अणुव्रती: Difference between revisions
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<span class="HindiText"> कल रूप से पाँच पापों से विरत, शील-संपन्न और जिनशासन के प्रति श्रद्धा से युक्त मानव । ऐसा जीव मरकर देव होता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.46 </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 26.99 </span> देखें - [[अणुव्रत]] </span> | <span class="HindiText"> कल रूप से पाँच पापों से विरत, शील-संपन्न और जिनशासन के प्रति श्रद्धा से युक्त मानव । ऐसा जीव मरकर देव होता है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_18#46|हरिवंशपुराण - 18.46]] </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 26.99 </span> देखें - [[अणुव्रत]] </span> | ||
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Latest revision as of 14:39, 27 November 2023
कल रूप से पाँच पापों से विरत, शील-संपन्न और जिनशासन के प्रति श्रद्धा से युक्त मानव । ऐसा जीव मरकर देव होता है । हरिवंशपुराण - 18.46 पद्मपुराण 26.99 देखें - अणुव्रत