समयसार - आत्मख्याति टीका - कलश 46: Difference between revisions
From जैनकोष
('<div class="SanskritUtthanika">अथ जीवाजीवावेव कर्तृकर्मवेषेण प्रविश...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
Line 6: | Line 6: | ||
<div>साक्षात्कुर्वन्निरुपधिपृथग्द्रव्यनिर्भासि विश्वम् ॥४६॥</div> | <div>साक्षात्कुर्वन्निरुपधिपृथग्द्रव्यनिर्भासि विश्वम् ॥४६॥</div> | ||
</div> | </div> | ||
<br /> | <br /> | ||
[[समयसार - आत्मख्याति टीका - गाथा 69 - 70 | Next Page]] | [[समयसार - आत्मख्याति टीका - गाथा 69 - 70 | Next Page]] |
Revision as of 14:43, 10 December 2013
अथ जीवाजीवावेव कर्तृकर्मवेषेण प्रविशत:
( मन्दाक्रान्ता )
एक: कर्ता चिदहमिह मे कर्म कोपादयोऽमी
इत्यज्ञानां शमयदभित: कर्तृकर्मप्रवृत्तिम् ।
ज्ञानज्योति: स्फुरति परमोदात्तमत्यन्तधीरं
साक्षात्कुर्वन्निरुपधिपृथग्द्रव्यनिर्भासि विश्वम् ॥४६॥