तपस्वी: Difference between revisions
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<span class="GRef"> रत्नकरंड श्रावकाचार/10 </span><span class="SanskritGatha"> विषयाशावशातीतो निरारंभोऽपरिग्रह:। ज्ञानध्यानतपोरक्तस्तपस्वी स प्रशस्यते।10। </span>=<span class="HindiText">जो विषयों की आशा के वश से रहित हो, चौबीस प्रकार के परिग्रह से रहित और ज्ञान-ध्यान-तप में लवलीन हो, वह तपस्वी गुरु प्रशंसा के योग्य है।</span> <span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/9/24/442/5 </span><span class="SanskritText"> महोपवासाद्यनुष्ठायी तपस्वी। </span>=<span class="HindiText">महोपवासादि का अनुष्ठान करने वाला तपस्वी कहलाता है। (<span class="GRef"> राजवार्तिक/9/24/5/623 </span>); (<span class="GRef"> चारित्रसार/151/1 </span>)</span> | <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 10 | रत्नकरंड श्रावकाचार/10]] </span><span class="SanskritGatha"> विषयाशावशातीतो निरारंभोऽपरिग्रह:। ज्ञानध्यानतपोरक्तस्तपस्वी स प्रशस्यते।10। </span>=<span class="HindiText">जो विषयों की आशा के वश से रहित हो, चौबीस प्रकार के परिग्रह से रहित और ज्ञान-ध्यान-तप में लवलीन हो, वह तपस्वी गुरु प्रशंसा के योग्य है।</span> <span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/9/24/442/5 </span><span class="SanskritText"> महोपवासाद्यनुष्ठायी तपस्वी। </span>=<span class="HindiText">महोपवासादि का अनुष्ठान करने वाला तपस्वी कहलाता है। (<span class="GRef"> राजवार्तिक/9/24/5/623 </span>); (<span class="GRef"> चारित्रसार/151/1 </span>)</span> | ||
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Revision as of 15:48, 18 June 2023
रत्नकरंड श्रावकाचार/10 विषयाशावशातीतो निरारंभोऽपरिग्रह:। ज्ञानध्यानतपोरक्तस्तपस्वी स प्रशस्यते।10। =जो विषयों की आशा के वश से रहित हो, चौबीस प्रकार के परिग्रह से रहित और ज्ञान-ध्यान-तप में लवलीन हो, वह तपस्वी गुरु प्रशंसा के योग्य है। सर्वार्थसिद्धि/9/24/442/5 महोपवासाद्यनुष्ठायी तपस्वी। =महोपवासादि का अनुष्ठान करने वाला तपस्वी कहलाता है। ( राजवार्तिक/9/24/5/623 ); ( चारित्रसार/151/1 )