अमुख मंगल: Difference between revisions
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<span class="GRef"> पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/1/5/10 </span><span class="SanskritText">तत्र मुख्यमंगलं कथ्यते, आदौ मध्येऽवसाने च मंगलं भाषितं बुधै:। तज्जिनेंद्रगुणस्तोत्रं तदविघ्नप्रसिद्धये।1। अमुख्यमंगलं कथ्यते–सिद्धत्थ पुण्णकुंभो वंदणमाला य पुंडुरं छत्तं। सेदो वण्णो आदस्स णाय कण्णा य जत्तस्सो।1। | <span class="GRef"> पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/1/5/10 </span><span class="SanskritText">तत्र मुख्यमंगलं कथ्यते, आदौ मध्येऽवसाने च मंगलं भाषितं बुधै:। तज्जिनेंद्रगुणस्तोत्रं तदविघ्नप्रसिद्धये।1। अमुख्यमंगलं कथ्यते–सिद्धत्थ पुण्णकुंभो वंदणमाला य पुंडुरं छत्तं। सेदो वण्णो आदस्स णाय कण्णा य जत्तस्सो।1। |
Latest revision as of 14:54, 26 December 2022
इसे अमुख्य मंगल भी कहते हैं।
पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/1/5/10 तत्र मुख्यमंगलं कथ्यते, आदौ मध्येऽवसाने च मंगलं भाषितं बुधै:। तज्जिनेंद्रगुणस्तोत्रं तदविघ्नप्रसिद्धये।1। अमुख्यमंगलं कथ्यते–सिद्धत्थ पुण्णकुंभो वंदणमाला य पुंडुरं छत्तं। सेदो वण्णो आदस्स णाय कण्णा य जत्तस्सो।1। = ज्ञानियों द्वारा शास्त्र के आदि, मध्य व अंत में विघ्न-निवारण के लिए जो जिनेंद्रदेव का गुणस्तवन किया जाता है, वह मुख्य मंगल है और पीली सरसों, पूर्ण कलश, वंदनमाला, छत्र, श्वेत वर्ण, दर्पण, उत्तम जाति का घोड़ा आदि ये अमुख्यमंगल हैं।
मंगल के अन्य प्रकारों के लिए देखें - मंगल