अर्हद्भक्ति: Difference between revisions
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<span class="GRef"> धवला 8/3,41/89-90/4 </span><span class="PrakritText">तेसु (अरहतेसु) भत्ती अरहंतभत्ती । ... अरहंत वुत्ताणुट्ठाणाणुवत्तणं तदणुट्ठाणपासो वा अरहंतभत्ती णाम । </span> = <span class="HindiText">अरहंतों में जो गुणानुरागरूप भक्ति होती है, वह '''अरहंत भक्ति''' कहलाती है...। अथवा अरहंत के द्वारा उपदिष्ट अनुष्ठान के अनुकूल प्रवृत्ति करने या उक्त अनुष्ठान के स्पर्श को '''अरहंत भक्ति''' कहते हैं । | |||
<p class="HindiText">देखें [[ भक्ति#1.3 | भक्ति - 1.3]]।</p> | <p class="HindiText">देखें [[ भक्ति#1.3 | भक्ति - 1.3]]।</p> | ||
Revision as of 06:54, 29 October 2022
सिद्धांतकोष से
धवला 8/3,41/89-90/4 तेसु (अरहतेसु) भत्ती अरहंतभत्ती । ... अरहंत वुत्ताणुट्ठाणाणुवत्तणं तदणुट्ठाणपासो वा अरहंतभत्ती णाम । = अरहंतों में जो गुणानुरागरूप भक्ति होती है, वह अरहंत भक्ति कहलाती है...। अथवा अरहंत के द्वारा उपदिष्ट अनुष्ठान के अनुकूल प्रवृत्ति करने या उक्त अनुष्ठान के स्पर्श को अरहंत भक्ति कहते हैं ।
देखें भक्ति - 1.3।
पुराणकोष से
(1) सोलह कारण भावनाओं में दसवीं भावना-जिनेंद्र के प्रति मन, वचन और काय से भावशुद्धिपूर्वक श्रद्धा रखना । महापुराण 63.327, हरिवंशपुराण 34.141
(2) राक्षसवंशी राजा । उग्रश्री के पश्चात् लंका का स्वामित्व इसे ही प्राप्त हुआ था । यह माया, पराक्रम, विद्या, बल और कांति का धारी था । पद्मपुराण 5.396-400