अनुभूति: Difference between revisions
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<span class="GRef">समयसार / आत्मख्याति गाथा 14/कलश 13</span> <p class="SanskritText">आत्मानुभूतिरिति शुद्धनयात्मिका या ज्ञानानुभूतिरियमेव किलेति बद्ध्वा। आत्मानमात्मनि निवेश्य सुनिष्प्रकंपमेकोऽस्ति नित्यमवबोधधनः समंतात् ॥13॥ </p> | <span class="GRef">समयसार / आत्मख्याति गाथा 14/कलश 13</span> <p class="SanskritText">आत्मानुभूतिरिति शुद्धनयात्मिका या ज्ञानानुभूतिरियमेव किलेति बद्ध्वा। आत्मानमात्मनि निवेश्य सुनिष्प्रकंपमेकोऽस्ति नित्यमवबोधधनः समंतात् ॥13॥ </p> | ||
<p class="HindiText">= शुद्धनय स्वरूप आत्मा की अनुभूति ही ज्ञान की '''अनुभूति''' है। अतः आत्मा में आत्मा को निश्चल स्थापित करके सदा सर्व और एक ज्ञानधन आत्मा है इस प्रकार देखो।</p><br> | <p class="HindiText">= शुद्धनय स्वरूप आत्मा की अनुभूति ही ज्ञान की '''अनुभूति''' है। अतः आत्मा में आत्मा को निश्चल स्थापित करके सदा सर्व और एक ज्ञानधन आत्मा है इस प्रकार देखो।</p><br> | ||
<p class="HindiText"> - देखें [[ अनुभव ]]।</p> | |||
Latest revision as of 09:58, 22 December 2022
समयसार / आत्मख्याति गाथा 14/कलश 13
आत्मानुभूतिरिति शुद्धनयात्मिका या ज्ञानानुभूतिरियमेव किलेति बद्ध्वा। आत्मानमात्मनि निवेश्य सुनिष्प्रकंपमेकोऽस्ति नित्यमवबोधधनः समंतात् ॥13॥
= शुद्धनय स्वरूप आत्मा की अनुभूति ही ज्ञान की अनुभूति है। अतः आत्मा में आत्मा को निश्चल स्थापित करके सदा सर्व और एक ज्ञानधन आत्मा है इस प्रकार देखो।
- देखें अनुभव ।