आमर्षौषध ऋद्धि: Difference between revisions
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<p> | <span class="GRef">तिलोयपण्णत्ति/ अधिकार संख्या ४/१०६८-१०७२ </span><p class=" PrakritText ">रिसिकरचरणादीणं अल्लियमेत्तम्मि। जीए पासम्मि। जीवा होंति णिरोगा सा अम्मरिसोसही रिद्धी ।१०६८। जीए तालासेमच्छीमलसिंहाणआदिआ सिग्घं। जीवाणं रोगहरणा स च्चिय खेलोसही रिद्धो ।१०६९। सेयजलो अंगरयं जल्लं भण्णेत्ति जीए तेणावि। जीवाणं रोगहरणं रिद्धी जस्लोसही णामा ।१०७०। जीहीट्ठदं तणासासोंत्तादिमलं पि जीए सत्तीए। जोवाणं रोगहरणं मलोसही णाम सा रिद्धी ।१०७१। </p> | ||
<p class="HindiText">= जिस ऋद्धि के प्रभाव से जीव पास में आने पर ऋषि के हस्त व पादादि के स्पर्शमात्र से ही निरोग हो जाते हैं, वह `'''आमर्षौषध'''' ऋद्धि है ।१०६८। जिस ऋद्धि के प्रभाव से लार, कफ, अक्षिमल और नासिकामल शीघ्र ही जीवों के रोगों को नष्ट करता है वह `क्ष्वेलौषध ऋद्धि है ।१०६९। पसीने के आश्रित अंगरज जल्ल कहा जाता है। जिस ऋद्धि के प्रभाव से उस अंग रज से भी जीवों के रोग नष्ट होते हैं, वह `जल्लौषधि' ऋद्धि कहलाती है ।१०७०। जिस शक्ति से जिह्वा, ओठ, दाँत, नासिका और श्रोत्रादिक का मल भी जीवों के रोगों को दूर करनेवाला होता है, वह `मलौषधि' नामक ऋद्धि है। </p> | |||
<p class="HindiText">देखें [[ ऋद्धि#7 |ऋद्धि 7 ]]।</p> | |||
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Revision as of 16:25, 6 January 2023
तिलोयपण्णत्ति/ अधिकार संख्या ४/१०६८-१०७२
रिसिकरचरणादीणं अल्लियमेत्तम्मि। जीए पासम्मि। जीवा होंति णिरोगा सा अम्मरिसोसही रिद्धी ।१०६८। जीए तालासेमच्छीमलसिंहाणआदिआ सिग्घं। जीवाणं रोगहरणा स च्चिय खेलोसही रिद्धो ।१०६९। सेयजलो अंगरयं जल्लं भण्णेत्ति जीए तेणावि। जीवाणं रोगहरणं रिद्धी जस्लोसही णामा ।१०७०। जीहीट्ठदं तणासासोंत्तादिमलं पि जीए सत्तीए। जोवाणं रोगहरणं मलोसही णाम सा रिद्धी ।१०७१।
= जिस ऋद्धि के प्रभाव से जीव पास में आने पर ऋषि के हस्त व पादादि के स्पर्शमात्र से ही निरोग हो जाते हैं, वह `आमर्षौषध' ऋद्धि है ।१०६८। जिस ऋद्धि के प्रभाव से लार, कफ, अक्षिमल और नासिकामल शीघ्र ही जीवों के रोगों को नष्ट करता है वह `क्ष्वेलौषध ऋद्धि है ।१०६९। पसीने के आश्रित अंगरज जल्ल कहा जाता है। जिस ऋद्धि के प्रभाव से उस अंग रज से भी जीवों के रोग नष्ट होते हैं, वह `जल्लौषधि' ऋद्धि कहलाती है ।१०७०। जिस शक्ति से जिह्वा, ओठ, दाँत, नासिका और श्रोत्रादिक का मल भी जीवों के रोगों को दूर करनेवाला होता है, वह `मलौषधि' नामक ऋद्धि है।
देखें ऋद्धि 7 ।