मेघनाद: Difference between revisions
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<ol class="HindiText"> <li> तीर्थंकर शांतिनाथ के प्रथम गणधर चक्रायुद्ध के छठे पूर्वभव का जीव । जंबूद्वीप संबंधी भरतक्षेत्र के विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में गमनवल्लभ चमर के राजा मेघवाहन और उसकी रानी मेघमालिनी का पुत्र । यह विजयार्ध को दोनों श्रेणियों का स्वामी था मेरु पर्वत के नंदन वन में प्रज्ञप्ति विद्या सिद्ध करते समय अपराजित बलभद्र के जीव अच्युतेंद्र द्वारा समझाये जाने पर इसने सुरामरगुरू मुनि से दीक्षा ली थी । एक असुर ने प्रतिमायोग में विराजमान देखकर इसके ऊपर अनेक उपसर्ग किये । उपसर्ग सहते हुए यह अडिग रहा । इसने आयु के अंत में संन्यासमरण किया और यह अच्युत स्वर्ग में प्रतींद्र हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 63. 29-36, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 5.5-10 </span></li> | <ol class="HindiText"> <li> तीर्थंकर शांतिनाथ के प्रथम गणधर चक्रायुद्ध के छठे पूर्वभव का जीव । जंबूद्वीप संबंधी भरतक्षेत्र के विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में गमनवल्लभ चमर के राजा मेघवाहन और उसकी रानी मेघमालिनी का पुत्र । यह विजयार्ध को दोनों श्रेणियों का स्वामी था मेरु पर्वत के नंदन वन में प्रज्ञप्ति विद्या सिद्ध करते समय अपराजित बलभद्र के जीव अच्युतेंद्र द्वारा समझाये जाने पर इसने सुरामरगुरू मुनि से दीक्षा ली थी । एक असुर ने प्रतिमायोग में विराजमान देखकर इसके ऊपर अनेक उपसर्ग किये । उपसर्ग सहते हुए यह अडिग रहा । इसने आयु के अंत में संन्यासमरण किया और यह अच्युत स्वर्ग में प्रतींद्र हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 63. 29-36, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 5.5-10 </span></li> | ||
<li> भद्रिलपुर नगर का राजा । जयंतपुर के राजा श्रीधर की पुत्री विमलश्री इसकी रानी थी । इसने धर्म मुनि के समीप व्रत धारण कर लिया था । आयु के अंत में मरकर यह सहस्रार स्वर्ग में अठारह सागर की आयु का धारी इंद्र हुआ । इसकी पत्नी विमलश्री ने भी पद्मावती नामक आर्यिका से संयम धारण किया तथा आचाम्लर्धन उपवास के फलस्वरूप वह आयु के अंत में सहस्रार स्वर्ग में देवी हुई । <span class="GRef"> महापुराण 71. 453-457, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 118-120 </span></ | <li> भद्रिलपुर नगर का राजा । जयंतपुर के राजा श्रीधर की पुत्री विमलश्री इसकी रानी थी । इसने धर्म मुनि के समीप व्रत धारण कर लिया था । आयु के अंत में मरकर यह सहस्रार स्वर्ग में अठारह सागर की आयु का धारी इंद्र हुआ । इसकी पत्नी विमलश्री ने भी पद्मावती नामक आर्यिका से संयम धारण किया तथा आचाम्लर्धन उपवास के फलस्वरूप वह आयु के अंत में सहस्रार स्वर्ग में देवी हुई । <span class="GRef"> महापुराण 71. 453-457, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 118-120 </span></li> | ||
<li> जरासंध का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 52.34 </span><li> | <li> जरासंध का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 52.34 </span></li> | ||
<li> अरिंजयपुर का राजा । इसकी पुत्री का नाम पद्मश्री था । इसे अपनी इस कन्या के कारण नभस्तिलक नगर के राजा वज्रपाणि से युद्ध करना पड़ा था । इसे एक केवली ने इसकी पुत्री का वर सुभौम चक्रवर्ती बताया था । अत: इतने सुभौम को चक्ररत्न प्राप्त होते ही उसे अपनी कन्या दे दी थी । सुभौम ने भी इसे विद्याधरों का राजा बना दिया था । शक्ति पाकर इसने अंत में अपने वैरी वज्रपाणि को मार डाला था । प्रतिनारायण बलि राजा इसकी संतति में छठा राजा था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 25. 14, 30-31, 34 </span | <li> अरिंजयपुर का राजा । इसकी पुत्री का नाम पद्मश्री था । इसे अपनी इस कन्या के कारण नभस्तिलक नगर के राजा वज्रपाणि से युद्ध करना पड़ा था । इसे एक केवली ने इसकी पुत्री का वर सुभौम चक्रवर्ती बताया था । अत: इतने सुभौम को चक्ररत्न प्राप्त होते ही उसे अपनी कन्या दे दी थी । सुभौम ने भी इसे विद्याधरों का राजा बना दिया था । शक्ति पाकर इसने अंत में अपने वैरी वज्रपाणि को मार डाला था । प्रतिनारायण बलि राजा इसकी संतति में छठा राजा था । </li><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 25. 14, 30-31, 34 </span> | ||
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Revision as of 17:43, 10 September 2022
सिद्धांतकोष से
महापुराण /63/ श्लोक नं.- भरतक्षेत्र विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में गगनवल्लभ नगर के राजा मेघवाहन का पुत्र था । दोनों श्रेणियों का राजा था । (28-30) । किसी समय प्रज्ञप्ति विद्या सिद्ध करता था । तब पूर्व जन्म के भाई अपराजित बलभद्र के जीव के समझाने पर दीक्षा ले ली । (31-32)। असुरकृत उपसर्ग में निश्चल रहे । (33-35)। संन्यास मरणकर अच्युतेंद्र हुए । (36)। यह शांतिनाथ भगवान् के प्रथम गणधर चक्रायुध के पूर्व का छठाँ भव है ।−देखें चक्रायुध ।
पुराणकोष से
- तीर्थंकर शांतिनाथ के प्रथम गणधर चक्रायुद्ध के छठे पूर्वभव का जीव । जंबूद्वीप संबंधी भरतक्षेत्र के विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में गमनवल्लभ चमर के राजा मेघवाहन और उसकी रानी मेघमालिनी का पुत्र । यह विजयार्ध को दोनों श्रेणियों का स्वामी था मेरु पर्वत के नंदन वन में प्रज्ञप्ति विद्या सिद्ध करते समय अपराजित बलभद्र के जीव अच्युतेंद्र द्वारा समझाये जाने पर इसने सुरामरगुरू मुनि से दीक्षा ली थी । एक असुर ने प्रतिमायोग में विराजमान देखकर इसके ऊपर अनेक उपसर्ग किये । उपसर्ग सहते हुए यह अडिग रहा । इसने आयु के अंत में संन्यासमरण किया और यह अच्युत स्वर्ग में प्रतींद्र हुआ । महापुराण 63. 29-36, पांडवपुराण 5.5-10
- भद्रिलपुर नगर का राजा । जयंतपुर के राजा श्रीधर की पुत्री विमलश्री इसकी रानी थी । इसने धर्म मुनि के समीप व्रत धारण कर लिया था । आयु के अंत में मरकर यह सहस्रार स्वर्ग में अठारह सागर की आयु का धारी इंद्र हुआ । इसकी पत्नी विमलश्री ने भी पद्मावती नामक आर्यिका से संयम धारण किया तथा आचाम्लर्धन उपवास के फलस्वरूप वह आयु के अंत में सहस्रार स्वर्ग में देवी हुई । महापुराण 71. 453-457, हरिवंशपुराण 60. 118-120
- जरासंध का पुत्र । हरिवंशपुराण 52.34
- अरिंजयपुर का राजा । इसकी पुत्री का नाम पद्मश्री था । इसे अपनी इस कन्या के कारण नभस्तिलक नगर के राजा वज्रपाणि से युद्ध करना पड़ा था । इसे एक केवली ने इसकी पुत्री का वर सुभौम चक्रवर्ती बताया था । अत: इतने सुभौम को चक्ररत्न प्राप्त होते ही उसे अपनी कन्या दे दी थी । सुभौम ने भी इसे विद्याधरों का राजा बना दिया था । शक्ति पाकर इसने अंत में अपने वैरी वज्रपाणि को मार डाला था । प्रतिनारायण बलि राजा इसकी संतति में छठा राजा था । हरिवंशपुराण 25. 14, 30-31, 34