वीरदत्त: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) कलिंग देश के दंतपुर नगर का एक वैश्य । यह भालों के भय से अपने साथियों और पत्नी वनमाला के साथ जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में वत्स देश की कौशांबी नगरी में आकर सुमुख सेठ के पास रहने लगा था । सुमुख सेठ इसकी पत्नी वनमाला को देखकर उस पर आसक्त हो गया था । उसने इसे बारह वर्ष के लिए व्यापार करने बा<span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span>भेजकर इसकी पत्नी को अपनी स्त्री बना लिया था । बारह वर्ष बाद लौटने पर स्त्री की प्रतिकूल स्थिति देखकर यह विरक्त हो गया था तथा इतने प्रोष्ठिल मुनि के पास जिनदीक्षा ले ली थी । आयु के अंत में | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) कलिंग देश के दंतपुर नगर का एक वैश्य । यह भालों के भय से अपने साथियों और पत्नी वनमाला के साथ जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में वत्स देश की कौशांबी नगरी में आकर सुमुख सेठ के पास रहने लगा था । सुमुख सेठ इसकी पत्नी वनमाला को देखकर उस पर आसक्त हो गया था । उसने इसे बारह वर्ष के लिए व्यापार करने बा<span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span>भेजकर इसकी पत्नी को अपनी स्त्री बना लिया था । बारह वर्ष बाद लौटने पर स्त्री की प्रतिकूल स्थिति देखकर यह विरक्त हो गया था तथा इतने प्रोष्ठिल मुनि के पास जिनदीक्षा ले ली थी । आयु के अंत में संन्यास मरण करके यह सौधर्म स्वर्ग में चित्रांगद देव हुआ । इसका अपर नाम वीरक था । <span class="GRef"> महापुराण 70.63-72, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 7.121-126 </span></p> | ||
<p id="2">(2) एक मुनि । इन्होंने यति शिवगुप्त द्वारा सौंपे गये मुनि वशिष्ठ को छ: मास पर्यंत अपने पास रखा था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span>33.72-73 </p> | <p id="2">(2) एक मुनि । इन्होंने यति शिवगुप्त द्वारा सौंपे गये मुनि वशिष्ठ को छ: मास पर्यंत अपने पास रखा था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span>33.72-73 </p> | ||
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(1) कलिंग देश के दंतपुर नगर का एक वैश्य । यह भालों के भय से अपने साथियों और पत्नी वनमाला के साथ जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में वत्स देश की कौशांबी नगरी में आकर सुमुख सेठ के पास रहने लगा था । सुमुख सेठ इसकी पत्नी वनमाला को देखकर उस पर आसक्त हो गया था । उसने इसे बारह वर्ष के लिए व्यापार करने बा हरिवंशपुराण भेजकर इसकी पत्नी को अपनी स्त्री बना लिया था । बारह वर्ष बाद लौटने पर स्त्री की प्रतिकूल स्थिति देखकर यह विरक्त हो गया था तथा इतने प्रोष्ठिल मुनि के पास जिनदीक्षा ले ली थी । आयु के अंत में संन्यास मरण करके यह सौधर्म स्वर्ग में चित्रांगद देव हुआ । इसका अपर नाम वीरक था । महापुराण 70.63-72, पांडवपुराण 7.121-126
(2) एक मुनि । इन्होंने यति शिवगुप्त द्वारा सौंपे गये मुनि वशिष्ठ को छ: मास पर्यंत अपने पास रखा था । हरिवंशपुराण 33.72-73