पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 60 - तात्पर्य-वृत्ति: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:26, 30 June 2023
कुव्वं सगं सहावं अत्ता कत्ता सगस्स भावस्स । (60)
ण हि पोग्गलकम्माणं इदि जिणवयणं मुणेयव्वं ॥67॥
अर्थ:
अपने भाव को कर्ता हुआ आत्मा वास्तव में अपने भाव का ही कर्ता है, पुद्गल कर्मों का नहीं- ऐसा जिनवचन जानना चाहिए।
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
[कुव्वं] करता हुआ । किसे करता हुआ ? [सगं सहावं] चिद्रूप-स्वभाव को करता हुआ । यहाँ यद्यपि शुद्ध निश्वयनय से केवलज्ञानादि शुद्धभाव स्वभाव कहलाते हैं; तथापि कर्म के कर्तृत्व का प्रस्ताव (प्रकरण) होने से अशुद्ध निश्चय की अपेक्षा रागादि भी स्वभाव कहलाते हैं; उनको करता हुआ; [अत्ता कत्ता सगस्स भावस्स] आत्मा अपने भाव का कर्ता है, [णवि पोग्गल-कम्माणं] वास्तव में निश्चयनय से पुद्गल-कर्मो का कर्ता नहीं है । [गदि जिणवयणं मुणेदव्वं] ऐसा जिनवचन जानना चाहिए ।
यहाँ यद्यपि अशुद्ध-भावों का कर्तृत्व स्थापित किया है, तथापि वे हेय हैं; उससे विपरीत अनन्त सुखादि शुद्धभाव उपादेय हैं -- ऐसा भावार्थ है ॥६७॥
इस प्रकार आगम-संवादरूप से गाथा पूर्ण हुई ।