पल्य: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> व्यवहार काल का एक भेद । एक योजन लंबे, चौड़े और गहरे गर्त को नवजात शिशु-भेड़ के बालों के अग्रभाग से ठीक-ठीक कर भरने के उपरांत सौ-सौ वर्ष के बाद एक-एक रोमखंड निकालते हुए रिक्त करने में जितना समय लगे वह पल्य हे । इतने काल को असंख्यात वर्ष भी कहते है । <span class="GRef"> महापुराण 3.53, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 20.74-76, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 3.124 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> व्यवहार काल का एक भेद । एक योजन लंबे, चौड़े और गहरे गर्त को नवजात शिशु-भेड़ के बालों के अग्रभाग से ठीक-ठीक कर भरने के उपरांत सौ-सौ वर्ष के बाद एक-एक रोमखंड निकालते हुए रिक्त करने में जितना समय लगे वह पल्य हे । इतने काल को असंख्यात वर्ष भी कहते है । <span class="GRef"> महापुराण 3.53, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#74|पद्मपुराण - 20.74-76]], </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 3.124 </span></p> | ||
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Revision as of 22:21, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
- राजवार्तिक/3/38/7/208/11 पल्यानि कुशूला इत्यर्थः। = पल्य का अर्थ गड्ढा।
- पल्य प्रमाण के भेद व लक्षण तथा उनकी प्रयोग विधि - देखें गणित - I.1.5;
- A measure of Time.
पुराणकोष से
व्यवहार काल का एक भेद । एक योजन लंबे, चौड़े और गहरे गर्त को नवजात शिशु-भेड़ के बालों के अग्रभाग से ठीक-ठीक कर भरने के उपरांत सौ-सौ वर्ष के बाद एक-एक रोमखंड निकालते हुए रिक्त करने में जितना समय लगे वह पल्य हे । इतने काल को असंख्यात वर्ष भी कहते है । महापुराण 3.53, पद्मपुराण - 20.74-76, हरिवंशपुराण 3.124