श्रेयांसनाथ: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> अवसर्पिणी काल के ग्यारहवें तीर्थंकर । ये जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में सिंहपुर नगर के इक्ष्वाकुवंशी राजा विष्णु और रानी नंदा के पुत्र थे । ये ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी श्रवण नक्षत्र में प्रातःकाल के समय रानी नंदा के गर्भ में आये तथा फाल्गुन कृष्ण एकादशी के दिन विष्णुयोग में इनका जन्म हुआ । जन्म के समय रोगी निरोग हो गये थे । चारों निकाय के देवों ने आकर इनका जन्माभिषेक किया था । सौधर्मेंद्र ने जन्माभिषेक के पश्चात् आभूषण आदि पहनाकर इनका श्रेयांस नाम रखा था । इनका जन्म शीतलनाथ के मोक्ष जाने के बाद सौ सागर, छियासठ लाख और छब्बीस हजार वर्ष कम एक करोड़ सागर प्रमाण अंतराल बीत जाने पर हुआ था । इनकी कुल आयु चौरासी लाख वर्ष की थी । शरीर सोने की कांति के समान था । ऊँचाई अस्सी धनुष थी । कुमारावस्था के इक्कीस लाख वर्ष बीत जाने पर इन्हें राज्य मिला था । इन्होंने बयालीस वर्ष तक राज्य किया । इसके पश्चात् वसंत के परिवर्तन को देखकर इन्हें वैराग्य जागा । लौकांतिक देवों ने आकर इनकी स्तुति की । इन्होंने राज्य श्रेयस्कर पुत्र को दिया तथा विमलप्रभा पालकी में बैठकर ये मनोहर नामक वन में गये । वहाँ इन्होंने दो दिन के आहार का त्याग कर के फाल्गुन कृष्ण एकादशी के दिन प्रात: वेला और श्रवण नक्षत्र में एक हजार राजाओं के साथ संयम धारण किया । इसी समय इन्हें मन:पर्ययज्ञान हुआ । इन्हें सिद्धार्थ नगर में राजा नंद ने आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । छदमस्थ अवस्था के दो वर्ष बाद ही मनोहर उद्यान में तुंबुर वृक्ष के नीचे माघ कृष्ण अमावस्या के दिन श्रवण नक्षत्र में इन्हें केवलज्ञान हुआ । इनके संघ में कुंथु आदि सतहत्तर गणधर तेरह सौ पूर्वधारी, अड़तालीस हजार दो सौ शिक्षक, छह हजार अवधिज्ञानी, छ: हजार पाँच सौ केवलज्ञानी, ग्यारह हजार विकियाऋद्धिधारी, छ: हजार मन:पर्ययज्ञानी और पाँच हजार वादी मुनि तथा एक लाख बीस हजार धारणा आदि आर्यिकाएँ थीं । सम्मेदशिखर पर इन्होंने एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमायोग धारण किया था । श्रावण शुक्ल पौर्णमासी के दिन सायंकाल के समय घनिष्ठा नक्षत्र में शेष कर्मों का क्षय करके ये—‘अ इ उ ऋ लृ’ इन पाँच लघु अक्षरों के उच्चारण में जितना समय लगता है उतने समय में मुक्त हुए । ये दूसरे पूर्वभव में पुष्करार्ध द्वीप में सुकच्छ देश के क्षेमपुर नामक नगर के नलिनप्रभ नामक राजा थे । इस पर्याय में तीर्थंकर-प्रकृति का बंध करके आयु के अंत में समाधिमरणपूर्वक देह त्याग करके अच्युत स्वर्ग में इंद्र हुए और वहां से चयकर इस पर्याय में जन्मे थे । <span class="GRef"> महापुराण 57.2-62, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 20. 47-68, 114, 120, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.156-192, 341-349 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> अवसर्पिणी काल के ग्यारहवें तीर्थंकर । ये जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में सिंहपुर नगर के इक्ष्वाकुवंशी राजा विष्णु और रानी नंदा के पुत्र थे । ये ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी श्रवण नक्षत्र में प्रातःकाल के समय रानी नंदा के गर्भ में आये तथा फाल्गुन कृष्ण एकादशी के दिन विष्णुयोग में इनका जन्म हुआ । जन्म के समय रोगी निरोग हो गये थे । चारों निकाय के देवों ने आकर इनका जन्माभिषेक किया था । सौधर्मेंद्र ने जन्माभिषेक के पश्चात् आभूषण आदि पहनाकर इनका श्रेयांस नाम रखा था । इनका जन्म शीतलनाथ के मोक्ष जाने के बाद सौ सागर, छियासठ लाख और छब्बीस हजार वर्ष कम एक करोड़ सागर प्रमाण अंतराल बीत जाने पर हुआ था । इनकी कुल आयु चौरासी लाख वर्ष की थी । शरीर सोने की कांति के समान था । ऊँचाई अस्सी धनुष थी । कुमारावस्था के इक्कीस लाख वर्ष बीत जाने पर इन्हें राज्य मिला था । इन्होंने बयालीस वर्ष तक राज्य किया । इसके पश्चात् वसंत के परिवर्तन को देखकर इन्हें वैराग्य जागा । लौकांतिक देवों ने आकर इनकी स्तुति की । इन्होंने राज्य श्रेयस्कर पुत्र को दिया तथा विमलप्रभा पालकी में बैठकर ये मनोहर नामक वन में गये । वहाँ इन्होंने दो दिन के आहार का त्याग कर के फाल्गुन कृष्ण एकादशी के दिन प्रात: वेला और श्रवण नक्षत्र में एक हजार राजाओं के साथ संयम धारण किया । इसी समय इन्हें मन:पर्ययज्ञान हुआ । इन्हें सिद्धार्थ नगर में राजा नंद ने आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । छदमस्थ अवस्था के दो वर्ष बाद ही मनोहर उद्यान में तुंबुर वृक्ष के नीचे माघ कृष्ण अमावस्या के दिन श्रवण नक्षत्र में इन्हें केवलज्ञान हुआ । इनके संघ में कुंथु आदि सतहत्तर गणधर तेरह सौ पूर्वधारी, अड़तालीस हजार दो सौ शिक्षक, छह हजार अवधिज्ञानी, छ: हजार पाँच सौ केवलज्ञानी, ग्यारह हजार विकियाऋद्धिधारी, छ: हजार मन:पर्ययज्ञानी और पाँच हजार वादी मुनि तथा एक लाख बीस हजार धारणा आदि आर्यिकाएँ थीं । सम्मेदशिखर पर इन्होंने एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमायोग धारण किया था । श्रावण शुक्ल पौर्णमासी के दिन सायंकाल के समय घनिष्ठा नक्षत्र में शेष कर्मों का क्षय करके ये—‘अ इ उ ऋ लृ’ इन पाँच लघु अक्षरों के उच्चारण में जितना समय लगता है उतने समय में मुक्त हुए । ये दूसरे पूर्वभव में पुष्करार्ध द्वीप में सुकच्छ देश के क्षेमपुर नामक नगर के नलिनप्रभ नामक राजा थे । इस पर्याय में तीर्थंकर-प्रकृति का बंध करके आयु के अंत में समाधिमरणपूर्वक देह त्याग करके अच्युत स्वर्ग में इंद्र हुए और वहां से चयकर इस पर्याय में जन्मे थे । <span class="GRef"> महापुराण 57.2-62, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#47|पद्मपुराण - 20.47-68]], 114, 120, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.156-192, 341-349 </span></p> | ||
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Revision as of 22:36, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
सामान्य परिचय
तीर्थंकर क्रमांक | 11 |
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चिह्न | गैंडा |
पिता | विष्णु |
माता | सुनन्दा |
वंश | इक्ष्वाकु |
उत्सेध (ऊँचाई) | 80 धनुष |
वर्ण | स्वर्ण |
आयु | 84 लाख वर्ष |
पूर्व भव सम्बंधित तथ्य
पूर्व मनुष्य भव | नलिनप्रभ |
---|---|
पूर्व मनुष्य भव में क्या थे | मण्डलेश्वर |
पूर्व मनुष्य भव के पिता | अभयानन्द |
पूर्व मनुष्य भव का देश, नगर | पुष्कर.वि.क्षेमपुरी |
पूर्व भव की देव पर्याय | पुष्पोत्तर |
गर्भ-जन्म कल्याणक सम्बंधित तथ्य
गर्भ-तिथि | ज्येष्ठ कृष्ण 6 |
---|---|
गर्भ-नक्षत्र | श्रवण |
गर्भ-काल | प्रात: |
जन्म तिथि | फाल्गुन कृष्ण 11 |
जन्म नगरी | सिंहपुर |
जन्म नक्षत्र | श्रवण |
योग | विष्णु |
दीक्षा कल्याणक सम्बंधित तथ्य
वैराग्य कारण | पतझड़ |
---|---|
दीक्षा तिथि | फाल्गुन कृष्ण 11 |
दीक्षा नक्षत्र | श्रवण |
दीक्षा काल | पूर्वाह्न |
दीक्षोपवास | तृतीय भक्त |
दीक्षा वन | मनोहर |
दीक्षा वृक्ष | तेन्दु |
सह दीक्षित | 1000 |
ज्ञान कल्याणक सम्बंधित तथ्य
केवलज्ञान तिथि | माघ कृष्ण 15 |
---|---|
केवलज्ञान नक्षत्र | श्रवण |
केवलोत्पत्ति काल | अपराह्न |
केवल स्थान | सिंहनादपुर |
केवल वन | मनोहर |
केवल वृक्ष | तेन्दू |
निर्वाण कल्याणक सम्बंधित तथ्य
योग निवृत्ति काल | 1 मास पूर्व |
---|---|
निर्वाण तिथि | श्रावण शुक्ल 15 |
निर्वाण नक्षत्र | धनिष्ठा |
निर्वाण काल | पूर्वाह्न |
निर्वाण क्षेत्र | सम्मेद |
समवशरण सम्बंधित तथ्य
समवसरण का विस्तार | 7 योजन |
---|---|
सह मुक्त | 1000 |
पूर्वधारी | 1300 |
शिक्षक | 48200 |
अवधिज्ञानी | 6000 |
केवली | 6500 |
विक्रियाधारी | 11000 |
मन:पर्ययज्ञानी | 6000 |
वादी | 5000 |
सर्व ऋषि संख्या | 84000 |
गणधर संख्या | 77 |
मुख्य गणधर | धर्म |
आर्यिका संख्या | 130000 |
मुख्य आर्यिका | चारणा |
श्रावक संख्या | 200000 |
मुख्य श्रोता | त्रिपृष्ठ |
श्राविका संख्या | 400000 |
यक्ष | कुमार |
यक्षिणी | महाकाली |
आयु विभाग
आयु | 84 लाख वर्ष |
---|---|
कुमारकाल | 21 लाख वर्ष |
विशेषता | मण्डलीक |
राज्यकाल | 42 लाख वर्ष |
छद्मस्थ काल | 2 वर्ष* |
केवलिकाल | 2099998 वर्ष* |
तीर्थ संबंधी तथ्य
जन्मान्तरालकाल | 1 करोड़ सागर +1 लाख पू.¬–(100 सागर +15026000 वर्ष) |
---|---|
केवलोत्पत्ति अन्तराल | 54 सागर 3300001 वर्ष |
निर्वाण अन्तराल | 54 सागर |
तीर्थकाल | (54 सागर +21 लाख वर्ष) |
तीर्थ व्युच्छित्ति | 58/23 |
शासन काल में हुए अन्य शलाका पुरुष | |
चक्रवर्ती | ❌ |
बलदेव | विजय |
नारायण | त्रिपृष्ठ |
प्रतिनारायण | अश्वग्रीव |
रुद्र | सुप्रतिष्ठ |
महापुराण/57/ श्लोक - पूर्व के दूसरे भव में नलिनप्रभ राजा थे (2-3)। दीक्षा लेकर सोलहकारण भावनाओं का चिंतवन कर तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया। अंत में समाधि मरणकर पूर्व भव में अच्युतेंद्र हुए (12-14)। वर्तमान भव में 11वें तीर्थंकर हुए। विशेष - देखें तीर्थंकर - 5।
पुराणकोष से
अवसर्पिणी काल के ग्यारहवें तीर्थंकर । ये जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में सिंहपुर नगर के इक्ष्वाकुवंशी राजा विष्णु और रानी नंदा के पुत्र थे । ये ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी श्रवण नक्षत्र में प्रातःकाल के समय रानी नंदा के गर्भ में आये तथा फाल्गुन कृष्ण एकादशी के दिन विष्णुयोग में इनका जन्म हुआ । जन्म के समय रोगी निरोग हो गये थे । चारों निकाय के देवों ने आकर इनका जन्माभिषेक किया था । सौधर्मेंद्र ने जन्माभिषेक के पश्चात् आभूषण आदि पहनाकर इनका श्रेयांस नाम रखा था । इनका जन्म शीतलनाथ के मोक्ष जाने के बाद सौ सागर, छियासठ लाख और छब्बीस हजार वर्ष कम एक करोड़ सागर प्रमाण अंतराल बीत जाने पर हुआ था । इनकी कुल आयु चौरासी लाख वर्ष की थी । शरीर सोने की कांति के समान था । ऊँचाई अस्सी धनुष थी । कुमारावस्था के इक्कीस लाख वर्ष बीत जाने पर इन्हें राज्य मिला था । इन्होंने बयालीस वर्ष तक राज्य किया । इसके पश्चात् वसंत के परिवर्तन को देखकर इन्हें वैराग्य जागा । लौकांतिक देवों ने आकर इनकी स्तुति की । इन्होंने राज्य श्रेयस्कर पुत्र को दिया तथा विमलप्रभा पालकी में बैठकर ये मनोहर नामक वन में गये । वहाँ इन्होंने दो दिन के आहार का त्याग कर के फाल्गुन कृष्ण एकादशी के दिन प्रात: वेला और श्रवण नक्षत्र में एक हजार राजाओं के साथ संयम धारण किया । इसी समय इन्हें मन:पर्ययज्ञान हुआ । इन्हें सिद्धार्थ नगर में राजा नंद ने आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । छदमस्थ अवस्था के दो वर्ष बाद ही मनोहर उद्यान में तुंबुर वृक्ष के नीचे माघ कृष्ण अमावस्या के दिन श्रवण नक्षत्र में इन्हें केवलज्ञान हुआ । इनके संघ में कुंथु आदि सतहत्तर गणधर तेरह सौ पूर्वधारी, अड़तालीस हजार दो सौ शिक्षक, छह हजार अवधिज्ञानी, छ: हजार पाँच सौ केवलज्ञानी, ग्यारह हजार विकियाऋद्धिधारी, छ: हजार मन:पर्ययज्ञानी और पाँच हजार वादी मुनि तथा एक लाख बीस हजार धारणा आदि आर्यिकाएँ थीं । सम्मेदशिखर पर इन्होंने एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमायोग धारण किया था । श्रावण शुक्ल पौर्णमासी के दिन सायंकाल के समय घनिष्ठा नक्षत्र में शेष कर्मों का क्षय करके ये—‘अ इ उ ऋ लृ’ इन पाँच लघु अक्षरों के उच्चारण में जितना समय लगता है उतने समय में मुक्त हुए । ये दूसरे पूर्वभव में पुष्करार्ध द्वीप में सुकच्छ देश के क्षेमपुर नामक नगर के नलिनप्रभ नामक राजा थे । इस पर्याय में तीर्थंकर-प्रकृति का बंध करके आयु के अंत में समाधिमरणपूर्वक देह त्याग करके अच्युत स्वर्ग में इंद्र हुए और वहां से चयकर इस पर्याय में जन्मे थे । महापुराण 57.2-62, पद्मपुराण - 20.47-68, 114, 120, हरिवंशपुराण 60.156-192, 341-349