स्वमुखोदय
From जैनकोष
सर्वार्थसिद्धि 8/21/398/7 स एवं प्रत्ययवशादुपात्तोऽनुभवो द्विधा वर्तते स्वमुखेन परमुखेन च। = इस प्रकार कारणवश से प्राप्त हुआ वह अनुभव दो प्रकार से प्रवृत्त होता है - 1. स्वमुख से और 2 परमुख से।
अधिक जानकारी के लिये देखें उदय - 1।