कुलधर: Difference between revisions
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सिद्धांतकोष से
सिद्धांतकोष से
महापुराण/211 −212 प्रजानां जीवनोपायमननान्मनवो मता:। आर्याणां कुलसंस्त्यायकृते: कुलकरा इमे।211। कुलानां धारणादेते मता: कुलधरा इति। युगादिपुरुषा: प्रोक्ता युगादौ प्रभविष्णव:।212।प्रजा के जीवन का उपाय जानने से मनु तथा आये पुरुषों को कुल की भाँति इकट्ठे रहने का उपदेश देने से कुलकर कहलाते थे। इन्होंने अनेक वंश स्थापित किये थे, इसलिए कुलधर कहलाते थे, तथा युग के आदि में होने से युगादि पुरुष भी कहे जाते थे।211/212 ( त्रिलोकसार/794 )
14 कुलकर निर्देश—देखें शलाका पुरुष - 9।
पुराणकोष से
आर्य पुरुषों को कुल की भाँति इकट्ठे रहने का उपदेश देने से इस नाम से संबोधित । अवसर्पिणी काल के सुषमा-दु:षमा नामक तीसरे काल की समाप्ति मे पल्य का आठवाँ भाग काल शेष रह जाने पर चौदह युगादपुरुष उत्पन्न हुए । उनके नाम है― 1. प्रतिश्रुति 2. सन्मति 3. क्षेमंकर 4. क्षेमंधर 5. सीमंकर 6. सीमंधर 7. विमलवाहन 8. चक्षुष्मान् 9. यशस्वान् 10. अभिचंद्र 11. चंद्राभ 12. मरुदेव 13. प्रसेनजित् और नाभिराज । इनमें प्रथम पाँच के समय में अपराधी को ‘‘हा’’ कहना ही पर्याप्त दंड था । अग्रिम पाँच के समय में ‘‘हा’’ और ‘‘मा’’ में दोनों और अंतिम चार के समय में ‘‘हाँ’’ ‘‘मा’’ और ‘‘धिक्’’ इन तीनों शब्दों का कथन दंड हो गया । आदि के सात कुलकरों के समय मे माता-पिता संतान का मुख नहीं देखते थे । उनका पालन पोषण स्वत: होता था । महापुराण 3. 55-56, 124-128, 211-215, 229-237, पद्मपुराण - 3.75-88, हरिवंशपुराण - 7.123-176 भविष्य में उत्सर्पिणी के दु:षमा नामक दूसरे काल में भी इसी प्रकार सोलह युगादिपुरुष होंगे, उनका क्रम यह होगा—1. कनक 2. कनकप्रभ 3. कनकराज 4. कनकध्वज 5. कनकपुंगव 6. नलिन 7. नलिनप्रभ 8. नलिनराज 9. नलिनध्वज 10. नलिनपुंगव 11. पद्म 12. पद्मप्रभ 13. पद्मराज 14. पद्मध्वज 15. पद्मपुंगव 16. महापद्म । महापुराण 76. 460-466
पुराणकोष से
(1) तृतीय काल के अंत में और कर्म भूमि के प्रारंभ में हुए युगादिपुरुष अनेक वंशों के संस्थापक होने से ये इस नाम से प्रसिद्ध हुए । महापुराण 3. 212, 12.4 देखें कुलकर
(2) वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 16.266