धृति: Difference between revisions
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<p id="2">(2) राजा समुद्रविजय के भाई राजा अक्षोभ्य की रानी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 19.3 </span></p> | <p id="2">(2) राजा समुद्रविजय के भाई राजा अक्षोभ्य की रानी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 19.3 </span></p> | ||
<p id="3">(3) तिगिंछ सरोवर के शोभितकमल-भवनों में रहने वाली भवनवासिनी एक देवी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.121, 130 </span></p> | <p id="3">(3) तिगिंछ सरोवर के शोभितकमल-भवनों में रहने वाली भवनवासिनी एक देवी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.121, 130 </span></p> | ||
<p id="4">(4) रुचकगिरि के सुदर्शनकूट की निवासिनी एक दिक्कुमारी देवी । यह चमर लेकर जिनमाता की सेवा करती है । <span class="GRef"> महापुराण 12. 163-164, 38. 322, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 3.112-113, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.717 </span></p> | <p id="4">(4) रुचकगिरि के सुदर्शनकूट की निवासिनी एक दिक्कुमारी देवी । यह चमर लेकर जिनमाता की सेवा करती है । <span class="GRef"> महापुराण 12. 163-164, 38. 322, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_3#112|पद्मपुराण - 3.112-113]], </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.717 </span></p> | ||
<p id="5">(5) गर्भान्वय की त्रेपन क्रियाओं में चौथी क्रिया । यह गर्भ की वृद्धि के लिए गर्भ से सातवें मास में की जाती है । प्रथम क्रिया के समान इसमें भी पूजन आदि कार्य किये जाते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 38. 55-82 </span></p> | <p id="5">(5) गर्भान्वय की त्रेपन क्रियाओं में चौथी क्रिया । यह गर्भ की वृद्धि के लिए गर्भ से सातवें मास में की जाती है । प्रथम क्रिया के समान इसमें भी पूजन आदि कार्य किये जाते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 38. 55-82 </span></p> | ||
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Revision as of 22:21, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
देखें संस्कार - 2।
पुराणकोष से
(1) छ: जिनमातृक देवियों में एक देवी । यह जिनमाता के शरीर में अपने धैर्य गुण को स्थापित करती है । महापुराण 38.226 वीरवर्द्धमान चरित्र 7. 107. 108
(2) राजा समुद्रविजय के भाई राजा अक्षोभ्य की रानी । हरिवंशपुराण 19.3
(3) तिगिंछ सरोवर के शोभितकमल-भवनों में रहने वाली भवनवासिनी एक देवी । हरिवंशपुराण 5.121, 130
(4) रुचकगिरि के सुदर्शनकूट की निवासिनी एक दिक्कुमारी देवी । यह चमर लेकर जिनमाता की सेवा करती है । महापुराण 12. 163-164, 38. 322, पद्मपुराण - 3.112-113, हरिवंशपुराण 5.717
(5) गर्भान्वय की त्रेपन क्रियाओं में चौथी क्रिया । यह गर्भ की वृद्धि के लिए गर्भ से सातवें मास में की जाती है । प्रथम क्रिया के समान इसमें भी पूजन आदि कार्य किये जाते हैं । महापुराण 38. 55-82