निर्वहण
From जैनकोष
भगवती आराधना / विजयोदया टीका/2/14/20 निराकुलं वहनं धारणं निर्वहणं, परीषहाद्युपनिपातेऽप्याकुलतामंतरेण दर्शनादिपरिणतौ वृत्ति:। =सम्यग्दर्शनादि गुणों को निराकुलता से धारण करना, अर्थात् परीषहादिक प्राप्त हो जाने पर भी व्याकुल चित्त न होकर सम्यग्दर्शन आदि रत्नत्रयरूप परिणति में तत्पर रहना, उससे च्युत न होना, यह निर्वहण शब्द का अर्थ है। ( अनगारधर्मामृत/1/96/104 )