उत्कृष्ट शातकुंभ: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> एक व्रत । इसमें एक से लेकर सोलह तक के अंको को सोलह, पंद्रह आदि के क्रम से एक तक लिखकर प्रथम अंक को छोड़ अवशिष्ट अंकों का जितना जोड़ हो उतने उपवास और जितने स्थान हों उतनी पारणाएँ की जाती है । यह पाँच सौ सत्तावन दिनों में पूर्ण होता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.87-85 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> एक व्रत । इसमें एक से लेकर सोलह तक के अंको को सोलह, पंद्रह आदि के क्रम से एक तक लिखकर प्रथम अंक को छोड़ अवशिष्ट अंकों का जितना जोड़ हो उतने उपवास और जितने स्थान हों उतनी पारणाएँ की जाती है । यह पाँच सौ सत्तावन दिनों में पूर्ण होता है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_34#87|हरिवंशपुराण - 34.87-85]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
एक व्रत । इसमें एक से लेकर सोलह तक के अंको को सोलह, पंद्रह आदि के क्रम से एक तक लिखकर प्रथम अंक को छोड़ अवशिष्ट अंकों का जितना जोड़ हो उतने उपवास और जितने स्थान हों उतनी पारणाएँ की जाती है । यह पाँच सौ सत्तावन दिनों में पूर्ण होता है । हरिवंशपुराण - 34.87-85