अवक्तव्य बंध: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> महाबंध/270/145/2 </span> <span class="PrakritGatha">याओ एण्णिं ट्ठिदीओ बंधदि अणंतरादिसक्का-विदविदिक्कंते समये अप्पदरादो बहुदरं बंधदि त्ति एसो भुजगारबंधो णाम। .... याओ एण्णि ट्ठिदीओ बंधदि अणंतरउस्सक्काविदविदिक्कंते समये बहुदरादो अप्पदरं बंधदि त्ति एसो अप्पदरबंधो णाम।... याओ एण्णि ट्ठिदीओ बंधदि अणंतरओसक्काविदउस्सक्काविदविदिक्कंते समये तत्तियाओ ततियाओ चेव बंधदि त्ति एसो अवट्ठिदिबंधो णाम। ... अबंधदो बंधदि त्ति एसो अवत्तव्वबंधो णाम। </span> | |||
<span class="HindiText">= वर्तमान समय में जिन स्थितियों को बाँधता है उन्हें अनंतर अतिक्रांत समय में घटी हुई बाँधी गयी अल्पतर स्थिति से बहुतर बाँधता है यह <strong>भुजगारबंध</strong> है। ...वर्तमान समय में जिन स्थितियों को बाँधता है, उन्हें अनंतर अतिक्रांत समय में बढ़ी हुई बाँधी गई बहुतर स्थिति से अल्पतर बाँधता है यह <strong>अल्पतरबंध</strong> है। ... वर्तमान समय में जिन स्थितियों को बाँधता है, उन्हें अनंतर अतिक्रांत समय में घटी हुई या बढ़ी हुई बाँधी गयी स्थिति से उतनी ही बाँधता है, यह <strong>अवस्थित</strong> बंध है। अर्थात् - प्रथम समय में अल्प का बंध करके अनंतर बहुत का बंध करना भुजगारबंध है। इसी प्रकार बहुत का बंध करके अल्प का बंध करना अल्पतरबंध है। पिछले समय में जितना बंध किया है, अगले समय में उतना ही बंध करना अवस्थितबंध है।</span> (<span class="GRef"> (गोम्मटसार कर्मकांड/469/615;563-564/764) </span>) (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/453/602/5 </span>)।<span class="HindiText"> बंध का अभाव होने के बाद पुन: बाँधता है यह <strong>अवक्तव्यबंध</strong> है।</span></p> | |||
<p>देखें [[ प्रकृति बंध#1 | प्रकृति बंध - 1]]।</p> | <p>देखें [[ प्रकृति बंध#1 | प्रकृति बंध - 1]]।</p> | ||
Revision as of 13:49, 27 December 2022
महाबंध/270/145/2 याओ एण्णिं ट्ठिदीओ बंधदि अणंतरादिसक्का-विदविदिक्कंते समये अप्पदरादो बहुदरं बंधदि त्ति एसो भुजगारबंधो णाम। .... याओ एण्णि ट्ठिदीओ बंधदि अणंतरउस्सक्काविदविदिक्कंते समये बहुदरादो अप्पदरं बंधदि त्ति एसो अप्पदरबंधो णाम।... याओ एण्णि ट्ठिदीओ बंधदि अणंतरओसक्काविदउस्सक्काविदविदिक्कंते समये तत्तियाओ ततियाओ चेव बंधदि त्ति एसो अवट्ठिदिबंधो णाम। ... अबंधदो बंधदि त्ति एसो अवत्तव्वबंधो णाम। = वर्तमान समय में जिन स्थितियों को बाँधता है उन्हें अनंतर अतिक्रांत समय में घटी हुई बाँधी गयी अल्पतर स्थिति से बहुतर बाँधता है यह भुजगारबंध है। ...वर्तमान समय में जिन स्थितियों को बाँधता है, उन्हें अनंतर अतिक्रांत समय में बढ़ी हुई बाँधी गई बहुतर स्थिति से अल्पतर बाँधता है यह अल्पतरबंध है। ... वर्तमान समय में जिन स्थितियों को बाँधता है, उन्हें अनंतर अतिक्रांत समय में घटी हुई या बढ़ी हुई बाँधी गयी स्थिति से उतनी ही बाँधता है, यह अवस्थित बंध है। अर्थात् - प्रथम समय में अल्प का बंध करके अनंतर बहुत का बंध करना भुजगारबंध है। इसी प्रकार बहुत का बंध करके अल्प का बंध करना अल्पतरबंध है। पिछले समय में जितना बंध किया है, अगले समय में उतना ही बंध करना अवस्थितबंध है। ( (गोम्मटसार कर्मकांड/469/615;563-564/764) ) ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/453/602/5 )। बंध का अभाव होने के बाद पुन: बाँधता है यह अवक्तव्यबंध है।
देखें प्रकृति बंध - 1।