स्तेनप्रयोग: Difference between revisions
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<span class="SanskritText"><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/7/27/367/3 </span>मुष्णंतं स्वयमेव वा प्रयुंक्तेऽन्येन वा प्रयोजयति प्रयुक्तमनुमन्यते वा यत: स स्तेनप्रयोग:।</span> = <span class="HindiText">किसी को चोरी के लिए स्वयं प्रेरित करना, या दूसरे के द्वारा प्रेरणा दिलाना या प्रयुक्त किये हुए की अनुमोदना करना स्तेन प्रयोग है। | <span class="SanskritText"><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/7/27/367/3 </span>मुष्णंतं स्वयमेव वा प्रयुंक्तेऽन्येन वा प्रयोजयति प्रयुक्तमनुमन्यते वा यत: स स्तेनप्रयोग:।</span> = <span class="HindiText">किसी को चोरी के लिए स्वयं प्रेरित करना, या दूसरे के द्वारा प्रेरणा दिलाना या प्रयुक्त किये हुए की अनुमोदना करना स्तेन प्रयोग है। <span class="GRef">( राजवार्तिक/7/27/1/554/6 )</span>।</span> | ||
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Revision as of 22:36, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि/7/27/367/3 मुष्णंतं स्वयमेव वा प्रयुंक्तेऽन्येन वा प्रयोजयति प्रयुक्तमनुमन्यते वा यत: स स्तेनप्रयोग:। = किसी को चोरी के लिए स्वयं प्रेरित करना, या दूसरे के द्वारा प्रेरणा दिलाना या प्रयुक्त किये हुए की अनुमोदना करना स्तेन प्रयोग है। ( राजवार्तिक/7/27/1/554/6 )।
पुराणकोष से
अचौर्य-अणुव्रत के पाँच अतिचारों में प्रथम अतिचार । कृत, कारित और अनुमोदना से चोर को चोरी के लिए प्रेरित करना स्तेनप्रयोग है । हरिवंशपुराण 58.171