उत्कृष्ट सिंहानिष्क्रीडित
From जैनकोष
एक व्रत । इसमें एक से लेकर पंद्रह तक के अंको का प्रस्तार बनाकर उसके शिखर में सोलह का अंक लिख दिया जाता है । उसके बाद उल्टे क्रम से एक तक अंक लिखे जाते हैं । जितना जोड़ हो उतने उपवास और जितने स्थान हो उतनी पारणाएं की जाती है । इस तरह इस व्रत में चार सौ छियानवें उपवास और इकसठ पारणाएं की जाती है । यह व्रत भी पांच सौ सत्तावन दिनों में पूर्ण होता है । हरिवंशपुराण - 34.78-80