तप-शुद्धि
From जैनकोष
एक व्रत । इसमें अनशन आदि बाह्य तपों के क्रमश: दो, एक, एक, पांच, एक और एक इस प्रकार ग्यारह तथा प्रायश्चित्त आदि अंतरंग तपों के क्रमश उन्नीस, तीस, दस, पांच, दो और एक इस प्रकार सड़सठ-कुल अठहत्तर उपवास किये जाते हैं । इनमें एक उपवास के बाद एक पारणा की जाती है । इसमें कुल एक सौ छप्पन दिन लगते हैं । हरिवंशपुराण - 34.99