अर्थ मल: Difference between revisions
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<p><big> मल तीन प्रकार का होता है - अर्थ, अभिधान व प्रत्यय। अर्थमल द्रव्य व भावमल के रूप में दो प्रकार का होता है। </big></p> | <p><big> मल तीन प्रकार का होता है - अर्थ, अभिधान व प्रत्यय। अर्थमल द्रव्य व भावमल के रूप में दो प्रकार का होता है। </big></p> | ||
<span class="HindiText" name="1" id="1"><span class="GRef"> तिलोयपण्णत्ति/1 | <span class="HindiText" name="1" id="1"><span class="GRef"> तिलोयपण्णत्ति/1 गाथा 10-14, 17</span><span class="PrakritText">दोण्णि वियप्पा होंति हु मलस्स इमं दव्वभावभेएहिं। दव्वमलं दुविहप्पं बाहिरमब्भंतरं चेय।10। सेदमलरेणुकद्दमपहुदी बाहिरमलंसमुद्दिट्ठं। पुणु दिढजीवपदेसे णिबंधरूवाइ पयडिठिदिआई।11। अणुभागपदेसाइं चउहिं पत्तेकभेज्जमाणं तु। णाणावरणप्पहुदी अट्ठविहं कम्ममखिलपावरयं।12। अब्भंतरदव्वमलं जीवपदेसे णिबद्धमिदि हेदो। भावमलं णादव्वं अणाणदंसणादिपरिणामो।13। अहवा बहुभेयगयं णाणावरणादि दव्वभावमलभेदा।14। पावमलं ति भण्णइ उवचारसरूवएण जीवाणं।17। </span>= <span class="HindiText">द्रव्य और भाव के भेद से मल के दो भेद हैं। इनमें से द्रव्यमल भी दो प्रकार का है – बाह्य व अभ्यंतर।10। स्वेद, मल, रेणु, कर्दम इत्यादिक '''बाह्य द्रव्यमल''' कहा गया है और दृढ़रूप से जीव के प्रदेशों में एक क्षेत्रावगाहरूप बंध को प्राप्त, तथा प्रकृति स्थिति अनुभाग व प्रदेश इन चार भेदों से प्रत्येक भेद को प्राप्त होने वाला - ऐसा ज्ञानावरणादि आठ प्रकार का संपूर्ण कर्मरूपी पापरज, चूँकि जीव के प्रदेशों में संबद्ध है, इस हेतु से वह '''अभ्यंतर द्रव्यमल''' है। अज्ञान अदर्शन इत्यादिक जीव के परिणामों को '''भावमल''' समझना चाहिए।11-13। अथवा ज्ञानावरणादिक द्रव्यमल के और ज्ञानावरणादिक भावमल के भेद से मल के अनेक भेद हैं।14। अथवा जीवों के पाप को उपचार से मल कहा जाता है।17। (<span class="GRef"> धवला 1/1,1,1/32/6 </span>)।</span> | ||
Revision as of 12:35, 27 December 2022
मल तीन प्रकार का होता है - अर्थ, अभिधान व प्रत्यय। अर्थमल द्रव्य व भावमल के रूप में दो प्रकार का होता है।
तिलोयपण्णत्ति/1 गाथा 10-14, 17दोण्णि वियप्पा होंति हु मलस्स इमं दव्वभावभेएहिं। दव्वमलं दुविहप्पं बाहिरमब्भंतरं चेय।10। सेदमलरेणुकद्दमपहुदी बाहिरमलंसमुद्दिट्ठं। पुणु दिढजीवपदेसे णिबंधरूवाइ पयडिठिदिआई।11। अणुभागपदेसाइं चउहिं पत्तेकभेज्जमाणं तु। णाणावरणप्पहुदी अट्ठविहं कम्ममखिलपावरयं।12। अब्भंतरदव्वमलं जीवपदेसे णिबद्धमिदि हेदो। भावमलं णादव्वं अणाणदंसणादिपरिणामो।13। अहवा बहुभेयगयं णाणावरणादि दव्वभावमलभेदा।14। पावमलं ति भण्णइ उवचारसरूवएण जीवाणं।17। = द्रव्य और भाव के भेद से मल के दो भेद हैं। इनमें से द्रव्यमल भी दो प्रकार का है – बाह्य व अभ्यंतर।10। स्वेद, मल, रेणु, कर्दम इत्यादिक बाह्य द्रव्यमल कहा गया है और दृढ़रूप से जीव के प्रदेशों में एक क्षेत्रावगाहरूप बंध को प्राप्त, तथा प्रकृति स्थिति अनुभाग व प्रदेश इन चार भेदों से प्रत्येक भेद को प्राप्त होने वाला - ऐसा ज्ञानावरणादि आठ प्रकार का संपूर्ण कर्मरूपी पापरज, चूँकि जीव के प्रदेशों में संबद्ध है, इस हेतु से वह अभ्यंतर द्रव्यमल है। अज्ञान अदर्शन इत्यादिक जीव के परिणामों को भावमल समझना चाहिए।11-13। अथवा ज्ञानावरणादिक द्रव्यमल के और ज्ञानावरणादिक भावमल के भेद से मल के अनेक भेद हैं।14। अथवा जीवों के पाप को उपचार से मल कहा जाता है।17। ( धवला 1/1,1,1/32/6 )।