चारित्राचार: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
| | ||
== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
देखें [[ आचार ]]। | <span class="GRef">मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 288,297 </span><p class=" PrakritText ">पाणिवहमुसावाद अदत्तमेवहुणपरिग्गहाविरदी। एस चरित्ताचारो पंचविहो होदि णादव्वो ॥288॥ पणिधाणजोगजुत्तो पंचमु समिदीसु तीसु गुत्तीसु। एस चरित्ताचारो अट्ठविधो होई णायव्वो ॥297॥</p> | ||
<p class="HindiText">= प्राणियों की हिंसा, झूठ बोलना, चोरी, मैथुन, सेवा, परिग्रह-इनका त्याग करना वह अहिंसा आदि पाँच प्रकारका '''चारित्रचार''' जानना ॥288॥ परिणाम के संयोग से; पाँच समिति तीन गुप्तियों मे अकषाय रूप प्रवृत्ति आठ भेद वाला '''चारित्रचार''' है।</p> | |||
<p class="HindiText">देखें [[ आचार ]]।</p> | |||
<noinclude> | <noinclude> |
Revision as of 17:34, 12 May 2023
सिद्धांतकोष से
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 288,297
पाणिवहमुसावाद अदत्तमेवहुणपरिग्गहाविरदी। एस चरित्ताचारो पंचविहो होदि णादव्वो ॥288॥ पणिधाणजोगजुत्तो पंचमु समिदीसु तीसु गुत्तीसु। एस चरित्ताचारो अट्ठविधो होई णायव्वो ॥297॥
= प्राणियों की हिंसा, झूठ बोलना, चोरी, मैथुन, सेवा, परिग्रह-इनका त्याग करना वह अहिंसा आदि पाँच प्रकारका चारित्रचार जानना ॥288॥ परिणाम के संयोग से; पाँच समिति तीन गुप्तियों मे अकषाय रूप प्रवृत्ति आठ भेद वाला चारित्रचार है।
देखें आचार ।
पुराणकोष से
तेरह प्रकार के चारित्र का पालन । यह ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और कर्माचार इन पाँच आचारों में तीसरा आचार है । चारित्राचार मे पांच समितियों, पांच महाव्रतों और तीन गुप्तियों रूप पालन आवश्यक होता है । महापुराण 20.173, पांडवपुराण 23. 57