अव्याप्त: Difference between revisions
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<span class="GRef"> न्यायदीपिका/1/5/7/5</span><span class="SanskritText"> त्रयोलक्षणाभासभेदाः - अव्याप्तमतिव्याप्तमसंभवि चेति। तत्र लक्ष्यैकदेशवृत्त्यव्याप्तम्, यथा गोः शावलेयत्वम्। लक्ष्यालक्ष्यवृत्त्यतिव्याप्तम् यथा तस्यैव पशुत्वम्। बाधितलक्ष्यवृत्त्यसंभवति, यथा नरस्य विषाणित्वम्। </span>= <span class="HindiText">लक्षणाभास के तीन भेद हैं − '''अव्याप्त''', अतिव्याप्त और असंभवि। (<span class="GRef">मोक्ष पंचाशत।14</span>) लक्ष्य के एक देश में लक्षण के रहने को अव्याप्त लक्षणाभास कहते हैं। जैसे - गाय का शावलेयत्व। शावलेयत्व सब गायों में नहीं पाया जाता वह कुछ ही गायों का धर्म है, इसलिए अव्याप्त है। लक्ष्य और अलक्ष्य में लक्षण के रहने को अतिव्याप्त लक्षणाभास कहते हैं। जैसे − गाय का ही पशुत्व लक्षण करना। यह पशुत्व गाय के सिवाय अश्वादि पशुओं में भी पाया जाता है इसलिए पशुत्व अतिव्याप्त है। जिसकी लक्ष्य में वृत्ति बाधित हो अर्थात् जो लक्ष्य में बिलकुल ही न रहे वह असंभवि लक्षणाभास है। जैसे − मनुष्य का लक्षण सींग। सींग किसी भी मनुष्य में नहीं पाया जाता। अतः वह असंभवि लक्षणाभास है। (<span class="GRef">मोक्ष पंचाशत/15 - 17</span>)। </span><br /> | |||
<p class="HindiText"> लक्षण का एक दोष। - देखें [[ लक्षण ]]।</p> | |||
Revision as of 14:19, 28 December 2022
न्यायदीपिका/1/5/7/5 त्रयोलक्षणाभासभेदाः - अव्याप्तमतिव्याप्तमसंभवि चेति। तत्र लक्ष्यैकदेशवृत्त्यव्याप्तम्, यथा गोः शावलेयत्वम्। लक्ष्यालक्ष्यवृत्त्यतिव्याप्तम् यथा तस्यैव पशुत्वम्। बाधितलक्ष्यवृत्त्यसंभवति, यथा नरस्य विषाणित्वम्। = लक्षणाभास के तीन भेद हैं − अव्याप्त, अतिव्याप्त और असंभवि। (मोक्ष पंचाशत।14) लक्ष्य के एक देश में लक्षण के रहने को अव्याप्त लक्षणाभास कहते हैं। जैसे - गाय का शावलेयत्व। शावलेयत्व सब गायों में नहीं पाया जाता वह कुछ ही गायों का धर्म है, इसलिए अव्याप्त है। लक्ष्य और अलक्ष्य में लक्षण के रहने को अतिव्याप्त लक्षणाभास कहते हैं। जैसे − गाय का ही पशुत्व लक्षण करना। यह पशुत्व गाय के सिवाय अश्वादि पशुओं में भी पाया जाता है इसलिए पशुत्व अतिव्याप्त है। जिसकी लक्ष्य में वृत्ति बाधित हो अर्थात् जो लक्ष्य में बिलकुल ही न रहे वह असंभवि लक्षणाभास है। जैसे − मनुष्य का लक्षण सींग। सींग किसी भी मनुष्य में नहीं पाया जाता। अतः वह असंभवि लक्षणाभास है। (मोक्ष पंचाशत/15 - 17)।
लक्षण का एक दोष। - देखें लक्षण ।