निषेक: Difference between revisions
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<li><span class="HindiText"><strong name="1" id="1"> लक्षण</strong></span> <br>ष.खं/६/१,९-६/सू.६/१५० <span class="PrakritText">आबाधूणिया कम्मटि्ठदी कम्मणिसेओ।६।</span> =<span class="HindiText">(ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय व अन्तराय) इन कर्मों का आबाधाकाल से हीन कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक होता है। (ष.खं.६/१,९-६/सू.९,१२,१५,१८,२१/पृ.१५९-१६५ में अन्य तीन कर्मों के सम्बन्ध में उपरोक्त ही बात कही है)। </span><br> | |||
ध.११/४,२,६,१०१/२३७/१६ <span class="PrakritText">निषेचनं निषेक:, कम्मपरमाणुक्खंधणिक्खेवो णिसेगो णाम।</span> =<span class="HindiText">निषेचनं निषेक:’ इस निरुक्ति के अनुसार कर्म परमाणुओं के स्कन्धों के निक्षेपण करने का नाम निषेक है।</span> गो.क./मू./१६०/१९५ <span class="PrakritGatha">आवाहूणियकम्मटि्ठदी णिसेगो दुसत्तकम्माणं। आउस्स णिसेगो पुण सगटि्ठदी होदि णियमेण।९१९। </span>=<span class="HindiText">आयु वर्जित सात कर्मों की अपनी-अपनी उत्कृष्ट स्थिति में से उन-उनका आबाधाकाल घटाकर जो शेष रहता है, उतने काल के जितने समय होते हैं; उतने ही उस उस कर्म के निषेक जानना। और आयु कर्म की स्थिति प्रमाण काल के समयों जितने उसके निषेक हैं। क्योंकि आयु की आबाधा पूर्व भव की आयु में व्यतीत हो चुकी है। (गो.क./मू./९१९/११०२)। | |||
गो.जी./भाषा/६७/१७३/१४ एक एक समय (उदय आने) सम्बन्धी जेता द्रव्य का प्रमाण ताका नाम निषेक जानना। (विशेष देखें - [[ उदय#3 | उदय / ३ ]]में कर्मों की निषेक रचना)। </span></li> | |||
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Revision as of 17:16, 25 December 2013
- लक्षण
ष.खं/६/१,९-६/सू.६/१५० आबाधूणिया कम्मटि्ठदी कम्मणिसेओ।६। =(ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय व अन्तराय) इन कर्मों का आबाधाकाल से हीन कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक होता है। (ष.खं.६/१,९-६/सू.९,१२,१५,१८,२१/पृ.१५९-१६५ में अन्य तीन कर्मों के सम्बन्ध में उपरोक्त ही बात कही है)।
ध.११/४,२,६,१०१/२३७/१६ निषेचनं निषेक:, कम्मपरमाणुक्खंधणिक्खेवो णिसेगो णाम। =निषेचनं निषेक:’ इस निरुक्ति के अनुसार कर्म परमाणुओं के स्कन्धों के निक्षेपण करने का नाम निषेक है। गो.क./मू./१६०/१९५ आवाहूणियकम्मटि्ठदी णिसेगो दुसत्तकम्माणं। आउस्स णिसेगो पुण सगटि्ठदी होदि णियमेण।९१९। =आयु वर्जित सात कर्मों की अपनी-अपनी उत्कृष्ट स्थिति में से उन-उनका आबाधाकाल घटाकर जो शेष रहता है, उतने काल के जितने समय होते हैं; उतने ही उस उस कर्म के निषेक जानना। और आयु कर्म की स्थिति प्रमाण काल के समयों जितने उसके निषेक हैं। क्योंकि आयु की आबाधा पूर्व भव की आयु में व्यतीत हो चुकी है। (गो.क./मू./९१९/११०२)। गो.जी./भाषा/६७/१७३/१४ एक एक समय (उदय आने) सम्बन्धी जेता द्रव्य का प्रमाण ताका नाम निषेक जानना। (विशेष देखें - उदय / ३ में कर्मों की निषेक रचना)। - अन्य सम्बन्धित विषय
- उदय प्रकरण में कर्म प्रदेशों की निषेक रचना– देखें - उदय / ३ ।
- स्थितिप्रकरण में कर्मप्रदेशों की निषेक रचना– देखें - स्थिति / ३ ।
- निषेकों में अनुभागरूप-स्पर्धक रचना–देखें - स्पर्धक।
- निक्षेप व अतिस्थापनारूप निषेक– देखें - अपकर्षण / २ ।