ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 122 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
आगासकालपुग्गलधम्माधम्मेसु णत्थि जीवगुणा । (122)
तेसिं अचेदणत्तं भणिदं जीवस्स चेदणदा ॥132॥
अर्थ:
आकाश, काल, पुद्गल, धर्म, अधर्म में जीव के गुण नहीं हैं । उनके अचेतनता कही गई है तथा जीव के चेतनता है ।
समय-व्याख्या:
आकाशादीनामेवाजीवत्वे हेतूपन्यासोऽयम् ।
आकाशकालपुद्गलधर्माधर्मेषु चैतन्यविशेषरूपा जीवगुणा नो विद्यन्ते, आकाशादीनांतेषामचेतनत्वसामान्यत्वात् । अचेतनत्वसामान्यञ्चाकाशादीनामेव, जीवस्यैव चेतनत्व-सामान्यादिति ॥१२२॥
समय-व्याख्या हिंदी :
यह, आकाशादि का ही अजीवपना दर्शाने के लिये हेतु का कथन है ।
आकाश, काल, पुद्गल, धर्म और अधर्म में चैतन्य-विशेषों रूप जीव-गुण विद्यमान नहीं है, क्योंकि उन आकाशादि को अचेतनत्व-सामान्य है । और अचेतनत्व सामान्य आकाशादि को ही है, क्योंकि जीव को ही चेतनत्व-सामान्य है ॥१२२॥