उग्रसेन: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) हस्तिनापुर नगर के निवासी वैश्य सागरदत्त और उसकी पत्नी धनवती का पुत्र यह स्वभाव से क्रोधी था । अप्रत्याख्यानावरण क्रोध के कारण इसने तिर्यंच आयु का बंध किया । राजाज्ञा के बिना राजकीय वस्तुएँ दूसरों को देने के कारण यह राजा द्वारा मारा गया और मरकर व्याघ्र हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 8.224-226 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) हस्तिनापुर नगर के निवासी वैश्य सागरदत्त और उसकी पत्नी धनवती का पुत्र यह स्वभाव से क्रोधी था । अप्रत्याख्यानावरण क्रोध के कारण इसने तिर्यंच आयु का बंध किया । राजाज्ञा के बिना राजकीय वस्तुएँ दूसरों को देने के कारण यह राजा द्वारा मारा गया और मरकर व्याघ्र हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 8.224-226 </span></p> | ||
<p id="2">(2) विजयार्ध पर्वत की उत्तरदिशावर्ती अलका नगरी के नृप महासेन और उसकी रानी सुंदरी का ज्येष्ठ पुत्र, वरसेन अ अग्रज और वसुंधरा का सहोदर । <span class="GRef"> महापुराण 76. 262-263, 265 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) विजयार्ध पर्वत की उत्तरदिशावर्ती अलका नगरी के नृप महासेन और उसकी रानी सुंदरी का ज्येष्ठ पुत्र, वरसेन अ अग्रज और वसुंधरा का सहोदर । <span class="GRef"> महापुराण 76. 262-263, 265 </span></p> | ||
<p id="3">(3) भगवान् नेमिनाथ का मुख्य प्रश्नकर्ता । <span class="GRef"> महापुराण 76.532 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) भगवान् नेमिनाथ का मुख्य प्रश्नकर्ता । <span class="GRef"> महापुराण 76.532 </span></p> | ||
<p id="4">(4) हरिवंशी राजा नरवृष्टि और उसकी रानी पद्मावती का ज्येष्ठ पुत्र, देवसेन ओर महासेन का अग्रज तथा गांधारी का सहोदर । <span class="GRef"> महापुराण 70.100-101 </span>हरिवंश पुराण में नरवृष्टि को भोजकवृष्णि कहा गया है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.16 </span>इसके धर, गुणधर, युक्तिक, दुर्धर, सागर, कंस और चंद्र आदि अनेक पुत्र थे । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 48.39 </span>यह मथुरा नगरी का राजा था । पूर्वभव के वैर से इसी के पुत्र कंस ने इसे जेल में डाल दिया था । कृष्ण ने इसे जेल से मुक्त कराया था कृष्ण-जरासंध युद्ध में इसने कृष्ण का साथ दिया था । नेमिकुमार के लिए कृष्ण ने स्वयं जाकर इनकी ही पुत्री राजीमति की याचना की थी । यह एक अक्षौहिणी सेना का स्वामी था । मपू0 7.331-338, 71. 4-5, 73-76, 145-146, <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1.93, 50.67 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) हरिवंशी राजा नरवृष्टि और उसकी रानी पद्मावती का ज्येष्ठ पुत्र, देवसेन ओर महासेन का अग्रज तथा गांधारी का सहोदर । <span class="GRef"> महापुराण 70.100-101 </span>हरिवंश पुराण में नरवृष्टि को भोजकवृष्णि कहा गया है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_18#16|हरिवंशपुराण - 18.16]] </span>इसके धर, गुणधर, युक्तिक, दुर्धर, सागर, कंस और चंद्र आदि अनेक पुत्र थे । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_48#39|हरिवंशपुराण - 48.39]] </span>यह मथुरा नगरी का राजा था । पूर्वभव के वैर से इसी के पुत्र कंस ने इसे जेल में डाल दिया था । कृष्ण ने इसे जेल से मुक्त कराया था कृष्ण-जरासंध युद्ध में इसने कृष्ण का साथ दिया था । नेमिकुमार के लिए कृष्ण ने स्वयं जाकर इनकी ही पुत्री राजीमति की याचना की थी । यह एक अक्षौहिणी सेना का स्वामी था । मपू0 7.331-338, 71. 4-5, 73-76, 145-146, <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_1#93|हरिवंशपुराण - 1.93]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_1#50|हरिवंशपुराण - 1.50]].67 </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
भारतीय इतिहास 1/286
- अपर नाम जनक था - अतः देखें जनक । राजुलके पिता - देखें बृहत् जैन शब्दार्णव द्वितीय खंड ।
महापुराण सर्ग श्लोक
मथुरा का राजा व कंस का पिता था।33-23। पूर्वभव के वैर से कंस ने इनको जेल में डाल दिया था। 25-26। कृष्ण-द्वारा कंस के मारे जाने पर पुनः इनको राज्य की प्राप्ति हो गयी ।36-51।
पुराणकोष से
(1) हस्तिनापुर नगर के निवासी वैश्य सागरदत्त और उसकी पत्नी धनवती का पुत्र यह स्वभाव से क्रोधी था । अप्रत्याख्यानावरण क्रोध के कारण इसने तिर्यंच आयु का बंध किया । राजाज्ञा के बिना राजकीय वस्तुएँ दूसरों को देने के कारण यह राजा द्वारा मारा गया और मरकर व्याघ्र हुआ । महापुराण 8.224-226
(2) विजयार्ध पर्वत की उत्तरदिशावर्ती अलका नगरी के नृप महासेन और उसकी रानी सुंदरी का ज्येष्ठ पुत्र, वरसेन अ अग्रज और वसुंधरा का सहोदर । महापुराण 76. 262-263, 265
(3) भगवान् नेमिनाथ का मुख्य प्रश्नकर्ता । महापुराण 76.532
(4) हरिवंशी राजा नरवृष्टि और उसकी रानी पद्मावती का ज्येष्ठ पुत्र, देवसेन ओर महासेन का अग्रज तथा गांधारी का सहोदर । महापुराण 70.100-101 हरिवंश पुराण में नरवृष्टि को भोजकवृष्णि कहा गया है । हरिवंशपुराण - 18.16 इसके धर, गुणधर, युक्तिक, दुर्धर, सागर, कंस और चंद्र आदि अनेक पुत्र थे । हरिवंशपुराण - 48.39 यह मथुरा नगरी का राजा था । पूर्वभव के वैर से इसी के पुत्र कंस ने इसे जेल में डाल दिया था । कृष्ण ने इसे जेल से मुक्त कराया था कृष्ण-जरासंध युद्ध में इसने कृष्ण का साथ दिया था । नेमिकुमार के लिए कृष्ण ने स्वयं जाकर इनकी ही पुत्री राजीमति की याचना की थी । यह एक अक्षौहिणी सेना का स्वामी था । मपू0 7.331-338, 71. 4-5, 73-76, 145-146, हरिवंशपुराण - 1.93,हरिवंशपुराण - 1.50.67