पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 121 - समय-व्याख्या: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:26, 30 June 2023
एवमभिगम्म जीवं अण्णेहिं वि पज्जएहिं बहुगेहिं । (121)
अभिगच्छदु अज्जीवं णाणंतरिदेहिं लिंगेहिं ॥131॥
अर्थ:
इसप्रकार अन्य भी अनेक पर्यायों द्वारा जीव को जानकर, ज्ञान से भिन्न लिंगों द्वारा अजीव को जानो ।
समय-व्याख्या:
जीवाजीवव्याख्योपसंहारोपक्षेपसूचनेयम् ।
एवमनया दिशा व्यवहारनयेन कर्मग्रन्थप्रतिपादितजीवगुणमार्गणास्थानादिप्रपञ्चित-विचित्रविकल्परूपैः, निश्चयनयेन मोहरागद्वेषपरिणतिसम्पादितविश्वरूपत्वात्कदाचिदशुद्धैः कदाचित्तदभावाच्छुद्धैश्चैतन्यविवर्तग्रन्थिरूपैर्बहुभिः पर्यायैः जीवमधिगच्छेत् । अधिगम्य चैवम-चैतन्यस्वभावत्वात् ज्ञानादर्थान्तरभूतैरितः प्रपञ्च्यमानैर्लिङ्गैर्जीवसम्बद्धमसम्बद्धं वा स्वतो भेद-बुद्धिप्रसिद्धयर्थमजीवमधिगच्छेदिति ॥१२१॥
- इति जीवपदार्थव्याख्यानं समाप्तम् ।
अथ अजीवपदार्थव्याख्यानम् ।
समय-व्याख्या हिंदी :
यह, जीव-व्याख्यान के उपसंहार की और अजीव-व्याख्यान के प्रारम्भ की सूचना है ।
इस प्रकार निर्देश के अनुसार (अर्थात ऊपर संक्षेप में समझाये अनुसार), (१) व्यवहार-नय से १कर्म-ग्रंथ-प्रतिपादित जीवस्थान-गुणस्थान-मार्गणास्थान इत्यादि द्वारा २प्रपंचित विचित्र भेद-रूप बहु पर्यायों द्वारा, तथा (२) निश्चय-नय से मोह-राग-द्वेष परिणति संप्राप्त ३विश्व-रूपता के कारण कदाचित् अशुद्ध (ऐसी) और कदाचित उसके (मोह-राग-द्वेष-परिणति के) अभाव के कारण शुद्ध ऐसी ४चैतन्य-विवर्त-ग्रन्थि-रूप बहु पर्यायों द्वारा, जीव को जानो । इस प्रकार जीव को जानकर, अचैतन्य-स्वभाव के कारण, ५ज्ञान से अर्थांतर-भूत ऐसे, यहाँ से (अबकी गाथाओं में) कहे जाने वाले लिंगों द्वारा, ६जीव-सम्बद्ध या जीव-असम्बद्ध अजीव को, अपने से भेद-बुद्धि की प्रसिद्धि के लिये जानो ॥१२१॥
इस प्रकार जीव पदार्थ का व्याख्यान समाप्त हुआ ।
अब अजीव पदार्थ का व्याख्यान है ।
१कर्म-ग्रंथ-प्रतिपादित = गोम्मट-सारादि कर्म-पद्धति के ग्रन्थों में प्ररूपित-निरूपित ।
२प्रपंचित = विस्तार-पूर्वक कही गई ।
३मोह-राग-द्वेष-परिणति के कारण जीव को विश्वरूपता अर्थात् अनेक-रूपता प्राप्त होती है ।
४ग्रन्थि = गाँठ (जीव की कदाचित अशुद्ध और कदाचित शुद्ध ऐसी पर्यायें चैतन्यविवर्त की-चैतन्य-परिणमन की ग्रन्थियाँ हैं, निश्चय-नय से उनके द्वारा जीव को जानो।)
५ज्ञान से अर्थांन्तरभूत = ज्ञान से अन्य वस्तु-भूत, ज्ञान से अन्य अर्थात जड । (अजीव का स्वभाव अचैतन्य होने के कारण ज्ञान से अन्य ऐसे जड़ चिन्हों द्वारा वह ज्ञात होता है) ।
६जीव के साथ सम्बद्ध या जीव के साथ असम्बद्ध ऐसे अजीव को जानने का प्रयोजन यह है कि समस्त अजीव अपने से (स्वजीव से) बिलकुल भिन्न हैं ऐसी बुद्धि उत्पन्न हो ।