अनुभूति
From जैनकोष
समयसार / आत्मख्याति गाथा 14/कलश 13
आत्मानुभूतिरिति शुद्धनयात्मिका या ज्ञानानुभूतिरियमेव किलेति बद्ध्वा। आत्मानमात्मनि निवेश्य सुनिष्प्रकंपमेकोऽस्ति नित्यमवबोधधनः समंतात् ॥13॥
= शुद्धनय स्वरूप आत्मा की अनुभूति ही ज्ञान की अनुभूति है। अतः आत्मा में आत्मा को निश्चल स्थापित करके सदा सर्व और एक ज्ञानधन आत्मा है इस प्रकार देखो।
- देखें अनुभव ।