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<span class="GRef">तत्त्वार्थसूत्र/5/16</span><p class="SanskritText">प्रदेशसंहारविसर्पाभ्यां प्रदीपवत् ।</p><p class="HindiText">=दीप के प्रकाश के समान जीव के प्रदेशों का संकोच विस्तार होता है। </p> | |||
<p class="HindiText">।–देखें [[ जीव#3 | जीव - 3]]। </p> | |||
<p class="HindiText">2. Width or diameter. (<span class="GRef">जंबूदीवपण्णत्तिसंगहो/प्रस्तावना 108</span>)। </p> | |||
<p class="HindiText">3. Details(<span class="GRef"> धवला 5/ प्रस्तावना 28</span>)। </p> | |||
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Revision as of 13:48, 31 January 2023
1. जीव की संकोच विस्तार शक्ति
तत्त्वार्थसूत्र/5/16
प्रदेशसंहारविसर्पाभ्यां प्रदीपवत् ।
=दीप के प्रकाश के समान जीव के प्रदेशों का संकोच विस्तार होता है।
।–देखें जीव - 3।
2. Width or diameter. (जंबूदीवपण्णत्तिसंगहो/प्रस्तावना 108)।
3. Details( धवला 5/ प्रस्तावना 28)।