अतिशयान हेतु: Difference between revisions
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<p><span class="GRef">आप्त मीमांसा/1/4</span> <span class="SanskritText">दोषावरणयोर्हानिर्नि:शेषास्त्यतिशायनात् । क्वचिद्यथा स्वहेतुभ्यो बहिरंतरमलक्षय:।4।</span> =<span class="HindiText">क्वचित् अपने योग्य ताप आदि निमित्तों को पाकर जैसे सुवर्ण की कालिमा आदि नष्ट हो जाती है उसी प्रकार जीव में भी कथंचित् कदाचित् संपूर्ण अंतरंग व बाह्य मलों का अभाव संभव है, ऐसा '''अतिशायन''' हेतु से सिद्ध है।4|</span></p> | |||
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आप्त मीमांसा/1/4 दोषावरणयोर्हानिर्नि:शेषास्त्यतिशायनात् । क्वचिद्यथा स्वहेतुभ्यो बहिरंतरमलक्षय:।4। =क्वचित् अपने योग्य ताप आदि निमित्तों को पाकर जैसे सुवर्ण की कालिमा आदि नष्ट हो जाती है उसी प्रकार जीव में भी कथंचित् कदाचित् संपूर्ण अंतरंग व बाह्य मलों का अभाव संभव है, ऐसा अतिशायन हेतु से सिद्ध है।4|
- हेतु के भेदों को विस्तार से समझने के लिये देखें हेतु ।