इच्क्षुरस: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> ईख का रस । तीर्थंकर वृषभदेव के समय में यह रस छहों रसों के स्वाद से युक्त होकर स्वयं स्रवित होता था । यह बल, वीर्य का वर्द्धक था । उस समय की प्रजा का मुख्य आहार था । कालांतर में काल के प्रभाव से यह रस निकाला जाने लगा । वृषभदेव ने तपश्चर्या मे जब रस-परित्याग किया तो उसमें इक्षुरस का त्याग भी सम्मिलित था । <span class="GRef"> महापुराण 20.177, 63.354, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_3#233|पद्मपुराण -3. 233]] -234 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> ईख का रस । तीर्थंकर वृषभदेव के समय में यह रस छहों रसों के स्वाद से युक्त होकर स्वयं स्रवित होता था । यह बल, वीर्य का वर्द्धक था । उस समय की प्रजा का मुख्य आहार था । कालांतर में काल के प्रभाव से यह रस निकाला जाने लगा । वृषभदेव ने तपश्चर्या मे जब रस-परित्याग किया तो उसमें इक्षुरस का त्याग भी सम्मिलित था । <span class="GRef"> महापुराण 20.177, 63.354, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_3#233|पद्मपुराण -3. 233]] -234 </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
ईख का रस । तीर्थंकर वृषभदेव के समय में यह रस छहों रसों के स्वाद से युक्त होकर स्वयं स्रवित होता था । यह बल, वीर्य का वर्द्धक था । उस समय की प्रजा का मुख्य आहार था । कालांतर में काल के प्रभाव से यह रस निकाला जाने लगा । वृषभदेव ने तपश्चर्या मे जब रस-परित्याग किया तो उसमें इक्षुरस का त्याग भी सम्मिलित था । महापुराण 20.177, 63.354, पद्मपुराण -3. 233 -234