स्वयंप्रभ: Difference between revisions
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<p id="2">(2) आगामी चौथे तीर्थंकर । <span class="GRef"> महापुराण 76. 473 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 558 </span></p> | <p id="2">(2) आगामी चौथे तीर्थंकर । <span class="GRef"> महापुराण 76. 473 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 558 </span></p> | ||
<p id="3">(3) पूर्वदिशा के स्वामी सोम लोकपाल का विमान । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.323 </span>।</p> | <p id="3">(3) पूर्वदिशा के स्वामी सोम लोकपाल का विमान । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.323 </span>।</p> | ||
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<p id="16">(16) सीता का जीव-अच्युत कल्प का देव । इसने राम मोक्ष न जाकर स्वर्ग में ही उत्पन्न हो, इस ध्येय से जानकी का वेष धारण करके राम की साधना में अनेक विघ्न उपस्थित किये थे पर राम । स्थिर रहे और केवली हुए । इसने उनके केवलज्ञान की पूजा करके उनसे अपने दोषों की क्षमा याचना की थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 122.13-73 </span></p> | <p id="16">(16) सीता का जीव-अच्युत कल्प का देव । इसने राम मोक्ष न जाकर स्वर्ग में ही उत्पन्न हो, इस ध्येय से जानकी का वेष धारण करके राम की साधना में अनेक विघ्न उपस्थित किये थे पर राम । स्थिर रहे और केवली हुए । इसने उनके केवलज्ञान की पूजा करके उनसे अपने दोषों की क्षमा याचना की थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 122.13-73 </span></p> | ||
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Revision as of 16:59, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
- भाविकालीन चौथे तीर्थंकर-देखें तीर्थंकर - 5।
- महापुराण/ सर्ग/श्लोक ऐशान स्वर्ग का एक देव था। (9/186) यह श्रेयांस राजा का पूर्व का छठा भव है।-देखें श्रेयांस ।
- सुमेरु पर्वत का अपर नाम-देखें सुमेरु ।
- रुचक पर्वतस्थ एक कूट-देखें लोक - 5.13।
पुराणकोष से
(1) रुचकगिरि की पश्चिम दिशा का एक कूट-त्रिशिरस् देवी की निवासभूमि । हरिवंशपुराण 5. 720
(2) आगामी चौथे तीर्थंकर । महापुराण 76. 473 हरिवंशपुराण 60. 558
(3) पूर्वदिशा के स्वामी सोम लोकपाल का विमान । हरिवंशपुराण 5.323 ।
(4) स्वयंभूरमण द्वीप के मध्य में स्थित वलयाकार एक पर्वत और वहाँ का निवासी एक व्यंतर देव । हरिवंशपुराण 5.730, 60.116
(5) पुंडरीकिणी नगरी के एक मुनि । इन्होंने पुष्करार्ध के विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित गण्यपुर नगर के मनोगति और चपलगति विद्याधरों को उनके बड़े भाई चिंतागति का माहेंद्र स्वर्ग से च्युत होकर सिंहपुर नगर का अपराजित नामक राजा होना बताया था । महापुराण 70.26-43, हरिवंशपुराण 34. 15-17, 34-37
(6) सौधर्म स्वर्ग का एक विमान । महापुराण 9.106-107
(7) ऐशान स्वर्ग का एक विमान और उसका निवासी एक देव । महापुराण 9.186
(8) भरतेश और सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 24.35, 25.100, 118
(9) एक मुनि । ये जंबूद्वीप के विदेहक्षेत्र में स्थित गंधिला देश में सिंहपुर नगर के राजकुमार जयवर्मा के दीक्षागुरु थे । महापुराण 5.203-205, 208
(10) एक मुनि । ये जंबूद्वीप के विदेहक्षेत्र में कच्छ देश क्षेमपुर नगर के राजा विमलवाहन के दीक्षागुरु थे । महापुराण 48.2, 7
(11) एक मुनि । ये धातकीखंड द्वीप के भरतक्षेत्र की अयोध्या नगरी के राजा अजितंजय के दीक्षागुरु थे । महापुराण 54. 86-87, 94-95
(12) एक द्वीप तथा वहाँँ का निवासी एक देव । इस देव की देवी का नाम स्वयंप्रभा था । महापुराण 71.451-452
(13) रावण द्वारा बसाया गया एक नगर । पद्मपुराण 7-337
(14) चौथे तीर्थंकर अभिनंदननाथ के पूर्वभव के पिता । महापुराण 20. 25
(15) एक हार । रामपुरी के निर्माता यक्ष ने यह हार राम को दिया था । पद्मपुराण 36.6
(16) सीता का जीव-अच्युत कल्प का देव । इसने राम मोक्ष न जाकर स्वर्ग में ही उत्पन्न हो, इस ध्येय से जानकी का वेष धारण करके राम की साधना में अनेक विघ्न उपस्थित किये थे पर राम । स्थिर रहे और केवली हुए । इसने उनके केवलज्ञान की पूजा करके उनसे अपने दोषों की क्षमा याचना की थी । पद्मपुराण 122.13-73
(17) सुमेरु पर्वत का अपर नाम । देखें सुमेरु