पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 122 - तात्पर्य-वृत्ति: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:26, 30 June 2023
आगासकालपुग्गलधम्माधम्मेसु णत्थि जीवगुणा । (122)
तेसिं अचेदणत्तं भणिदं जीवस्स चेदणदा ॥132॥
अर्थ:
आकाश, काल, पुद्गल, धर्म, अधर्म में जीव के गुण नहीं हैं । उनके अचेतनता कही गई है तथा जीव के चेतनता है ।
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
आकाश, काल, पुद्गल, धर्म, अधर्म में अनन्त ज्ञान-दर्शन आदि जीव के गुण नहीं हैं; उस कारण उनके अचेतनता कही गई है । उनके जीवगुण किस कारण नहीं हैं ? यदि ऐसा प्रश्न हो तो कहते हैं एक साथ तीन लोक, तीन कालवर्ती समस्त पदार्थों का परिच्छेदक / ज्ञायक होने से जीव के ही चेतकता होने के कारण उनमें जीव के गुण नहीं हैं ऐसा सूत्र का अभिप्राय है ॥१३२॥