यम: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) निर्दोष चारित्र का पालन करने के लिए भोग और उपभोग की वस्तुओं का आजीवन त्याग । <span class="GRef"> महापुराण 11.220 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) निर्दोष चारित्र का पालन करने के लिए भोग और उपभोग की वस्तुओं का आजीवन त्याग । <span class="GRef"> महापुराण 11.220 </span></p> | ||
<p id="2">(2) तीर्थंकर वृषभदेव का जन्माभिषेक करने वाला एक देव । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_3#185|पद्मपुराण -3. 185]] </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) तीर्थंकर वृषभदेव का जन्माभिषेक करने वाला एक देव । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_3#185|पद्मपुराण -3. 185]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) लोकपाल । यह कालाग्नि विद्याधर और उसकी स्त्री श्रीप्रभा का पुत्र था । यह रूद्रकर्मा आर तेजस्वी था । इंद्र विद्याधर ने इसे दक्षिण सागर के द्वीप में किव्कुनगर की दक्षिण दिशा में लोकपाल के पद पर नियुक्त किया था । किष्कुनगर सूर्यरज और ऋक्षरज दोनों विद्याधर भाइयों का था । अपना नगर लेने के लिए दोनों ने मध्यरात्रि में इससे युद्ध किया और दोनों असफल रहे । ऋक्षरज के किंकर शाखावली से ऋक्षरज की पराजय के समाचार ज्ञातकर रावण ने इससे युव किया था । इस युद्ध में यह पराजित हुआ । यह रथ रहित होने पर रथनूपुर गया । वहाँँ इसने इंद्र विद्याधर से लोकपाल का कार्य नहीं करने की इच्छा प्रकट की थी । इंद्र विद्याधर इसका जामाता था । उसे इसकी पुत्री सर्वश्री विवाही गयी थी । अत: इंद्र ने इसका सम्मान किया इसे सुरसंगीत नगर का स्वामित्व प्राप्त हुआ । दशानन ने इससे किष्किंधनगर और किष्कुपुर छीनकर क्रमश: सूर्यरज और ऋक्षराज विद्याधरों को दे दिये थे । <span class="GRef"> महापुराण 7.114-115, 8.439-498 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) लोकपाल । यह कालाग्नि विद्याधर और उसकी स्त्री श्रीप्रभा का पुत्र था । यह रूद्रकर्मा आर तेजस्वी था । इंद्र विद्याधर ने इसे दक्षिण सागर के द्वीप में किव्कुनगर की दक्षिण दिशा में लोकपाल के पद पर नियुक्त किया था । किष्कुनगर सूर्यरज और ऋक्षरज दोनों विद्याधर भाइयों का था । अपना नगर लेने के लिए दोनों ने मध्यरात्रि में इससे युद्ध किया और दोनों असफल रहे । ऋक्षरज के किंकर शाखावली से ऋक्षरज की पराजय के समाचार ज्ञातकर रावण ने इससे युव किया था । इस युद्ध में यह पराजित हुआ । यह रथ रहित होने पर रथनूपुर गया । वहाँँ इसने इंद्र विद्याधर से लोकपाल का कार्य नहीं करने की इच्छा प्रकट की थी । इंद्र विद्याधर इसका जामाता था । उसे इसकी पुत्री सर्वश्री विवाही गयी थी । अत: इंद्र ने इसका सम्मान किया इसे सुरसंगीत नगर का स्वामित्व प्राप्त हुआ । दशानन ने इससे किष्किंधनगर और किष्कुपुर छीनकर क्रमश: सूर्यरज और ऋक्षराज विद्याधरों को दे दिये थे । <span class="GRef"> महापुराण 7.114-115, 8.439-498 </span></p> | ||
<p id="4">(4) नंदनवन की दक्षिणदिशा के चारण भवन का एक देव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.315-317 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) नंदनवन की दक्षिणदिशा के चारण भवन का एक देव । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#315|हरिवंशपुराण - 5.315-317]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:20, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- देखें लोकपाल - 1।
- भोग व उपभोग्य वस्तुओं का जो जीवन पर्यंत के लिए त्याग किया जाता है उसको यम कहते हैं। (देखें भोगोपभोग परिमाणव्रत );
- कालाग्नि विद्याधर का पुत्र था। ( पद्मपुराण/8/114 ) इंद्र द्वारा इसको किष्कुपुर का लोकपाल बनाया है। ( पद्मपुराण/8/115 ) फिर अंत में रावण द्वारा हराया गया था। ( पद्मपुराण/8/481-485 )।
- देखें वैवस्वत यम ।
पुराणकोष से
(1) निर्दोष चारित्र का पालन करने के लिए भोग और उपभोग की वस्तुओं का आजीवन त्याग । महापुराण 11.220
(2) तीर्थंकर वृषभदेव का जन्माभिषेक करने वाला एक देव । पद्मपुराण -3. 185
(3) लोकपाल । यह कालाग्नि विद्याधर और उसकी स्त्री श्रीप्रभा का पुत्र था । यह रूद्रकर्मा आर तेजस्वी था । इंद्र विद्याधर ने इसे दक्षिण सागर के द्वीप में किव्कुनगर की दक्षिण दिशा में लोकपाल के पद पर नियुक्त किया था । किष्कुनगर सूर्यरज और ऋक्षरज दोनों विद्याधर भाइयों का था । अपना नगर लेने के लिए दोनों ने मध्यरात्रि में इससे युद्ध किया और दोनों असफल रहे । ऋक्षरज के किंकर शाखावली से ऋक्षरज की पराजय के समाचार ज्ञातकर रावण ने इससे युव किया था । इस युद्ध में यह पराजित हुआ । यह रथ रहित होने पर रथनूपुर गया । वहाँँ इसने इंद्र विद्याधर से लोकपाल का कार्य नहीं करने की इच्छा प्रकट की थी । इंद्र विद्याधर इसका जामाता था । उसे इसकी पुत्री सर्वश्री विवाही गयी थी । अत: इंद्र ने इसका सम्मान किया इसे सुरसंगीत नगर का स्वामित्व प्राप्त हुआ । दशानन ने इससे किष्किंधनगर और किष्कुपुर छीनकर क्रमश: सूर्यरज और ऋक्षराज विद्याधरों को दे दिये थे । महापुराण 7.114-115, 8.439-498
(4) नंदनवन की दक्षिणदिशा के चारण भवन का एक देव । हरिवंशपुराण - 5.315-317