निर्वाण: Difference between revisions
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<p>नि.सा./मू./१७९-१८१<span class="PrakritGatha"> णवि दुक्खं णवि सुक्खं णवि पीडा णेव विज्जदे बाहा। णवि मरणं णवि जणणं तत्थेव य होइ णिव्वाणं।१७९। णवि इंदिय उवसग्गा णवि मोहो विम्हियो ण णिद्दा य। ण य तिण्हा णेव छुहा तत्थेव य होइ णिव्वाणं।१८०। णवि कम्मं णोकम्मं णवि चिंता णेव अट्टरुद्दाणि। णवि धम्मसुक्कझाणे तत्थेव य होइ णिव्वाणं।१८१। </span>=<span class="HindiText">जहा दु:ख नहीं है, सुख नहीं है, पीड़ा, बाधा, मरण, जन्म कुछ नहीं है वहीं निर्वाण है।१७९। जहा इन्द्रिया, मोह, विस्मय, निद्रा, तृषा, क्षुधा, कुछ नहीं है वहीं निर्वाण है।१८०। जहा कर्म और नोकर्म, चिन्ता, आर्त व रौद्रध्यान अथवा धर्म व शुक्लध्यान कुछ नहीं है, वहीं निर्वाण है।</span>१८१। भ.आ./वि./११/५३/२० <span class="SanskritText">निर्वाणं विनाश:, तथा प्रयोग: निर्वाण: प्रदीपो नष्ट इति यावत् । विनाशसामान्यमुपादाय वर्तमानोऽपि निर्वाणशब्द: चरणशब्दस्य निर्जातकर्मशातनसामर्थ्याभिधायिन: प्रयोगात्मकर्मविनाशगोचरो भवति। स च कर्मणां विनाशो द्विप्रकार:, कतिपय: प्रलय: सकलप्रलयश्च। तत्र द्वितीयपरिग्रहमाचष्टे।</span> =<span class="HindiText">निर्वाण शब्द का ‘विनाश’ ऐसा अर्थ है। जैसे–प्रदीप का निर्वाण हुआ अर्थात् प्रदीप नष्ट हो गया। परन्तु यहा चारित्र में जो कर्म नाश करने का सामर्थ्य है उसका प्रयोग यहा(प्रकृत में) निर्वाण शब्द से किया गया है। वह कर्म का नाश दो प्रकार से होता है–थोड़े कर्मों का नाश और सकल कर्मों का नाश। उनमें से दूसरा अर्थात् सर्व कर्मों का विनाश ही यहा अभीष्ट है।<br> | |||
</span>प्र.सा./ता.वृ./६/८/९ <span class="SanskritText">स्वाधीनातीन्द्रियरूपपरमज्ञानसुखलक्षणं निर्वाणम् । </span></p> | |||
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<li class="HindiText"> स्वाधीन अतीन्द्रियरूप परमज्ञान व सुख लक्षण निर्वाण है। </li> | |||
<li class="HindiText"> भूतकालीन प्रथम तीर्थंकर– देखें - [[ तीर्थंकर#5 | तीर्थंकर / ५ ]]। </li> | |||
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Revision as of 17:16, 25 December 2013
नि.सा./मू./१७९-१८१ णवि दुक्खं णवि सुक्खं णवि पीडा णेव विज्जदे बाहा। णवि मरणं णवि जणणं तत्थेव य होइ णिव्वाणं।१७९। णवि इंदिय उवसग्गा णवि मोहो विम्हियो ण णिद्दा य। ण य तिण्हा णेव छुहा तत्थेव य होइ णिव्वाणं।१८०। णवि कम्मं णोकम्मं णवि चिंता णेव अट्टरुद्दाणि। णवि धम्मसुक्कझाणे तत्थेव य होइ णिव्वाणं।१८१। =जहा दु:ख नहीं है, सुख नहीं है, पीड़ा, बाधा, मरण, जन्म कुछ नहीं है वहीं निर्वाण है।१७९। जहा इन्द्रिया, मोह, विस्मय, निद्रा, तृषा, क्षुधा, कुछ नहीं है वहीं निर्वाण है।१८०। जहा कर्म और नोकर्म, चिन्ता, आर्त व रौद्रध्यान अथवा धर्म व शुक्लध्यान कुछ नहीं है, वहीं निर्वाण है।१८१। भ.आ./वि./११/५३/२० निर्वाणं विनाश:, तथा प्रयोग: निर्वाण: प्रदीपो नष्ट इति यावत् । विनाशसामान्यमुपादाय वर्तमानोऽपि निर्वाणशब्द: चरणशब्दस्य निर्जातकर्मशातनसामर्थ्याभिधायिन: प्रयोगात्मकर्मविनाशगोचरो भवति। स च कर्मणां विनाशो द्विप्रकार:, कतिपय: प्रलय: सकलप्रलयश्च। तत्र द्वितीयपरिग्रहमाचष्टे। =निर्वाण शब्द का ‘विनाश’ ऐसा अर्थ है। जैसे–प्रदीप का निर्वाण हुआ अर्थात् प्रदीप नष्ट हो गया। परन्तु यहा चारित्र में जो कर्म नाश करने का सामर्थ्य है उसका प्रयोग यहा(प्रकृत में) निर्वाण शब्द से किया गया है। वह कर्म का नाश दो प्रकार से होता है–थोड़े कर्मों का नाश और सकल कर्मों का नाश। उनमें से दूसरा अर्थात् सर्व कर्मों का विनाश ही यहा अभीष्ट है।
प्र.सा./ता.वृ./६/८/९ स्वाधीनातीन्द्रियरूपपरमज्ञानसुखलक्षणं निर्वाणम् ।
- स्वाधीन अतीन्द्रियरूप परमज्ञान व सुख लक्षण निर्वाण है।
- भूतकालीन प्रथम तीर्थंकर– देखें - तीर्थंकर / ५ ।
- भगवान् महावीर का निर्वाण दिवस– देखें - इतिहास / २ ।