अतिशयान हेतु
From जैनकोष
आप्त मीमांसा/1/4 दोषावरणयोर्हानिर्नि:शेषास्त्यतिशायनात् । क्वचिद्यथा स्वहेतुभ्यो बहिरंतरमलक्षय:।4। =क्वचित् अपने योग्य ताप आदि निमित्तों को पाकर जैसे सुवर्ण की कालिमा आदि नष्ट हो जाती है उसी प्रकार जीव में भी कथंचित् कदाचित् संपूर्ण अंतरंग व बाह्य मलों का अभाव संभव है, ऐसा अतिशायन हेतु से सिद्ध है।4|
- हेतु के भेदों को विस्तार से समझने के लिये देखें हेतु ।