्विक् |
8 | अनिवृत्तिकरण 9/ii से 14/i तक | 80 | 93-(नरक द्वि., तिर्यंच द्वि., 1-4 इंद्रिय आतप, उद्योत, सूक्ष्म, साधारण, स्थावर। |
9 | अनिवृत्तिकरण 9/ii से 14/i तक | 79 | 80-तीर्थंकर |
10 | अनिवृत्तिकरण 9/ii से 14/i तक | 78 | 80-आहारक द्विक् |
11 | अनिवृत्तिकरण 9/ii से 14/i तक | 77 | 80-आहारक द्वि., तीर्थंकर |
12 | तीर्थंकर अयोगी का अंतसमय | 10 | मनुष्य गति, पंचे., सुभग, त्रस, बादर, पर्याप्त, आदेय, यश, तीर्थंकर, मनुष्यानुपूर्वी |
13 | सामान्य अयोगी का अंतसमय | 9 | उपर्युक्त 10-तीर्थंकर |
12. जीव पदों की अपेक्षा नामकर्म सत्त्व स्थान प्ररूपणा - ( गोम्मटसार कर्मकांड/ भाषा./623-828)
क्र. | मार्गणा | कुल स्थान | प्रति स्थान प्रकृतियाँ |
1 | नारकी सामान्य | 3 | 90, 91, 92 |
2 | नारकी (4-7 पृ.) | 2 | 90, 92 |
3 | तिर्यंच (सर्व) | 3 | 82, 84, 88 |
4 | मनुष्य सामान्य | 12 | 82 रहित सर्व |
5 | अयोग केवली | 4 | 77, 78, 79, 80, 9, 10 |
6 | सयोग केवली | 4 | 77, 78, 79, 80 |
7 | आहारक | 2 | 92, 93 |
8 | सर्व भोग भूमि मनुष्य, तिर्यंच | 2 | 90, 93 |
9 | वैमानिक देव | 4 | 90, 91, 92, 93 |
10 | भवनत्रिक | 2 | 90, 92 |
11 | सर्व सासादनवर्ती | 1 | 90 |
13. नाम कर्म सत्त्व स्थान ओघ प्ररूपणा - ( पंचसंग्रह / प्राकृत/5/217 ); ( पंचसंग्रह / प्राकृत/402-417 ); ( गोम्मटसार कर्मकांड/692-702/872 ); (पं.सं./सं./5/416-428)।
संकेत - सत्त्व स्थान - प्रकृतियों का विवरण=देखो सारणी सं.11।
गुण स्थान | कुल स्थान | प्रतिस्थान प्रकृति (देखो सारणी सं.11) | गुणस्थान | कुल स्थान | प्रतिस्थान प्रकृतियाँ (देखो सारणी सं.11) |
1 | 6 | 82, 84, 88, 90, 91, 92 | 8 | 4 | 90, 91, 92, 93 |
2 | 1 | 90 | 9 | 8 | क्षपक 77,78,79,80
उपशमक 90,91,92,93 |
3 | 2 | 90, 92 | 10 | 8 | पूर्वोक्त नवम गुणस्थानवत् |
4 | 4 | 90, 91, 92, 93 | 11 | 4 | 90, 91, 92, 93 |
5 | 4 | 90, 91, 92, 93 | 12 | 4 | 77, 78, 79, 80 |
6 | 4 | 90, 91, 92, 93 | 13 | 4 | 77, 78, 79, 80 |
7 | 4 | 90, 91, 92, 93 | 14 | 6 | 9, 10, 77, 78, 80 |
14. नाम कर्म सत्त्व स्थान आदेश प्ररूपणा - - ( पंचसंग्रह / प्राकृत/5/218-219,419-472 ); (पं.सं./सं./5/230-231); ( गोम्मटसार कर्मकांड/712-738/881-887 )
क्र. | मार्गणा | कुल स्थान | प्रति स्थान प्रकृति (देखो सारणी सं.11) |
1 | गति मार्गणा - | ||
1 | नरक | 3 | 90, 91, 92 |
2 | तिर्यंच | 5 | 82, 84, 88, 90, 92 |
3 | मनुष्य | 12 | 77,78,79,80,84,88,90,91,92,93,9,90 |
4 | देव | 4 | 90, 91, 92, 93 |
2 | इंद्रिय मार्गणा - | ||
1 | एकेंद्रिय | 5 | 82, 84, 88, 90, 92 |
2 | विकलेंद्रिय | 5 | 82, 84, 88, 90, 92 |
3 | पंचेंद्रिय | 13 | 77,78,79,80,82,84,88,90,91,92,93,9,10 |
3 | काय मार्गणा - | ||
1 | पृ., अप., तेज.,वायु., वन. | 5 | 82,84,88,90,91,92 |
2 | त्रस | 13 | पंचेंद्रियवत् |
4 | योग मार्गणा - | ||
1 | सर्व मन वचन | 12 | 77,78,89,80,82,84,88,90,91,92,93,9,10 |
2 | औदारिक | 11 | 77,78,79,80,82,84,88,90,91,92,93 |
3 | औदारिक मिश्र | 11 | 77,78,79,80,82,84,88,90,91,92,93 |
4 | वैक्रियक | 4 | 90, 91, 92, 93 |
5 | वैक्रियक मिश्र | 4 | 90, 91, 92, 93 |
6 | आहारक | 2 | 92, 93 |
7 | आहारक मिश्र | 2 | 92, 93 |
8 | कार्माण | 11 | 77,78,79,80,82,84,88,90,91,92,93 |
5 | वेद मार्गणा - | ||
1 | स्त्री वेद | 9 | 77,79,82,84,88,90,91,92,93 |
2 | नपुंसक वेद | 9 | पूर्वोक्त स्त्रीवेदवत् |
3 | पुरुष वेद | 11 | 77,78,79,80,82,84,88,90,91,92,93 |
7 | ज्ञान मार्गणा - | ||
1 | मति, श्रुतअज्ञान | 6 | 82,84,88,90,91,92 |
2 | विभंग | 3 | 90,91,92 |
3 | मति, श्रुत, अवधि | 8 | 77,88,79,80,90,91,92,93 |
4 | मन:पर्यय | 8 | 77,88,79,80,90,91,92,93 |
5 | केवल | 6 | 77,78,79,80,9,10 |
8 | संयम मार्गणा - | ||
1 | सामायिक छेदोपस्थापन | 8 | 77,78,79,80,90,91,92,93 |
2 | परिहार विशुद्धि | 4 | 90,91,92,93 |
3 | सूक्ष्म सांपराय | 8 | 77,78,89,80,90,91,92,93 |
4 | यथाख्यात | 10 | 77,78,79,80,90,91,92,93,9,10 |
5 | देश संयत | 4 | 90,91,92,93 |
6 | असंयत | 7 | 82,84,88,90,91,92,93 |
9 | दर्शन मार्गणा - | ||
1 | चक्षु दर्शन | 9 | 77,79,82,84,88,90,91,92,93 |
2 | अचक्षु दर्शन | 9 | 77,79,82,84,88,90,91,92,93 |
3 | अवधि दर्शन | 8 | 77,78,79,80,90,91,92,93 |
4 | केवल दर्शन | 6 | 77,78,79,80,9,10 |
10 | लेश्या मार्गणा - | ||
1 | कृष्णादि 3 | 7 | 82,84,88,90,91,92,93 |
2 | पीत | 4 | 90,91,92,93 |
3 | पद्म | 4 | 90,91,92,93 |
4 | शुक्ल | 8 | 77,78,79,80,90,91,92,93 |
11 | भव्य मार्गणा - | ||
1 | भव्य | 13 | सर्व स्थान |
2 | अभव्य | 4 | 82,84,88,90 |
12 | सम्यक्त्व मार्गणा - | ||
1 | क्षायिक | 10 | 77,78,79,80,90,91,92,93,9,10 |
2 | वेदक | 4 | 90,91,92,93 |
3 | उपशम | 4 | 90,91,92,93 |
4 | सम्यक् मिथ्यात्व | 2 | 90, 93 |
5 | सासादन | 1 | 90 |
6 | मिथ्यादृष्टि | 6 | 82,84,88,90,91,92,93 |
13 | संज्ञी मार्गणा - | ||
1 | संज्ञी | 9 | 77,78,82,84,88,90,91,92,93 |
2 | असंज्ञी | 5 | 82,84,88,90,91 |
14 | आहारक मार्गणा - | ||
1 | आहारक | 9 | 77,79,82,84,88,90,91,92,93 |
2 | अनाहारक सामान्य | 11 | 77,78,79,80,82,84,88,90,91,92,93 |
3 | अनाहारक अयोगी | 2 | 9, 10 |
15. नाम प्रकृति सत्त्व स्थान पर्याप्तापर्याप्त प्ररूपणा - ( गोम्मटसार कर्मकांड/704-712/878 )
क्र. | मार्गणा | कुल स्थान | प्रति स्थान प्रकृति (देखो सारणी 11) |
1 | अपर्याप्तक - | ||
1 | अपर्याप्त सातों समास | 5 | 82,84,88,90,92 |
2 | सर्व एके. विकलेंद्रिय तथा असंज्ञी पर्याप्त | 5 | 82,84,88,90,92 |
3 | संज्ञी पर्याप्त | 11 | 77,78,79,80,82,84,88,90,91,92,93 |
16. मोह स्थिति सत्त्व की ओघप्ररूपणा - ( कषायपाहुड़ 3/ पृष्ठ) अंत:=अंत:कोड़ाकोड़ी सागर
क्र. | प्रकृति | प्रमाण | जघन्य स्थिति क्षपक श्रेणी में ही संभव |
1 | मिथ्यात्व | 203 | 2 समय |
2 | सम्यग्मिथ्यात्व | 203 | 2 समय |
3 | सम्यक्प्रकृति | 205 | 1 समय |
4 | अनंतानुबंधी 4 | 2 समय | |
5 | 8 कषाय | 203 | 2 समय |
6 | संज्वलन क्रोध | 207 | अंत: कम 2 मास |
7 | संज्वलन मान | 208 | अंत: कम 1 मास |
8 | संज्वलन माया | 209 | अंत: कम 1/2 मास |
9 | संज्वलन लोभ | 205 | 1 समय |
10 | 6 कषाय | 210 | संख्यात वर्ष |
11 | स्त्री वेद | 205 | 1 समय |
12 | पुरुष वेद | 209 | अंत: कम 8 वर्ष |
13 | नपुंसक वेद | 205 | 1 समय |
14 | संक्रमण होने के पश्चात् शेष बची सम्यक्प्रकृति | 205 | 1 समय |
17. मोह स्थिति सत्त्व की आदेश प्ररूपणा - ( कषायपाहुड़ 3/ पृष्ठ) अंत:=अंत:कोड़ाकोड़ी सागर
प्रमाण | गुणस्थान व प्रकृति |
स्थिति सत्त्व |
||
जघन्य | प्रमाण | उत्कृष्ट | ||
1. मिथ्यादृष्टि - | ||||
9 | मोह सामान्य | 1 सा.पल्य/असं. | देखें स्थिति - 61 | 70 को.को.सा. |
194 | मिथ्यात्व | 2 समय
(देखें सत्त्व - 3.16) |
देखें स्थिति - 61 | 70 को.को.सा. |
195 | सम्य.मिश्रमोह | 2 समय
(देखें सत्त्व - 3.16) |
देखें स्थिति - 61 | अंत: कम 1 सा. |
197 | 16 कषाय | 2 समय
(देखें सत्त्व - 3.16) |
देखें स्थिति - 61 | 40 को.को.सा. |
197 | नो कषाय | 2 समय
(देखें सत्त्व - 3.16) |
देखें स्थिति - 61 | 1 आवली कम 1 सा. |
2. सासादन - | ||||
11 | सामान्य मोह | अंत:को.को. सा. | देखें स्थिति - 61 | अंत:को.को. सा. |
200 | दर्शन मोह त्रिक | 2 समय
(देखें सत्त्व - 3.16) |
देखें स्थिति - 61 | अंत:को.को. सा. |
200 | 16 कषाय | 2 समय
(देखें सत्त्व - 3.16) |
देखें स्थिति - 61 | अंत:को.को. सा. |
200 | नो कषाय | 2 समय
(देखें सत्त्व - 3.16) |
देखें स्थिति - 61 | अंत:को.को. सा. |
3. सम्यग्मिथ्यादृष्टि - | ||||
10 | मोह सामान्य | अंत: | देखें स्थिति - 61 | अंत: कम 70 को.को.सा. |
200 | दर्शन मोह त्रिक | 2 समय
(देखें सत्त्व - 3.16) |
200 | अंत: कम 70को.को.सा. |
200 | 16 कषाय | 2 समय
(देखें सत्त्व - 3.16) |
200 | अंत: कम 40को.को.सा. |
200 | नो कषाय | 2 समय
(देखें सत्त्व - 3.16) |
200 | अंत: कम 40को.को.सा. |
4. अविरत सम्यग्दृष्टि (क्षायिक) - | ||||
11 | मोह सामान्य | अंत: | 11 | अंत: |
200 | 12 कषाय | 2 समय
(देखें सत्त्व - 3.16) |
200 | अंत: |
200 | नो कषाय | 2 समय
(देखें सत्त्व - 3.16) |
200 | अंत: |
4. अविरत सम्यग्दृष्टि (वेदक) - | ||||
13 | मोह सामान्य | अंत:को.को. सा. | 11 | अंत: कम 70 को.को.सा. |
203 | दर्शन मोह त्रिक | 2 समय
(देखें सत्त्व - 3.16) |
200 | अंत: कम 70 को.को.सा. |
203 | 16 कषाय | अंत:को.को. सा. | 200 | अंत: कम 40 को.को.सा. |
203 | नो कषाय | 2 समय
(देखें सत्त्व - 3.16) |
200 | अंत: कम 40को.को.सा. |
4. अविरत सम्यग्दृष्टि (उपशम) - | ||||
13 | मोह सामान्य | अंत: | 11 | अंत: |
203 | दर्शन मोह त्रिक | 2 समय
(देखें सत्त्व - 3.16) |
200 | अंत: |
203 | 16 कषाय | 2 समय
(देखें सत्त्व - 3.16) |
200 | अंत: |
203 | नो कषाय | 2 समय
(देखें सत्त्व - 3.16) |
200 | अंत: |
5. संयतासंयत - | ||||
13 | मोह सामान्य | अंत: | 11 | अंत: |
203 | दर्शन मोह त्रिक | 2 समय
(देखें सत्त्व - 3.16) |
200 | अंत: |
203 | 16 कषाय | 2 समय
(देखें सत्त्व - 3.16) |
200 | अंत: |
203 | नो कषाय | 2 समय
(देखें सत्त्व - 3.16) |
200 | अंत: |
6-7. प्रमत्त अप्रमत्त संयत (सामान्य) - | ||||
सामान्य संयत | संयतासंयतवत् | 10 | संयतासंयतवत् | |
सामान्य छेदोपस्थापन | संयतासंयतवत् | 200 | संयतासंयतवत् | |
13 | परिहार विशुद्धि | संयतासंयतवत् | 200 | संयतासंयतवत् |
6. क्षायिक सामायिक छेदोपस्थापन - | ||||
मोह सामान्य | ||||
12 कषाय | ||||
9 कषाय | ||||
8-9 (उपशामक) - | ||||
सर्व स्थान | 200 | संयतासंयतवत् | ||
10. सूक्ष्म सांपराय उपशामक - | ||||
सर्व स्थान | देखें सत्त्व - 3.16 | 200 | संयतासंयतवत् | |
11. उपशांत कषाय - | ||||
मोह सामान्य | अंत: | 10 | अंत: | |
दर्शन मोह त्रिक | देखें सत्त्व - 3.16 | 200 | अंत: | |
12 कषाय | देखें सत्त्व - 3.16 | 200 | अंत: | |
नो कषाय | देखें सत्त्व - 3.16 | 200 | अंत: | |
8-9 (क्षपक) - | ||||
मोह सामान्य | देखें सत्त्व - 3.16 | |||
12 कषाय | देखें सत्त्व - 3.16 | |||
नो कषाय | देखें सत्त्व - 3.16 | |||
10. सूक्ष्म सांपराय क्षपक - | ||||
12 | मोह सामान्य | 1 समय | ||
लोभ | देखें सत्त्व - 3.16 |
18. मूलोत्तर प्रकृति चतुष्क की प्ररूपणाओं संबंधी सूची
19. अनुभाग सत्त्व की ओघ आदेश प्ररूपणा संबंधी सूची - कषायपाहुड़ 5/