द्वेष: Difference between revisions
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<li><strong class="HindiText"> द्वेष का लक्षण</strong><br> स.सा./आ./५१ <span class="SanskritText">अप्रीतिरूपो द्वेष:।</span><br>प्र.सा./त.प्र./८५ <span class="SanskritText">मोहम् – अनभीष्टविषयाप्रीत्याद्वेषमिति। नि.सा./ता.वृ./६६ असह्यजनेषु वापि चासह्यपदार्थसार्थेषु वा वैरस्य परिणामो द्वेष:। </span>= | |||
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<li class="HindiText"> अनिष्ट विषयों में अप्रीति रखना भी मोह का ही एक भेद है। उसे द्वेष कहते हैं।</li> | |||
<li class="HindiText"> असह्यजनों में तथा असह्यपदार्थों के समूह में वैर के परिणाम रखना द्वेष कहलाता है। और भी देखें - [[ राग#2 | राग / २ ]]।</li> | |||
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<li><span class="HindiText"><strong> द्वेष के भेद</strong> </span><br>क.पा.१/१-१४/चूर्ण सूत्र/२२६/२७७ <span class="PrakritText">दोसो णिक्खिवियव्वो णामदोसो ट्ठवदोसो दव्वदोसो भावदोसो चेदि।</span> =<span class="HindiText">नामदोष, स्थापनादोष, द्रव्यदोष और भावदोष इस प्रकार दोष (द्वेष) का निक्षेप करना चाहिए। (इनके उत्तर भेदों के लिए देखें - [[ निक्षेप | निक्षेप ]])।<br> देखें - [[ कषाय#4 | कषाय / ४ ]]क्रोध, मान, अरति, शोक, भय, व जुगुप्सा ये छह कषाय द्वेषरूप हैं। </span></li> | |||
<li><span class="HindiText"><strong> द्वेष के भेदों के लक्षण</strong></span><br> | |||
क.पा.१/१-१४/चूर्ण सूत्र/२३०-२३३/२८०-२८३ <span class="PrakritText">णामट्ठवणा-आगमदव्वणोआगमदव्वजाणुगसरीर-मविय-णिक्खेवा सुगमा त्ति कट्टु तेसिमत्थमभणिय तव्वदिरित्त-णोआगमदव्वदोससरूवपरूवणट्ठमुत्तरसुत्तं भणदि। –णोआगमदव्वदोसो णाम जं दव्वं जेण उवघादेण उवभोगं ण एदि तस्स दव्वस्स सो उवघादो दोसो णाम। –तं जहा–सादियए अग्गिदद्धं वा मूसयभक्खियं वा एवमादि। </span>=<span class="HindiText">नामनिक्षेप, स्थापनानिक्षेप, आगमद्रव्यनिक्षेप और नोआगमद्रव्यनिक्षेप के दो भेद ज्ञायकशरीर और भावी ये सब निक्षेप सुगम हैं (देखें - [[ निक्षेप | निक्षेप ]])। ऐसा समझकर इन सब निक्षेपों के स्वरूप का कथन नहीं करके तद्वयतिरिक्त नोआगमद्रव्यदोष के स्वरूप का कथन करने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं–जो द्रव्य इस उपघात के निमित्त से उपभोग को नहीं प्राप्त होता है वह उपघात उस द्रव्य का दोष है। इसे ही तद्वयतिरिक्तनोआगमद्रव्यदोष समझना चाहिए। वह उपघात दोष कौन-सा है ? साड़ी का अग्नि से जल जाना अथवा चूहों के द्वारा खाया जाना तथा इसी प्रकार और दूसरे भी दोष हैं। </span></li> | |||
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<li><span class="HindiText"><strong>द्वेष सम्बन्धी अन्य विषय―देखें - [[ राग | राग। ]]</strong></span></li> | |||
<li><span class="HindiText"><strong>द्वेष का स्वभाव विभावपना तथा सहेतुक अहेतुकपना― देखें - [[ विभाव#2 | विभाव / २ ]],५।</strong></span></li> | |||
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Revision as of 16:16, 25 December 2013
- द्वेष का लक्षण
स.सा./आ./५१ अप्रीतिरूपो द्वेष:।
प्र.सा./त.प्र./८५ मोहम् – अनभीष्टविषयाप्रीत्याद्वेषमिति। नि.सा./ता.वृ./६६ असह्यजनेषु वापि चासह्यपदार्थसार्थेषु वा वैरस्य परिणामो द्वेष:। =- अनिष्ट विषयों में अप्रीति रखना भी मोह का ही एक भेद है। उसे द्वेष कहते हैं।
- असह्यजनों में तथा असह्यपदार्थों के समूह में वैर के परिणाम रखना द्वेष कहलाता है। और भी देखें - राग / २ ।
- द्वेष के भेद
क.पा.१/१-१४/चूर्ण सूत्र/२२६/२७७ दोसो णिक्खिवियव्वो णामदोसो ट्ठवदोसो दव्वदोसो भावदोसो चेदि। =नामदोष, स्थापनादोष, द्रव्यदोष और भावदोष इस प्रकार दोष (द्वेष) का निक्षेप करना चाहिए। (इनके उत्तर भेदों के लिए देखें - निक्षेप )।
देखें - कषाय / ४ क्रोध, मान, अरति, शोक, भय, व जुगुप्सा ये छह कषाय द्वेषरूप हैं। - द्वेष के भेदों के लक्षण
क.पा.१/१-१४/चूर्ण सूत्र/२३०-२३३/२८०-२८३ णामट्ठवणा-आगमदव्वणोआगमदव्वजाणुगसरीर-मविय-णिक्खेवा सुगमा त्ति कट्टु तेसिमत्थमभणिय तव्वदिरित्त-णोआगमदव्वदोससरूवपरूवणट्ठमुत्तरसुत्तं भणदि। –णोआगमदव्वदोसो णाम जं दव्वं जेण उवघादेण उवभोगं ण एदि तस्स दव्वस्स सो उवघादो दोसो णाम। –तं जहा–सादियए अग्गिदद्धं वा मूसयभक्खियं वा एवमादि। =नामनिक्षेप, स्थापनानिक्षेप, आगमद्रव्यनिक्षेप और नोआगमद्रव्यनिक्षेप के दो भेद ज्ञायकशरीर और भावी ये सब निक्षेप सुगम हैं (देखें - निक्षेप )। ऐसा समझकर इन सब निक्षेपों के स्वरूप का कथन नहीं करके तद्वयतिरिक्त नोआगमद्रव्यदोष के स्वरूप का कथन करने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं–जो द्रव्य इस उपघात के निमित्त से उपभोग को नहीं प्राप्त होता है वह उपघात उस द्रव्य का दोष है। इसे ही तद्वयतिरिक्तनोआगमद्रव्यदोष समझना चाहिए। वह उपघात दोष कौन-सा है ? साड़ी का अग्नि से जल जाना अथवा चूहों के द्वारा खाया जाना तथा इसी प्रकार और दूसरे भी दोष हैं।