सुखानुबंध: Difference between revisions
From जैनकोष
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 2: | Line 2: | ||
== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/7/37/372/6 </span><span class="SanskritText">अनुभूतप्रीतिविशेषस्मृतिसमन्वाहार: सुखानुबंध:।</span> = <span class="HindiText">अनुभव में आये हुए विविध सुखों का पुन:-पुन: स्मरण करना सुखानुबंध है। (<span class="GRef"> राजवार्तिक/7/37/6/559/7 </span>)</span> | <span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/7/37/372/6 </span><span class="SanskritText">अनुभूतप्रीतिविशेषस्मृतिसमन्वाहार: सुखानुबंध:।</span> = <span class="HindiText">अनुभव में आये हुए विविध सुखों का पुन:-पुन: स्मरण करना सुखानुबंध है। (<span class="GRef"> राजवार्तिक/7/37/6/559/7 </span>)</span> | ||
<p><span class="GRef"> राजवार्तिक/ | <p><span class="GRef"> राजवार्तिक/ हिंदी/7/37/581</span><br> | ||
<span class="HindiText">पूर्वे सुख भोगे थे तिनि सूं प्रीति विशेष के निमित्त तै बार-बार याद करना तथा वर्तमान में सुख ही चाहना सो सुखानुबंध है।</span></p> | <span class="HindiText">पूर्वे सुख भोगे थे तिनि सूं प्रीति विशेष के निमित्त तै बार-बार याद करना तथा वर्तमान में सुख ही चाहना सो सुखानुबंध है।</span></p> | ||
Revision as of 14:44, 21 March 2023
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि/7/37/372/6 अनुभूतप्रीतिविशेषस्मृतिसमन्वाहार: सुखानुबंध:। = अनुभव में आये हुए विविध सुखों का पुन:-पुन: स्मरण करना सुखानुबंध है। ( राजवार्तिक/7/37/6/559/7 )
राजवार्तिक/ हिंदी/7/37/581
पूर्वे सुख भोगे थे तिनि सूं प्रीति विशेष के निमित्त तै बार-बार याद करना तथा वर्तमान में सुख ही चाहना सो सुखानुबंध है।
पुराणकोष से
सल्लेखना व्रत के पाँच अतिचारों में एक अतिचार― पहले भोगे हुए सुखों का स्मरण करना । हरिवंशपुराण 58.184