• जैनकोष
    जैनकोष
  • Menu
  • Main page
    • Home
    • Dictionary
    • Literature
    • Kaavya Kosh
    • Study Material
    • Audio
    • Video
    • Online Classes
    • Games
  • Share
    • Home
    • Dictionary
    • Literature
    • Kaavya Kosh
    • Study Material
    • Audio
    • Video
    • Online Classes
    • Games
  • Login

जैन शब्दों का अर्थ जानने के लिए किसी भी शब्द को नीचे दिए गए स्थान पर हिंदी में लिखें एवं सर्च करें

अमुख मंगल

From जैनकोष

 Share 

इसे अमुख्य मंगल भी कहते हैं।

पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/1/5/10 तत्र मुख्यमंगलं कथ्यते, आदौ मध्येऽवसाने च मंगलं भाषितं बुधै:। तज्जिनेंद्रगुणस्तोत्रं तदविघ्नप्रसिद्धये।1। अमुख्यमंगलं कथ्यते–सिद्धत्थ पुण्णकुंभो वंदणमाला य पुंडुरं छत्तं। सेदो वण्णो आदस्स णाय कण्णा य जत्तस्सो।1। = ज्ञानियों द्वारा शास्त्र के आदि, मध्य व अंत में विघ्न-निवारण के लिए जो जिनेंद्रदेव का गुणस्तवन किया जाता है, वह मुख्य मंगल है और पीली सरसों, पूर्ण कलश, वंदनमाला, छत्र, श्वेत वर्ण, दर्पण, उत्तम जाति का घोड़ा आदि ये अमुख्यमंगल हैं।

मंगल के अन्य प्रकारों के लिए देखें - मंगल


पूर्व पृष्ठ

अगला पृष्ठ

Retrieved from "http://www.jainkosh.org/w/index.php?title=अमुख_मंगल&oldid=107120"
Categories:
  • अ
  • द्रव्यानुयोग
JainKosh

जैनकोष याने जैन आगम का डिजिटल ख़जाना ।

यहाँ जैन धर्म के आगम, नोट्स, शब्दकोष, ऑडियो, विडियो, पाठ, स्तोत्र, भक्तियाँ आदि सब कुछ डिजिटली उपलब्ध हैं |

Quick Links

  • Home
  • Dictionary
  • Literature
  • Kaavya Kosh
  • Study Material
  • Audio
  • Video
  • Online Classes
  • Games

Other Links

  • This page was last edited on 26 December 2022, at 14:54.
  • Privacy policy
  • About जैनकोष
  • Disclaimers
© Copyright Jainkosh. All Rights Reserved
Powered by MediaWiki